जनवरी 2014 में, एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था, “मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि भारत के अगले प्रधानमंत्री यूपीए से होंगे। मुझे विश्वास है कि मोदी, चाहे उनकी कोई भी मेरिट हो, प्रधानमंत्री के रूप में भारत के लिए एक आपदा साबित होंगे।”
यह बयान 2014 के आम चुनावों के संदर्भ में दिए गए थे, जब देश में तीव्र राजनीतिक वातावरण था और चुनावी मुकाबला अपनी उच्चतम शिखर पर था। डॉ. सिंह के यह बयान यूपीए और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के बीच गहरे वैचारिक विभाजन को दर्शाते थें।
नोटबंदी का किया कड़ी आलोचना
नवंबर 2016 में डॉ. सिंह ने मोदी सरकार द्वारा लागू की गई नोटबंदी नीति को “संगठित लूट और कानूनी लूटपाट” करार दिया था। उन्होंने राज्यसभा में इस पर कठोर आलोचना करते हुए कहा था कि ₹500 और ₹1,000 के नोटों को बंद करना देश की अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी साबित हुआ। हालांकि डॉ. सिंह शांत स्वभाव के लिए जाने जाते हैं, लेकिन उन्होंने मोदी सरकार की नीतियों पर खुलकर अपनी बात रखी, खासकर जब बात देश की आर्थिक स्थिति और शासन व्यवस्था की हो।
लोकतांत्रिक संस्थाओं पर खतरे का संकेत
डॉ. सिंह, जिन्हें उनके बौद्धिक दृष्टिकोण और शांत स्वभाव के लिए सराहा जाता है, ने हमेशा मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाओं की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र की ताकत उसके संस्थानों में और कानून के शासन के प्रति सम्मान में निहित है।” उनका मानना था कि मोदी सरकार के तहत प्रमुख संस्थाओं जैसे न्यायपालिका, भारतीय रिजर्व बैंक, और अन्य नियामक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है। उनका कहना था कि राजनीतिक हस्तक्षेप इन संस्थाओं की स्वतंत्रता को समाप्त कर रहा है, जिससे देश की लोकतांत्रिक संरचना को खतरा हो रहा है।
उन्होंने यह भी चिंता व्यक्त की कि देश में असहमति और विविध विचारों को दबाया जा रहा है। डॉ. सिंह के अनुसार, लोकतंत्र के लिए विपक्ष की आवाज़ और विचारों का विरोध आवश्यक है।
आर्थिक नीतियों की कड़ी आलोचना
1991 में भारत के आर्थिक उदारीकरण के वास्तुकार रहे मनमोहन सिंह ने मोदी सरकार की दो प्रमुख आर्थिक नीतियों – Goods and Services Tax (GST) और नोटबंदी – की कड़ी आलोचना की।
जहां तक GST की बात थी, डॉ. सिंह ने इसकी त्वरित और अधूरी योजना को लेकर असंतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इसमें सही तरीके से सभी हितधारकों से परामर्श नहीं किया गया, जिससे छोटे और मझोले व्यवसायों में गड़बड़ी और भ्रम का माहौल बना। इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को महंगाई का सामना करना पड़ा, बजाय इसके कि GST के जरिए कराधान को सरल बनाया जाता।
नोटबंदी पर उनका आरोप था कि यह “सदी का सबसे बड़ा घोटाला” था। उन्होंने कहा कि यह नीति काले धन और भ्रष्टाचार पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाई और इसके परिणामस्वरूप देश की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से छोटे व्यवसायों और असंगठित क्षेत्र, को भारी नुकसान हुआ।
विदेश नीति पर चिंता
मनमोहन सिंह की चिंता सिर्फ आंतरिक मुद्दों तक सीमित नहीं थी, उन्होंने विदेश नीति पर भी सवाल उठाए। उनकी प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल में, भारत ने वैश्विक शक्तियों और पड़ोसियों के साथ संतुलित और व्यावहारिक विदेश नीति अपनाई थी। वहीं मोदी सरकार की विदेश नीति को लेकर डॉ. सिंह ने असमंजस और आक्रामक रुख की आलोचना की। उनका मानना था कि भारत को वैश्विक मंच पर खुद को अलग-थलग नहीं करना चाहिए और पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखना चाहिए।
संविधान और विपक्ष की भूमिका
डॉ. सिंह ने हमेशा यह कहा कि लोकतंत्र में स्वस्थ विपक्ष का होना बेहद जरूरी है। “लोकतंत्र बहस और असहमति पर फलता-फूलता है। विपक्ष को अपनी भूमिका प्रभावी ढंग से निभानी चाहिए,” उन्होंने भारत टुडे के एक साक्षात्कार में कहा। उनका यह बयान यह इंगित करता है कि विपक्ष को व्यक्तिगत हमलों के बजाय नीति और शासन पर स्वस्थ चर्चा करनी चाहिए।
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डॉ. मनमोहन सिंह ने हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों, कारण-आधारित संवाद और विपक्ष की मजबूत भूमिका की ओर संकेत किया है। उनका दृष्टिकोण देश की समृद्धि और स्थिरता के लिए जरूरी है, जो मौजूदा समय में और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।