वायनाड से नव निर्वाचित सांसद प्रियंका गांधी ने संसद में पहला भाषण दिया। इसमें उन्होंने संविधान, किसानों, दलितों, अडानी, ईवीएम और जातिगत जनगणना पर अपनी बात रखी।
सांसद प्रियंका गांधी ने संविधान पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हमारा स्वतंत्रता संग्राम अनोखी लड़ाई थी, जो अहिंसा और सत्य पर आधारित थी. हमारी ये जो लड़ाई थी आजादी के लिए, बेहद लोकतांत्रिक लड़ाई थी. उसी आजादी की लड़ाई से एक आवाज उभरी, जो हमारे देश की आवाज थी, वो आवाज ही हमारा संविधान है. ये सिर्फ एक दस्तावेज नहीं है. बाबा आंबेडकर, मौलाना आजाद जी और जवाहरलाल नेहरू जी और उस समय के तमाम नेता इस संविधान को बनाने में सालों जुटे रहे. हमारा संविधान इंसाफ, अभिव्यक्ति और आकांक्षा की वो ज्योत है जो हर हिंदुस्तानी के दिल में जलती है.
संविधान एक सुरक्षा कवच है: प्रियंका गांधी
हमारा संविधान एक सुरक्षा कवच है, जो देशवासियों को सुरक्षित रखता है. न्याय का कवच है. एकता का कवच है. अभिव्यक्ति की आजादी का कवच है. दुख की बात ये है कि मेरे सत्तापक्ष के साथी जो बड़ी बड़ी बातें करते हैं, उन्होंने 10 सालों में ये सुरक्षा कवच तोड़ने का प्रयास किया है. संविधान में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय का वादा है, ये वादा सुरक्षा कवच है, जिसको तोड़ने का काम शुरू हो चुका है. लेटरल एंट्री और निजिकरण के जरिए सरकार आरक्षण को कमजोर करने का काम कर रही है. अगर लोकसभा में ये नतीजे नहीं आए होते तो संविधान बदलने का काम भी शुरू कर देती.
प्रियंका गांधी ने कहा कि आज जातिगत जनगणना की बात हो रही है. सत्तापक्ष के साथी ने इसका जिक्र किया. ये जिक्र इसलिए हुआ क्योंकि चुनाव में ये नतीजे आए. ये इसलिए जरूरी है ताकि हमें पता चले कि किसकी क्या स्थिति है. इनकी गंभीरता का प्रमाण ये है कि जब चुनाव में पूरे विपक्ष ने जोरदार आवाज उठाई जातिगत जनगणना होनी चाहिए. तो इनका जवाब था- भैंस चुरा लेंगे, मंगलसूत्र चुरा लेंगे. ये गंभीरता है इनकी.
प्रियंका गांधी ने कांग्रेस छोड़कर जाने वालों पर तंज कसते हुए कहा कि हमारे कुछ साथी वाशिंग मशीन में धुलकर इधर से उधर चलें गए। जब इधर थें तो उनपर दाग था और उधर चलें गए तो स्वच्छ हो गए।
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आज के राजा में आलोचना सुनने की हिम्मत नहीं
प्रियंका गांधी ने पीएम मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि पहले के राजा भेष बदलकर जनता के बीच जातें थें। अपनी आलोचना सुनते थें। भेष बदलने का शौक तो आज के राजा को भी है लेकिन आलोचना सुनने की हिम्मत नहीं है।