मोदी सरकार द्वारा गैर बासमती चावल के निर्यात पर 20 जुलाई को रोक लगा दिया गया। भारत सरकार के इस फैसले का प्रभाव दुनिया भर में देखा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत के इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ऐसे फैसले पूरी दुनिया में हानिकारक प्रभाव डालते हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री पियरे-ओलिवियर गौरींचस ने कहा कि इस प्रकार के प्रतिबंधों से दुनिया के बाकी देशों में खाद्य कीमतों में अस्थिरता बढ़ने की संभावना है। आईएमएफ ने भारत से आग्रह किया है कि जल्द से जल्द ये प्रतिबंध हटा दें।
उन्होंने कहा कि भारत के प्रतिबंध का वैसा ही प्रभाव होगा जैसा कि रूस-यूक्रेन के बीच काला सागर समझौता टूटने से हो रहा है। गेहूं के शीर्ष निर्यातकों में शामिल यूक्रेन काला सागर के जरिये अपना गेहूं विश्व भर के बाजारों में निर्यात करता था। रूस द्वारा इस समझौते को तोड़े जाने के बाद अचानक से गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। गौरींचस ने कहा कि 2023 में वैश्विक अनाज कि कीमतें 10-15 % तक बढ़ सकती है।
भारत द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध का सबसे अधिक असर अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका में देखने को मिल रहा है। इन देशों में अफरा तफरी का माहौल है। इन देशों के सुपरमार्केट्स में पैनिक खरीददारी होने के कारण चावल की खरीदी पर एक सीमा तय कर दी गई है। इन देशों में चावल की कीमतें भी बढ़ने लगी है।
भारत सरकार ने ये कदम आगामी त्योहारों को देखते हुए खुदरा कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए लिया है। भारत में चावल उत्पादित राज्यों में मॉनसून असामान्य देखने को मिल रहा है। इसके कारण चावल की उपज कम होने की संभावना है। भारत 2022-23 में विश्व के कुल निर्यात में 40 फीसदी का योगदान दिया था। आपको बताते चलें की ये प्रतिबंध उसना चावल के निर्यात पर नहीं है। भारत विश्व भर में चावल का निर्यात सबसे अधिक करता है।