कांग्रेस नेता राहुल गांधी हिंसा प्रभावित राज्य मणिपुर के दो दिवसीय दौरे पर आज इम्फाल पहुंचे। वे इम्फाल से 20 किलोमीटर ही आगे बढ़े थे कि उनके काफिले को बिष्णुपुर जिले में रोक दिया गया। बिष्णुपुर जिले के एसपी ने बताया कि राहुल गांधी समेत किसी भी नेता को हम आगे नहीं जाने दे सकते क्यूंकि उनकी सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है। यहाँ के हालात सही नहीं है, कल रात को भी हिंसा और आगजनी हुई है। अब पुलिस के आग्रह पर राहुल गांधी वापस इम्फाल एयरपोर्ट पर लौट कर वहां से हेलीकॉप्टर से जाएंगे चुराचांदपुर।
मणिपुर पिछले 58 दिनों से जातीय हिंसा की चपेट में है। जिसमे लगभग 120 लोगों की जाने जा चुकी है। अब तक करीब 50,000 लोग विस्थापित होकर 300 से ज्यादा रहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। राहुल गांधी 29-30 जून को इन्ही राहत शिविरों का दौरा करेंगे और पीड़ितों से मिलेंगे। वे इम्फाल एवं चुराचांदपुर में स्थित नागरिक समाज के प्रतिनिधियों से मिलेंगे और शांति बहाल करने की अपील करेंगे। राहुल तुइबोंग की ग्रीनवुड अकादमी, चुराचांदपुर के सरकारी कॉलेज एवं कोंजेंगबाम में सामुदायिक हॉल और मोइरांग कॉलेज पहुंचेंगे।
राहुल गांधी के काफिले को रोके जाने पर कांग्रेस ने ट्वीट कर कहा है कि राहुल गांधी जी मणिपुर हिंसा के पीड़ितों से मिलने जा रहे थे। BJP सरकार ने पुलिस लगाकर उन्हें रास्ते में रोक दिया। राहुल जी शांति का संदेश लेकर मणिपुर गए हैं। सत्ता में बैठे लोगों को शांति, प्रेम, भाईचारे से सख्त नफरत है। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए, ये देश गांधी के रास्ते पर चलेगा, ये देश प्यार के रास्ते पर चलेगा।
मणिपुर में क्यों भड़की हिंसा
मणिपुर में गैर-जनजाति समुदाय मैतेई की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है वहीं, जनजाति समुदाय से आने वाले कुकी और नागा की आबादी ४० फीसदी है। पिछले महीने मणिपुर हाईकोर्ट ने मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने के मांग पर मणिपुर सरकार को विचार करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया था। हाईकोर्ट के इसी आदेश के बाद नगा और कुकी जनजाति समुदाय भड़क गए। राज्य में इतनी बड़ी आबादी मैतेई समुदाय के होने के बाद भी इस समुदाय के लोग केवल मणिपुर के 10 फीसदी घाटी के ही क्षेत्र में रह सकते हैं। मणिपुर में एक कानून है जिसके अंतर्गत मैतेई समुदाय के लोग मणिपुर के 90 फीसदी क्षेत्र जोकि पहाड़ी क्षेत्र है वहां वे न बस सकते हैं और न ही जमीन खरीद सकते हैं।
दूसरी तरफ कुकी और नगा समुदाय के लोग जो कि 40 फीसदी है वो मणिपुर के 90 फीसदी इलाकों पर अपना दबदबा रखते हैं जो कि पहाड़ी क्षेत्र है। साथ ही इस समुदाय के लोग शेष बचे 10 फीसदी इलाका जो घाटी का क्षेत्र है और जहां मैतेई समुदाय का दबदबा है वहां भी जमीन खरीद सकते हैं कर बस सकते हैं।
सारा मसला इसी बात का है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में ही रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी 90 फीसदी से अधिक इलाके में रह सकती है।