राजस्थान में औषधीय खेती करके एक किसान ने बदल डाली फ़िज़ा.. युवा किसान राकेश बने किसानों के लिए प्रेरणा
आवश्यकता अविष्कार की जननी है. यह कहावत चरितार्थ कर दी राजस्थान के युवा किसान राकेश ने. औषधीय खेती को प्रोत्साहित करके राजस्थान में राकेश ने ने, किसानों को नए ढंग की खेती सिखाई. इस खेती ने निर्धन किसानो की आर्थिक स्थिति मजबूत करके उनको बड़ी कमाई की राह दिखा दी.
किसान राकेश ने प्रदेश के बहुत से किसानों को अपने साथ जोड़ लिया है. राकेश उनके साथ खेती करते हैं और उनको औषधीय खेती की सारी जानकारी देते हैं. साथ ही वे उन सभी किसान के साथ मिल कर आयुर्वेदिक दवाओं की बड़ी कंपनियों को, जैसे कि हिमालयन ड्रग्स, एम्ब्रोसिया फूड्स, गुरुकुल फार्मेसी, पतंजलि आदि को आयुर्वेदिक महत्व वाली जड़ी बूटियां और औषधियां उपलब्ध करवा रहे हैं.
राकेश ने अपनी हर्बल कंपनी बना ली है. इस कम्पनी के माध्यम से वे किसानों को उच्च कोटि के बीज उपलब्ध कराते हैं. राकेश किसानो को उनकी उपज के अच्छे दाम भी दिलवाते हैं. धीरे धीरे करके उन्होंने राजस्थान के अधिकाँश किसानो को इस प्रकार राज्यभर के किसानों को औषधीय खेती के काम से जोड़ दिया है.
गाँव के किसान परिवार में जन्मे राकेश को बचपन से ही प्रकृति से गहरा लगाव था. वे हमेशा पेड़ पौधे लगाने और वृक्षारोपण से जुड़ी जानकारी हासिल करने में व्यस्त रहा करते थे. बीस साल पहले उन्होंने एक अखबार में ‛राजस्थान मेडिसिनल प्लांट बोर्ड’ का विज्ञापन पढ़ा जिसमे औषधीय खेती के लिए किसानों से प्रस्ताव माँगा गया था.
विज्ञापन ने बदला जीवन
इस विज्ञापन ने राकेश का जीवन बदल दिया. विज्ञापन पढ़ कर उसमे दिए पते पर राकेश जयपुर पहुँच गए और वहां के पंत कृषि भवन में आरएसएमपीबी के दफ्तर में उन्होंने इस विषय में सारी जानकारी प्राप्त की. औषधि वाले और सुगंध वाले पौधों की खेती कब की जाती है, इनको फसलों को कब बोया जाता है और उनकी कटाई किस समय होती है.
फोल्डर की जानकारी से शुरू की खेती
इसके बाद राकेश ने पीछे मुड कर नहीं देखा. जिन फसलों के फोल्डर लेकर वे गाँव आये थे, उनकी जानकारी के सहारे ही उन्होंने औषधीय खेती करने की ठान ली. कुछ माह में व्यस्तता जुटा कर राकेश ने 2005-06 में औषधीय खेती की शुरुआत अपने घर से की. इतना ही नहीं उन्होंने अपने पिताजी, ताऊजी, चाचा और कुछ रिश्तेदारों को भी औषधीय फसलों की खेती के करना सिखाया. इसके बाद उन्होंने जामनगर की एक संस्था से ऐलोवेरा प्लांट लाकर किसानों में बांटे. स्थानीय किसानों में उत्सुकता बढ़ने पर उन्होंने उनको अपनी खेती के काम में जोड़ लिया.
जानकारी जुटाने में समय लगा
शुरू में जानकारी पूरी नहीं थी इसलिए सही फसलों का चयन नही हो पा रहा था. इस कमी ने राकेश को दुसरे प्रदेशों के औषधीय खेती करने वाले किसानो से जोड़ा. सबसे थोड़ी थोड़ी जानकारी ले कर राकेश अपनी खेती को लगातार बेहतर करने में जुटे रहे.
इसके बाद सही जानकारी हासिल करते हुए राकेश ने गर्म जलवायु और कम पानी वाले वातावरण के लिए कुछ फसलें चुनीं और उनकी खेती से उनको न केवल धन लाभ हुआ बल्कि उनको औषधीय खेती के बाजार से जुड़ने का अवसर भी मिल गया.
उगा डालीं ये ख़ास फसलें
मुलेठी, स्टीविया, सफेद मूसली जैसी फसलें लगाने के बाद अब राकेश ने ऐलोवेरा, सोनामुखी, तुलसी, आंवला, बेलपत्र, गोखरू और अश्वगंधा की फसल उगाई. इस फसल की कामयाबी ने उनके अंदर इतना उत्साह भर दिया कि राकेश अपने गाँव और आसपास के गावों के किसानों को औषधीय खेती के लिए जागरूक करने में जुट गए. वे उनको लेकर सरकार द्वारा आयोजित कार्यशालाओं और ट्रेनिंग प्रोग्रामों में भी जाने लगे.
शुरू की सामूहिक खेती
इसके बाद राकेश ने समूह बनाकर खेती करना शुरू कर दिया. किसानों द्वारा ऐलोवेरा की बुवाई की करवाई. शुरु में औषधीय फसलों के खरीदार ज़रा कम मिले लेकिन बाद में लगातार कोशिश के बाद कई कंपनियों की जानकारी मिली जो ऐलोवेरा आदि औषधीय फसलें खरीदती थीं.
रच दिया इतिहास
कुछ समय बाद राकेश ने ‛मारवाड़ औषधीय पादप स्वयं सहायता समूह’ का पंजीकरण करवाया. उसके बाद जो हुआ वो आज इतिहास बन कर सामने है.आज बीकानेर, जोधपुर, चुरू, जैसलमेर, सीकर, आदि जगहों के 300 से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं. गिनती करने पर पता चला कि युवा किसान राकेश ने राज्य के 11 जिलों के किसानों को तकनीकी शिक्षा देकर औषधीय खेती के लिए प्रेरित किया है. और ये भी सच है कि जो किसान पहले दस बारह हज़ार कमाते थे, अब चार से पांच लाख रुपये सालाना की कमाई कर रहे हैं जड़ी बूटियों की खेती से.