अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में पनामा नहर पर अमेरिका का नियंत्रण वापस लेने की इच्छा व्यक्त की है। उनका यह बयान पनामा नहर पर बढ़ते चीनी प्रभाव को लेकर चिंता व्यक्त करता है। पनामा नहर, जो अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ती है, वैश्विक व्यापार और अमेरिकी भू-राजनीतिक रणनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण रही है। ट्रंप का यह बयान उस बढ़ते चीनी प्रभाव के संदर्भ में भी देखा जा रहा है, जिसे अमेरिकी सुरक्षा और आर्थिक हितों के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा है।
पनामा नहर का ऐतिहासिक महत्व
पनामा नहर, जो 1914 में पूरी हुई, वैश्विक समुद्री व्यापार का एक अहम हिस्सा बन गई है। इस नहर ने अमेरिका को अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के बीच तेजी से जहाजों के आवागमन की सुविधा दी, जिससे उसके व्यापार और सैन्य गतिविधियों को मजबूती मिली। 20वीं सदी के युद्धों और शीत युद्ध में नहर ने अमेरिका को महत्वपूर्ण रणनीतिक लाभ भी दिया।
1904 में पनामा को कोलंबिया से स्वतंत्रता मिलने के बाद अमेरिका ने नहर बनाने का अधिकार हासिल किया। हालांकि, 1977 में कार्टर-टोरिजोस संधि के तहत अमेरिका ने 1999 में नहर का नियंत्रण पनामा को सौंप दिया। इसके बाद से पनामा नहर प्राधिकरण (ACP) नहर का प्रबंधन करता है, लेकिन अमेरिका और पनामा के बीच व्यापारिक और रणनीतिक संबंध मजबूत बने रहे हैं।
पनामा नहर का आर्थिक और सामरिक महत्व
पनामा नहर आज भी वैश्विक व्यापार का अहम हिस्सा है। यह नहर सालाना लगभग 14,000 जहाजों को पार करती है, जो वैश्विक समुद्री व्यापार का 6 प्रतिशत है। अमेरिका, जो नहर का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है, अपने पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच माल भेजने के लिए पनामा नहर पर निर्भर है।
सामरिक दृष्टिकोण से भी पनामा नहर अमेरिका के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। नहर पर नियंत्रण रखने से अमेरिका अपनी नौसेना को दोनों महासागरों के बीच तेजी से तैनात कर सकता है, जो वैश्विक सैन्य अभियानों के लिए आवश्यक है।
चीन का बढ़ता प्रभाव और ट्रंप की चिंता
चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत, चीन ने पनामा में भारी निवेश किया है। चीनी कंपनियां नहर के आसपास के बंदरगाहों और बुनियादी ढांचे में निवेश कर रही हैं, जिससे अमेरिकी हितों पर संकट मंडराता है। हांगकांग स्थित Hutchison Whampoa, जो चीन का एक प्रमुख कंपनी समूह है, नहर के दोनों छोर पर महत्वपूर्ण बंदरगाहों का संचालन करता है।
ट्रंप और उनके समर्थकों का मानना है कि चीनी निवेश से न केवल अमेरिकी व्यापार को नुकसान हो सकता है, बल्कि किसी युद्ध या संघर्ष की स्थिति में चीन नहर का संचालन रोक सकता है, जिससे अमेरिका की सैन्य और आर्थिक क्षमता पर असर पड़ सकता है।
ट्रंप का पनामा नहर पर नियंत्रण की वापसी का बयान
अपने बयान में ट्रंप ने पनामा नहर को लेकर कहा कि अमेरिका को इसका नियंत्रण फिर से प्राप्त करना चाहिए। उनका कहना है कि 1999 में नहर का नियंत्रण पनामा को सौंपना एक “ऐतिहासिक भूल” थी, जिसने अमेरिकी प्रभाव को कमजोर कर दिया। उनका यह बयान वैश्विक प्रतिस्पर्धा में चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देने की एक कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।
ट्रंप के प्रस्ताव की चुनौतियां
पनामा नहर पर फिर से अमेरिकी नियंत्रण की कोशिश कूटनीतिक और भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से कठिन हो सकती है। पनामा, जो एक संप्रभु देश है, इस नियंत्रण को स्वीकार नहीं करेगा और इससे अमेरिका और पनामा के संबंधों में तनाव आ सकता है। साथ ही, चीन की प्रतिक्रिया भी तीखी हो सकती है, जिससे दोनों महाशक्तियों के बीच संघर्ष और बढ़ सकता है।
क्या होगा अगर ट्रंप ने नहर पर किया नियंत्रण?
पनामा नहर 21वीं सदी में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक और आर्थिक संपत्ति बनी हुई है। हालांकि, ट्रंप के द्वारा पनामा नहर पर नियंत्रण वापस पाने की कोशिश को लेकर जो चिंताएं उठाई जा रही हैं, वे निराधार नहीं हैं। अगर ट्रंप ऐसा कदम उठाने की कोशिश करते हैं, तो इसका वैश्विक परिणाम हो सकता है। चीन के प्रभाव के मद्देनजर अमेरिका को इसे कूटनीतिक तरीके से निपटाना होगा, वरना यह कदम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विवाद और तनाव का कारण बन सकता है।
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पनामा नहर पर अमेरिका का नियंत्रण, विशेष रूप से चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में, एक जटिल मुद्दा बन चुका है। ट्रंप का यह बयान इस बात का संकेत है कि अमेरिका अपनी वैश्विक साख और सुरक्षा हितों को लेकर चिंतित है। हालांकि, पनामा नहर पर फिर से नियंत्रण प्राप्त करने की प्रक्रिया बेहद चुनौतीपूर्ण होगी और इसका राजनीतिक और कूटनीतिक परिणाम गंभीर हो सकते हैं।