आज की तारीख में दुनिया के लिये सबसे बड़ी समस्या बनता जा रहा है प्रदूषण. आठ साल पहले 2016 में चीन की राजधानी बीजिंग दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर था. पर दो साल बाद ही भारत के कानपुर शहर ने उसको पीछे छोड़ दिया.
आज हाल ये है कि दुनिया के दो ही शहर लाहौर और ढाका ही दिल्ली को दुनिया की सबसे प्रदूषित शहर बनाने से बचाये हुए हैं. चौथे पांचवें और छठवें स्थान पर भी दिल्ली के तीनों एनसीआर वाले शहर हैं – गाजियाबाद, नोएडा और फरीदाबाद.ये प्रदूषण ही एक ऐसा सबसे बड़ा कारण है कि लोगों के पास शहर छोड़ कर भागने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचा है.
मगर सच ये भी है कि हर कोई तो समुद्री और पहाड़ी इलाकों का रुख कर नहीं सकता ऐसी हालत में फिर एक ही रास्ता बचता है शहर वालों के लिये जो गांव की तरफ जाता है.पर आप हैरान रह जायेंगे ये जान कर कि एक हालिया रिसर्च कहती हैं कि हम चाहे बड़े शहर में रहें या समुद्र के किनारे रहें या कहीं पहाड़ों पर रहें -हमारे वातावरण का हमारे स्वास्थ्य औऱ ख़ुशियों पर बहुत गहरा प्रभाव नहीं पड़ता. .याने प्रभाव पड़ता तो है पर बहुत ज्यादा नहीं.
हालांकि अभी इस दिशा में शोध लगतातार जारी है और ये निष्कर्ष भी अभी शुरूआती दौर के अध्ययन को आधार बना कर कहा जा रहा है.
इंग्लैन्ड के पर्यावरण मनोवैज्ञानिक मैथ्यू व्हाइट ने इस दिशा में काफी रिसर्च की है. उनका कहना है कि गांव हो या शहरी पहाड़ हो या समुद्री तट – हमारे ऊपर हमारे वातावरण का जो प्रभाव होता है वो मिला-जुला होता है. जीवन पर प्रभाव डालने वाले अन्य तत्व यहां बड़ी भूमिका निभाते हैंं जैसे हमारी परवरिश, हमारी ज़िंदगी के हालात, हमारे शौक़ और हमारे कर्म.
पर दूसरी तरह इस बात में भी कोई संदेह नहीं कि हरियाली के नज़दीक रहने वाले लोगों पर किसी भी तरह के प्रदूषण का असर ज्यादा नहीं होता है. उनके जीवन में तनाव भी अपेक्षाकृत कम होता है.
देश के उद्योग-धंधे और सारा काम तो शहरों से ही चलते हैं. ऐसी हालात में शहर छोड़ कर जाने से बेहतर होगा कि गांव को ही शहर ले आयें. गांव हम प्रदूषण से मुक्त जीवन जीने जाना चाहते हैं तो शहर को ही प्रदूषण से मुक्त क्यों नहीं करते? शहरों में ज्यादा से ज्यादा हरियाली लाकर या लगा कर ऐसा किया जा सकता है. इसी तरह बहुत से और भी समझदारी के नियम हैं जिनका संकल्प करके शहरी जीवन को प्रदूषण के चंगुल से आजाद किया जा सकता है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि शहरों में रहने वालों को तनाव, तरह-तरह की एलर्जी, और सांस संबंधी बीमारियां अधिक होती है. फिर भी शहरी लोगों में मोटापे और आत्महत्या की दर कम होती है. दुर्घटनाओं में मर जाने का ख़तरा भी कम होता है और वृद्धावस्था में जीवन बेहतर गुजरता है.
शहर की भीड़, प्रदूषण और तनाव से बचने के लिए लोग अब गांव-देहात में रहना चाहते हैं. लेकिन ये इतना भी आसान नहीं है. शहरी जीवन के अभ्यस्त लोगों के लिए गाँव में रहना भी एक चुनौती है. वहां कीड़े-मकोड़ों से होने वाले कई तरह के इंफ़ेक्शन होने का ख़तरा गाँव में अधिक होता है.