केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 2023-24 का आर्थिक सर्वेक्षण, जो कि कल पेश होने वाले बजट से पहले जारी किया गया, एक ऐसा डॉक्यूमेंट है जिसे तैयार करने के लिए नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री के स्पिन डॉक्टर्स को कड़ी मशक़्क़त करनी पड़ी होगी। इसमें अर्थव्यवस्था की “सब ठीक है” वाली गुलाबी तस्वीर पेश करने की पूरी कोशिश की गई है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि प्रधानमंत्री और भारत के लोगों के लिए, आर्थिक स्थिति इतनी निराशाजनक है कि कुछ कठोर तथ्य सामने आ ही जाते हैं.
कांग्रेस ने कहा कि खाद्य पदार्थों की महंगाई अनियंत्रित बनी हुई है, यह प्रति वर्ष लगभग 10% पर है। कुछ विशेष खाद्य पदार्थों की कीमतें तेज़ी से बढ़ रही हैं – अनाज 11%, सब्जियां 15%, मसाले 19%, दूध 7%। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित ग़रीब और मध्यम वर्ग है।
कोविड के बाद आर्थिक सुधार बेहद असमान रहा है। ग्रामीण भारत पीछे छूट गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में दोपहिया वाहनों की बिक्री, उपभोक्ता मांग और आर्थिक विकास के प्रमुख संकेतकों में से एक है – जो कि अभी भी 2018 की तुलना में कम है।
जयराम रमेश ने कहा कि आर्थिक सर्वेक्षण में मोदी सरकार की किसान विरोधी मानसिकता का बखान है। बिना तैयारी के और अनुचित ढंग से लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों एवं सस्ते आयात में बेतहाशा वृद्धि के साथ आयात-निर्यात नीति का दुरुपयोग, किसानों की आय को कमज़ोर करने के लिए चिह्नित किया गया है। गेहूं, धान, दालें, प्याज़, चीनी और खाद्य तेल – किसी भी तरह की खेती करने वाले किसान सरकार की नीति निर्माण की मनमानी से नहीं बचा है।
कांग्रेस ने आर्थिक सर्वेक्षण पर क्या कहा ?
● व्यापार नीति की विफलता ने भी भारत की मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को नष्ट करने में योगदान दिया है। 2014 के बाद से, चीन से आयात का प्रतिशत कुल आयात के 11% से बढ़कर 16% हो गया है। इन आयातों की अनियंत्रित डंपिंग ने घरेलू MSMEs को कंपिटीशन से बाहर कर दिया है, जिससे उन्हें बंद करना पड़ रहा है।
● हाउसिंग, एक महत्वपूर्ण क्षेत्र, ने भी ख़राब प्रदर्शन किया है। 2023 में, भारत में आवासीय अचल संपत्ति की बिक्री अब 2013 के स्तर पर वापस पहुंच रही है।
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कांग्रेस ने कहा कि आर्थिक सर्वेक्षण भी निजी निवेश उत्पन्न करने के संबंध में केंद्र सरकार की नीति निर्धारण की विफलता को स्वीकार करता है।
● कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए मोदी सरकार का दृष्टिकोण बेहद उदार रहा है – 1.5 लाख करोड़ रुपए के कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती और 2 लाख करोड़ रुपए की पीएलआई। लेकिन सरकार ने यह उदारता बदले में निवेश या नियुक्ति को प्रोत्साहित किए बिना दिखाई है।
● इस प्रकार, जब रियायतों की वजह से रिकॉर्ड मुनाफा कमाने में योगदान मिला है, निजी निवेश नहीं बढ़ा है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, “मशीनरी और उपकरण और बौद्धिक संपदा उत्पादों में निजी क्षेत्र का जीएफसीएफ में वित्त वर्ष 2013 तक चार वर्षों में संचयी रूप से केवल 35% की वृद्धि हुई है…इसे कहीं से भी अच्छा नहीं माना जा सकता है।”
● आर्थिक सर्वेक्षण ने मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ और औपचारिक रोजगार वृद्धि को प्रभावित करने वाले भारत के “एम एंड ई एवं आईपी उत्पादों में निवेश की धीमी गति” को चिह्नित किया है।
● यहां तक कि अनुसंधान एवं विकास, जो हमारे दीर्घकालिक विकास और निवेश के लिए आवश्यक है, भी एक जैसा ही बना हुआ है। यह आज जीडीपी के प्रतिशत के रूप में 2014 की तुलना में कम है, जब डॉ. मनमोहन सिंह ने कार्यालय छोड़ा था।
● याद रखें कि सीएमआईई डेटा निजी निवेश योजनाओं को 20 वर्षों में अपने सबसे निचले स्तर पर दिखाता है।
इसी तरह, आर्थिक सर्वेक्षण बेरोज़गारी की स्थिति को स्वीकार करने के लिए मजबूर है – जो मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता है।
● आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि हमें अगले 20 वर्षों तक हर साल लगभग 80 लाख नौकरियां पैदा करनी होंगी।
● सर्वेक्षण यह भी बताता है कि मेक इन इंडिया के तमाम प्रचार और दावे के बावजूद, “मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में रोज़गार सृजन पिछले दशक में कम हुआ है”।
● लेकिन, जो नहीं कहा गया है, वह यह है कि केंद्र सरकार की वर्तमान रणनीति पूरी तरह से डेटा हेरफेर और पकौडनॉमिक्स पर निर्भर है। 80 लाख नौकरी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार की बड़ी आर्थिक रणनीति में एक निश्चित बदलाव की आवश्यकता है।
कांग्रेस ने कहा कि बिना कुछ हास्यास्पद झूठ के आर्थिक सर्वेक्षण मोदी सरकार का दस्तावेज़ नहीं हो सकता था। लेकिन, उनमें से सबसे शर्मनाक यह आश्चर्यजनक दावा है कि “भयानक ग़रीबी पूरी तरह से समाप्त हो गई है।” इसकी वास्तविकता देखिए:
● सभी भारतीयों में से आधे लोग प्रति दिन 3 वक्त के भोजन का ख़र्च भी वहन नहीं कर सकते
● एनएफएचएस-5 के अनुसार, 3 में से 1 बच्चा अविकसित है और 4 में से 1 बच्चा पूरी तरह से प्रतिरक्षित नहीं है।
● देश का लगभग दो-तिहाई हिस्सा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मिलने वाले मुफ़्त खाद्यान्न पर निर्भर है
कांग्रेस ने कहा कि भारत कई वर्षों में अपनी सबसे अनिश्चित और कठिन आर्थिक स्थिति में है। आर्थिक सर्वेक्षण अर्थव्यवस्था का मनमाना दृश्य प्रस्तुत कर सकता है, लेकिन हमें उम्मीद है कि कल का बजट देश की वास्तविकताओं के अनुरूप होगा। यदि वित्त मंत्रालय अभी भी आईडियाज की तलाश में है, तो हम उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के न्याय पत्र 2024 की ओर ध्यान दिलाना चाहेंगे। प्रशिक्षुता का अधिकार, न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी – 400 रुपए प्रति दिन, कर आतंकवाद का अंत और आंगनबाड़ियों जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार समय की मांग है।