इज़राइल द्वारा ईरान के नटांज़ और तेहरान स्थित कई सैन्य और परमाणु ठिकानों पर 13 जून को किए गए हमलों में छह शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों की मौत हो गई। इन वैज्ञानिकों की हत्या को ईरान के परमाणु कार्यक्रम के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। हमलों के बाद क्षेत्र में तनाव चरम पर पहुंच गया है और ईरान ने इस घटना को “परमाणु आतंकवाद” करार देते हुए अमेरिका और इज़राइल पर सीधे तौर पर आरोप लगाया है।
मारे गए वैज्ञानिक और उनका योगदान
इस हमले में जिन छह वैज्ञानिकों की जान गई, वे ईरान के परमाणु कार्यक्रम की रीढ़ माने जाते थे।
- अब्दुल हमीद मिनोउचहर – शहीद बेहेश्ती विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और यूरेनियम संवर्धन के विशेषज्ञ। उन्होंने सेंट्रीफ्यूज तकनीक में उल्लेखनीय योगदान दिया था।
- अहमदरज़ा ज़ोल्फ़ाघारी – परमाणु इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और नटांज़ व फोर्डो संयंत्रों में सेंट्रीफ्यूज अपग्रेड प्रोग्राम में शामिल थे।
- सैयद अमीरहोसेन फेक्ही – रिएक्टर डिज़ाइन के विशेषज्ञ, अराक भारी जल रिएक्टर के विकास में अहम भूमिका निभाई।
- मोत्लाबीज़ादेह – ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन (AEOI) में वरिष्ठ इंजीनियर। मिसाइल और परमाणु तकनीक के संयोजन पर कार्यरत थे।
- मोहम्मद मेहदी तहरेनची – इस्लामिक आज़ाद विश्वविद्यालय के प्रमुख, जिन्होंने परमाणु अनुसंधान को शिक्षा प्रणाली से जोड़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- फेरेदून अब्बासी – पूर्व AEOI प्रमुख, यूरेनियम संवर्धन और हथियार विकास परियोजनाओं के मुख्य योजनाकार। 2010 में जानलेवा हमले से बच चुके थे।
ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर प्रभाव
इन वैज्ञानिकों की मौत से ईरान की परमाणु क्षमता को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यूरेनियम संवर्धन, रिएक्टर निर्माण और हथियार तकनीक जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अब रफ्तार धीमी हो सकती है। इस हमले के बाद ईरान को अपने परमाणु लक्ष्यों को फिर से व्यवस्थित करने में समय लगेगा।
ईरान की प्रतिक्रिया और क्षेत्रीय तनाव
ईरान ने इस हमले को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताते हुए संयुक्त राष्ट्र में शिकायत दर्ज की है। तेहरान सरकार ने साफ कहा है कि यह हमला केवल सैन्य नहीं, बल्कि “वैज्ञानिक समुदाय पर हमला” है। ईरानी रक्षा प्रतिष्ठान पर उठ रहे सवालों के बीच, यह हमला उनकी वायु रक्षा प्रणाली की विफलता को भी उजागर करता है।
इज़राइल की चुप्पी, लेकिन संकेत स्पष्ट
इज़राइल ने इस ऑपरेशन की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन उसकी सुरक्षा नीति में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर पूर्व में दिए गए बयानों से संकेत मिलते हैं कि यह कार्रवाई उसी रणनीति का हिस्सा हो सकती है — “पूर्व-खतरे की समाप्ति”।
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इन वैज्ञानिकों की हत्या से ईरान के परमाणु सपनों को तगड़ा झटका लगा है। जहां यह घटना ईरान की वैज्ञानिक क्षमताओं को धीमा कर सकती है, वहीं इससे क्षेत्रीय अस्थिरता भी और बढ़ गई है। आने वाले हफ्तों में ईरान की प्रतिक्रिया और इज़राइल की रणनीति मध्य पूर्व की दिशा तय कर सकती है।