उत्तराखंड पंचायत चुनाव एक बार फिर टल गया हैं। राज्य सरकार ने प्रदेश भर की ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायतों में प्रशासकों की नियुक्ति कर दी है। हरिद्वार को छोड़कर बाकी सभी जिलों में यह आदेश लागू कर दिया गया है, जिससे साफ संकेत मिलते हैं कि फिलहाल चुनाव की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है।
1 जून को खत्म हुआ था जिला पंचायतों का कार्यकाल
राज्य में पंचायतों के कार्यकाल की समय सीमा मई और जून में पूरी हो रही थी। ग्राम पंचायतों का कार्यकाल 27 मई 2025, क्षेत्र पंचायतों का 29 मई 2025 और जिला पंचायतों का कार्यकाल 1 जून 2025 को समाप्त हो चुका है। इसके बावजूद सरकार समय पर चुनाव कराने में असफल रही है।
प्रशासकों की नियुक्ति से मिली अंतरिम व्यवस्था
सरकार ने अंतरिम प्रबंधन के तौर पर नई व्यवस्था लागू की है। इसके तहत:
- ग्राम पंचायतों में संबंधित विकासखंड में तैनात सहायक विकास अधिकारी (पंचायत)
- क्षेत्र पंचायतों में उप जिलाधिकारी (SDM)
- जिला पंचायतों में जिलाधिकारी (DM) को प्रशासक नियुक्त किया गया है।
शासन द्वारा जारी आदेश में बताया गया है कि अति आवश्यक परिस्थितियों के कारण चुनाव कराना संभव नहीं हो सका, इसीलिए प्रशासकों को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
हरिद्वार में अभी कोई नियुक्ति नहीं
दिलचस्प बात यह है कि पूरे प्रदेश में हरिद्वार जिला ऐसा है जहां फिलहाल प्रशासकों की नियुक्ति नहीं की गई है। इसे लेकर प्रशासनिक हलकों में चर्चा तेज है कि क्या हरिद्वार में जल्द चुनाव कराए जा सकते हैं, या फिर वहां भी यही प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
बड़ी संख्या में पंचायतों में नियुक्त हुए प्रशासक
राज्य भर में त्रिस्तरीय पंचायतों में बड़ी संख्या में प्रशासकों की नियुक्ति हुई है:
- 7478 ग्राम पंचायतें
- 2941 क्षेत्र पंचायतें
- 12 जिला पंचायत अध्यक्ष पद
नए परिसीमन के अनुसार आने वाले चुनावों में लगभग 7514 ग्राम पंचायतें, 2936 क्षेत्र पंचायतें, 343 जिला पंचायतें और 55,640 ग्राम वार्डों में प्रतिनिधि चुने जाने हैं।
चुनाव की संभावना जुलाई अंत तक
हालांकि सरकार ने स्पष्ट तारीख घोषित नहीं की है, लेकिन सूत्रों के अनुसार पंचायत चुनाव जुलाई के अंत तक कराए जा सकते हैं। लेकिन अभी तक चुनाव आयोग की ओर से कोई अधिसूचना जारी नहीं हुई है, जिससे संशय बरकरार है।
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उत्तराखंड में पंचायत चुनावों को लेकर एक बार फिर टालमटोल का रवैया सामने आया है। प्रशासकों की नियुक्ति से स्थानीय प्रशासनिक कामकाज तो जारी रहेगा, लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बार-बार टालने से लोगों में नाराज़गी भी बढ़ सकती है। अब निगाहें जुलाई पर हैं, जब चुनाव की संभावनाएं जताई जा रही हैं।