हालाँकि इस दिशा में अभी भी विचार मंथन चल रहा है क्योंकि जैव ईंधन को खाद्य सुरक्षा की दृष्टी से पूरी तरह सफल नहीं माना जा सकता.
इसी साल फरवरी में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी -“इलेक्ट्रिसिटी 2025”. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने की इस रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल याने 2023 तक भारत की बिजली की मांग सात प्रतिशत बढ़ चुकी है. अगर ये बढ़ोत्तरी ऐसे ही गतिमान रही तो दो साल में याने वर्ष 2026 तक भारत चीन को पीछे छोड़ देगा.
यहां आवश्यकता को अविष्कार चाहिए. इस स्थिति में देश को ऊर्जा और अधिक चाहिए और उसके लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विकास न केवल जरूरी बल्कि अनिवार्य भी हो जाता है. विशेषज्ञ इस दिशा में पहला सरल व सफल समाधान जैव ईंधन को मानते हैं.
यहां यह चिंता यक्ष प्रश्न बन जाती है कि क्या जैव ईंधन खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से सफल है?
कुछ समय पहले ‘मन की बात’ में पीएम मोदी जैव ईंधन पर चर्चा की थी भाजपा नीत सरकार इस दिशा में क्या प्रयास कर रही है -इसका उल्लेख भी किया था. उस रेडियो मंच पर भी हमारे कर्मयोगी प्रधानमंत्री के द्वारा बताया गया था कि जैव ईंधन सतत ऊर्जा का प्रमुख स्रोत के रूप में सामने आया है जो देश की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने में सक्षम है.
जैविक पदार्थों से पैदा होते हैं
जैव ईंधन अर्थात बायोफ्यूल. बायोफ्यूल नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हैं, जो कि जैविक पदार्थों से पैदा होते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो कृषि अवशेष, पशु वसा, और कचरे से नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न होती है. विशेषज्ञ कहते हैं कि बायोफ्यूल कई प्रकार के होते हैं, लेकिन उनमे भी बायोडीजल और एथेनॉल सबसे प्रमुख हैं.
वैश्विक जैव ईंधन की मांग निरंतर बढ़ेगी
एथेनॉल पैदा बनता है गन्ना और मक्का जैसी फसलों से जबकि बायोडीजल पशु वसा, वनस्पति तेल, और शैवाल से तैयार किया जाता है. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा फोरम के आंकड़ों की मानें तो अगले छह साल में याने कि 2030 तक वैश्विक जैव ईंधन की मांग 200 बिलियन लीटर तक बढ़ सकती है.
कार्बन उत्सर्जन की दृष्टि से लाभकारी
इस दिशा में हुई एक अहम शोध बताती है कि जैव ईंधन को पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों के साथ मिलाकर उपयोग में लाने से कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है. छह साल पहले वर्ष 2018 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति बनाई थी, जिसके अंतर्गत सरकार द्वारा 2025-26 तक पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिश्रण और 2030 तक डीजल में 5% बायोडीजल मिश्रण को लक्ष्य बनाया गया गया है.
तेल आयात पर करोड़ों की बचत भी
इस तरह की नीति बनाने का प्रयोजन जीवाश्म ईंधन के आयात में कमी लाकर विदेशी मुद्रा की बचत करना है. वर्ष 2022-23 के अंतराल में भारत ने 502 करोड़ लीटर एथेनॉल की आपूर्ति की थी जहां तेल आयात पर 24,300 करोड़ रुपये की बचत भी हुई थी.
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में सहायक
भारत अभी भी एक कृषि प्रधान देश ही है जहाँ जैव ईंधन का उपयोग कई तरह से लाभकारी सिद्ध हो सकता है. इससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ भारत की लड़ाई में सहायता मिलती है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, बायोफ्यूल तो करीब करीब नब्बे प्रतिशत तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकते हैं.
नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य में सहायक
बायोडीजल की बात करें तो वो 78% कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है वहीं एथेनॉल 40 से 50 प्रतिशत तक उत्सर्जन को कम करता है. इस तरह आकलन करें तो भारत को 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने में अच्छी सहायता मिल सकती है.
दो सबसे बड़े फायदे
जैव ईंधन एक तरफ तो ग्रीन हाउस गैसेस को कम करने में सहायक होगा वहीं दूसरी तरफ वनरोपण और जैव विविधता संरक्षण को भी प्रोत्साहित करेगा. पर्यावरण की तरह ही सबसे अच्छी बात ये भी है कि जैव ईंधन से किसानों की आय में वृद्धि होगी और सरकार के लिए ‘किसानों की आय दोगुनी करने’ का लक्ष्य दुष्कर नहीं होगा.