वर्ल्ड वार-2 की तबाही से उबरने में दुनिया को देर लगी लेकिन एक गरीब लड़के के सपनों ने इंतज़ार नहीं किया और खड़ी कर दी दुनिया की सबसे बड़ी मोटरसाइकिल कम्पनी..
सपनों को पंख नहीं चाहिए..क्योंकि सपनों के पंख होते हैं. सिद्ध कर दिया है दुनिया में कई बार कई लोगों ने अपने सपनों को हकीकत की उड़ान दे कर.
ऐसा ही हुआ था जापान में भी.. और वो वक्त था 1942-43 का. एक गरीब बच्चे ने अपने परिवार के लिए मसीहा बन कर दिखाया और दुनिया को सपनों का सिकंदर बन कर दिखाया. हौंडा नाम था इस बच्चे का और इसके कामयाब सपने का भी यही नाम था.
वर्ल्ड वॉर की तबाही के बाद ज़िन्दगी से नाउम्मीद नहीं हुआ ये छोटा सिकंदर. हौंडा नाम के इस बच्चे ने साइकिल में छोटा इंजन जोड़कर एक सस्ती ट्रांसपोर्ट बाइक बना डाली. बस यहीं से अचानक उसकी रचनात्मकता और सफलता की यात्रा प्रारम्भ हो गई.
हौंडा ने परिश्रम के राजपथ पर रचनातात्मकता और जूनून के दो पहियों पर बैठ कर अपनी साइकल आगे बढ़ा दी. उसका आइडिया इतना कामयाब रहा कि उसने बिना रुके आगे बढ़ते-बढ़ते आखिरकार दुनिया की सबसे बड़ी मोटरसाइकिल कंपनी की नींव रख दी.
आज से एक सौ अठारह साल पहले सन 1906 के जापान में माउंट फूजी के पास एक छोटा सा गांव बसा था जहां एक गरीब घर में जन्म हुआ सोइचिरो होंडा (Soichiro Honda) का. जब उसका जन्म हुआ तब उसके माता-पिता को ये नहीं पता था कि एक ऐसा बच्चा उनका बेटा बन कर उनके घर आया है जो आगे चल कर दो-पहियों की दुनिया में इतिहास लिखने वाला है.
हौंडा के पिता लोहार का काम करते थे और खाली समय में साइकिल रिपेयरिंग का काम भी करते थे. अपने पूरे परिवार की तरह ही होंडा का बचपन भी चुनौतियों और संघर्षों से भरा था. उसके देखते देखते उसके पांच भाई-बहन बीमारियों के कारण दुनिया छोड़ कर चले गए. और इस कारण ही उसके माता-पिता इस इकलौते बच्चे से बहुत उम्मीदें रखते थे.
चूंकि होंडा का जन्म तो किसी बड़े ही काम के लिए हुआ था इसलिए उसका पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगता था. वो अपना अधिक से अधिक समय अपने पिता के पास साइकिल रिपेयरिंग करने में बिताया करता था. बाकी टाइम में वो साइकिलों के छोटे-छोटे पुर्जों से खेलने में व्यस्त रहता था.
सपनों ने भरी उड़ान
देखते ही देखते 16 साल का हो गया हौंडा. अब ये उम्र ज्यादा उम्मीदों की उम्र बन चुकी थी उसके लिए. उसके सपने भी बड़े होने लगे थे. ऐसे में अचानक एक दिन उसकी नज़र पड़ी एक अखबार में नौकरी के विज्ञापन पर. यह “आर्ट शोकाई” नामक टोक्यो की एक ऑटोमोबाइल सर्विस स्टेशन में निकली एक नौकरी का विज्ञापन था. हौंडा ने तुरंत अपना स्कूल और गांव छोड़ दिया. अपने साथ लाया बड़े बड़े सपने और बाकी सब पीछे ही छोड़ आया. अब हौंडा अपने गाँव से टोक्यो पहुंच गया था. याद रखिये, किस्मत भी इम्तिहान लेती है, उसने हौंडा का भी इम्तिहान लिया.
किस्मत ने लिया इम्तेहान
उसको जो सबसे पहला काम आर्ट शोकाई में करने को मिला वो सफाई का काम था. होंडा निराश तो हुआ पर उसने हार नहीं मानी. गांव वापस लौटने का सवाल ही पैदा नहीं होता था. अब उसने अपने जीवन को समुद्र के भंवर में डाल दिया था और उसे बस उसे पार लगने की अपनी कोशिश करनी थी.
उसने सफाईकर्मी के तौर पर अपना काम जारी रखा. कुछ महीनों बाद, भाग्य ने उसके श्रम और लगन को पुरस्कार दिया. हौंडा को इस ऑटोमोबाइल कम्पनी ने अपने वर्कशॉप में काम करने का अवसर दे दिया गया.
सीखने में लगा दिया ध्यान
होंडा तो पहले भी साइकिल का काम करता था अब वो यहां इस वर्कशॉप में हर गाड़ी और उसके पार्ट्स पर काम करने लगा. उसने प्रत्येक पार्ट को पूरी उत्सुकता से समझना शुरू कर दिया. इसी दौरान कुछ समय बाद आर्ट शोकाई ने दो स्पोर्ट्स कार बनाई. उसके बाद साल 1924 में हुई जापानी मोटर कार चैंपियनशिप में इनमें से एक कार को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ.
इस रेस में होंडा ने न केवल इंजीनियर के काम की जिम्मेदारी सम्हाली थी बल्कि वे तो ड्राइवर के साथ गाड़ी में भी बैठे थे. ये एक खास अनुभव था और इसने हौंडा के भीतर मोटर स्पोर्ट्स का जुनून जगा दिया.
हादसा बदलता है रास्ता
फिर धीरे धीरे बारह साल और बीत गए और तब आया साल 1936. इस साल एक रेसिंग के दौरान होंडा का एक दर्दनाक दुर्घटना का सामना करना पड़ा. यद्यपि उनकी जान तो बच गई, परन्तु उनका बायां हाथ घायल हो गया और चेहरे पर गहरे घाव हो गए. इस दुर्घटना के बाद उन्हें लगा कि उनका करियर यहीं पर खत्म हो जाएगा..क्योंकि अब वो मैकेनिक का काम कर सकते थे और ना ही रेसिंग में हिस्सा ले सकते थे.
ये दुर्घटना भी होंडा को हरा नहीं सकी, उसने हार मानने से इंकार कर दिया और कुछ नया करने की ठान ली. हौंडा ने अपने मालिक से प्रार्थना की कि वो उसे एक स्पेयर पार्ट्स मैन्युफैक्चरिंग कंपनी शुरू करने की अनुमति दें पर उन्होंने उसको मना कर दिया गया.
अब होंडा ने सोचा कि मुझे खुद के दम पर ही अपना काम करना पड़ेगा. तमाम कोशिशें करके उसने अपनी कंपनी “Tokai Seiki Heavy Industry” अपनी दम पर शुरू कर ही दी. इस बड़े काम में उसका साथ निभाया उसके प्रिय मित्र सिचाइरो काटो (Shichiro Kato) ने. हौंडा ने उसको कम्पनी का प्रेसिडेंट बना दिया.
ये शुरुआत बहुत मुश्किल थी क्योंकि हौंडा दिन में तो अपनी पुरानी नौकरी करते और रात में पिस्टन बनाने के काम में लग जाया करते थे. तीन साल के परश्रम ने फिर उसको दिया पुरस्कार और वो 1939 में अपना एक पिस्टन डिजाइन करने में सफल हो गया. उसके बाद मगर जब उसने इसे टोयोटा कम्पनी को पेश किया, तो उसके 50 में से 47 डिजाइन्स को रिजेक्ट कर दिया गया.
मोटर-साइकिल का अविष्कार
अब इतनी मेहनत और इतनी गलतियों के बाद होंडा ने सफलता की राह पर आगे बढ़ते चलते गए क्योंकि उनको रुकना नहीं आता था. अपनी गलतियों से सबक सीख कर एक बार फिर उन्होंने पिस्टन बनाए. इस बार उनका डिजाईन कामयाब हुआ. इसके बाद हौंडा को बड़े ऑर्डर्स मिलने लगे.
जिस तरह से दुनिया में साल 2020 में लोगों के काम-धंधों और कारोबार को कोरोना वाइरस ने ब्रेक लगाया था ठीक ऐसे हौंडा के सपनों पर निशाना लगाया द्वितीय विश्व युद्ध ने . दुसरे विश्व युद्ध के दौरान एक हवाई हमले ने उनकी फैक्ट्री को नेस्तोनाबूद कर दिया.
युद्ध के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा मुश्किल दौर से गुजरने वाले देशों में एक जापान भी था. यहां पेट्रोल की कमी और महंगाई ने जिन्दगी को बदहाल कर दिया था. लेकिन कुछ करने की चाहत लिए कोशिशों में लगे होंडा को इसी बीच एक जापानीज इम्पीरियल आर्मी का एक पुराना इंजन मिल गया. फिर हौंडा ने अपना दिमाग लगाया और यहां पर उसको एक आइडिया आया.
हौंडा ने सोचा कि क्यों न इस इंजन को एक साइकल में लगा देते हैं जिससे अपने आने जाने के काम की परेशानी में मदद मिल जायेगी. इससे हौंडा का आवागमन तो आसान हो गया और ये कोशिश सस्ती भी पड़ी उसको. हौंडा ने उस इंजन को साइकिल में लगा दिया और एक सस्ती और आसान सवारी जैसी गाडी तैयार कर ली. यह साइकिल “सुपर कप” के नाम से प्रसिद्ध हो गई और इसने आते ही बाजार में धूम मचा दी.
सपने ने पार कर दी सरहदें
शुरू से ही होंडा को रेसिंग का काफी शौक था. इसलिए सुपर कप के बाद अब उन्होंने अब स्पोर्ट्स बाइक बनाने का निर्णय किया. इसके लिए उन्होंने मोटो बाइक रेसेस में जाना शुरू किया और जीतने वाली बाइक्स के खास फीचर्स को लिख कर उनकी जानकारियां एकत्र करने लगे. कुछ साल इस कोशिश के बाद उन्होंने अपनी बाइक बना दी और तब हौंडा की अपनी पहली स्पोर्ट्स बाइक मार्केट में लॉन्च हुई. इस बाइक ने साल 1960 की इंटरनेशनल रेसिंग प्रतियोगिता में प्रथम स्थान भी प्राप्त किया.
हौंडा की बाइक के लिए देश भर से आर्डर आने लगे. और फिर अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी, होंडा की बाइक की डिमांड दुनिया भर में देखी जाने लगी. होंडा लग गए अपने काम में और उनके नाम की उनकी अपनी बाइक सड़क पर चलते चलते आसमान में उड़ने लगी.
तब आया हौंडा की जिंदगी का सबसे बड़ा साल 1960. इस साल होंडा की कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी मोटरसाइकिल निर्माता कम्पनी के नाम से जानी गई. आठ साल बाद साल 1968 तक हौंडा की एक करोड़ बाइक्स दुनिया भर में बिक चुकी थीं. अब हौंडा की आयु थी 62 साल और इस समय उन्होंने वो सब हासिल कर लिया था जो दुनिया के कामयाब लोगों को हासिल होता है. दौलत भी और शोहरत भी. लेकिन इसके पीछे थी एक लम्बी मेहनत और उसके पीछे था एक ज़िंदा सपना.