आज देश में 13वां राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जा रहा है। पहला राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस 24 अप्रेल 2010 को मनाया गया था। इस दिवस की घोषणा भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के द्वारा की गई थी। तब से प्रत्येक वर्ष 24 अप्रेल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत में पंचायती राज वेवस्था के जनक बलवंत राय मेहता को माना जाता है। 1957 में केंद्रीय बिजली वेवस्था में सुधार लाने के लिए उनकी अध्यक्षता में एक समिति की गठन किया गया जिसे बलवंत राय मेहता समिति के नाम से जाना जाता है। समिति ने एक विकेन्द्रीकृत त्रिस्तरीय पंचायती राज वेवस्था का सुझाव दिया जिसमें ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद् की अवधारणा दी गई। पंचायती राज वेवस्था का जनक लार्ड रिपन को माना जाता है।
बलवंत राय मेहता समिति के सुझावों के बाद सर्व प्रथम देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज वेवस्था को लागु किया था। इसके बाद आंध्रप्रदेश पंचायती राज वेवस्था लागु करने वाला देश का पहला राज्य बना था। स्थानीय सरकार का उल्लेख सविंधान के 7वीं अनुसूची के राज्य सूचि में किया जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में पंचायतों का उल्लेख किया गया है और अनुच्छेद 246 में राज्य विधानमंडल को स्थानीय स्वशासन से संबंधित किसी भी विषय पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया है।
ग्रामीण स्तर पर लोकतंत्र की स्थापना के लिये 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1993 के माध्यम से पंचायती राज संस्थान को संवैधानिक दर्जा प्रदान की गई और उन्हें देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया। इस सविंधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों को आरक्षित किया गया एवं महिलाओं के लिए एक - तिहाई सीटें आरक्षित की गई। भारत में कुल 2.51 लाख पंचायतें हैं, जिनमें 2.39 लाख ग्राम पंचायतें, 6904 ब्लॉक पंचायतें और 589 जिला पंचायतें शामिल हैं।
पंचायती राज वेवस्था महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा को साकार करने की दिशा में बढ़ती हुई एक कदम है। उन्होंने एक ऐसे गाँव का सपना देखा था जहाँ हर कोई अपने हाथ का बना कपड़ा पहनता हो, देशी तेल प्रेस के तेल का उपयोग करता हो, और अपने द्वारा उत्पादित भोजन खाता हो। उनके सपनों के गांव में विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव रखने वाले 100 प्रतिशत साक्षर लोग होंगे और कोई छुआछूत, झगड़ों और चोरी से मुक्त नहीं होगा। इसलिए आदर्श गांव जिसका उन्होंने सपना देखा था वह एक स्वतंत्र इकाई या पूर्ण गणतंत्र होगा। वैसे भी महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत कि आत्मा गावों में बसती है और इस कथन की सार्थकता हमें दो साल पूर्व आएं कोरोना महामारी में भी देखने को मिली थी। जब शहर लोगों को निकाल रही थी, उनका जीना दुर्लभ हो गया तो गावों ने उन्हें खुले दिल से अपनाया।