मध्य प्रदेश में बकरीद का त्योहार नजदीक आते ही कुर्बानी को लेकर एक बार फिर विवादों ने जोर पकड़ लिया है। राजधानी भोपाल से लेकर विदिशा के गांवों तक इस बार धार्मिक परंपराओं और सामाजिक समरसता के बीच टकराव की स्थिति बनती दिख रही है। जहां एक ओर भोपाल में एक हिंदू संगठन ने पशु बलि के विरोध में अनोखी पहल की है, वहीं विदिशा जिले के हैदरगढ़ गांव में कुर्बानी को लेकर मामला अदालत तक पहुंच गया है।
भोपाल में इको-फ्रेंडली बकरों की पहल
भोपाल में संस्कृति बचाओ मंच नामक संगठन ने इस बार बकरीद पर पशु बलि के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए खास मुहिम शुरू की है। संगठन के प्रमुख चंद्रशेखर तिवारी ने बताया कि इस साल उन्होंने मिट्टी से बने 10 इको-फ्रेंडली बकरों का निर्माण कराया है, जिनमें से दो पहले ही बुक हो चुके हैं। इन प्रतीकात्मक बकरों की कीमत 1000 रुपये रखी गई है। उनका उद्देश्य लोगों को पशु हिंसा से दूर रहने और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता की ओर प्रेरित करना है।
तिवारी का कहना है कि पिछले चार वर्षों से वे इसी तरह का संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने मुस्लिम धर्मगुरुओं से अपील की है कि वे समुदाय में शाकाहारी या प्रतीकात्मक कुर्बानी जैसे विकल्पों को लेकर जागरूकता बढ़ाएं।
विदिशा के पंचायत ने कुर्बानी पर लगाई रोक, मामला पहुंचा हाईकोर्ट
दूसरी ओर, विदिशा जिले के हैदरगढ़ गांव में बकरीद के अवसर पर दी जाने वाली कुर्बानी को लेकर ग्राम पंचायत और मुस्लिम समुदाय के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है। मुस्लिम समुदाय ने परंपरा के अनुसार गांव के मैदान में कुर्बानी की अनुमति मांगी, लेकिन सरपंच सुनील विश्वकर्मा ने इसे खारिज कर दिया। उनका कहना है कि खुले में कुर्बानी से अन्य समुदायों की भावनाएं आहत हो सकती हैं और इससे सामाजिक तनाव भी बढ़ सकता है।
पंचायत से अनुमति न मिलने पर गांव के निवासी भूरा मियां ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, मगर कोर्ट ने यह मामला जिला प्रशासन के पास वापस भेज दिया। अब अंतिम फैसला एसडीएम द्वारा लिया जाएगा।
मुस्लिम समुदाय ने उठाए सवाल
गांव के मुस्लिम समाज का कहना है कि वर्षों से नियमानुसार एक तय स्थान पर कुर्बानी की जा रही है, तो इस बार नियमों में बदलाव क्यों किया जा रहा है? उनका कहना है कि पहले की पंचायतें भी मध्य प्रदेश पंचायत अधिनियम के तहत कुर्बानी की अनुमति देती रही हैं। समुदाय ने मांग की है कि बकरीद के तीनों दिनों में उसी पुराने स्थान पर कुर्बानी की अनुमति दी जाए।
क्या कहता है कानून और सामाजिक ताना-बाना?
यह मामला केवल धार्मिक भावनाओं से नहीं, बल्कि सामाजिक संतुलन और प्रशासनिक निर्णयों से भी जुड़ा हुआ है। प्रशासन के लिए यह चुनौतीपूर्ण है कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और कानून-व्यवस्था के बीच संतुलन कैसे साधा जाए। वहीं समाज के विभिन्न वर्गों से अपील की जा रही है कि वे आपसी सौहार्द बनाए रखें और संवेदनशील मसलों पर संयम से काम लें।
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बकरीद के इस पावन पर्व पर जहां एक ओर धर्म का पालन है, वहीं सामाजिक समरसता और आपसी समझदारी भी जरूरी है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि प्रशासन क्या फैसला लेता है और समाज इसे किस तरह स्वीकार करता है।