संभल, कुंभ मेले और सनातन को लेकर जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि महाराज ने अपने महत्वपूर्ण दृष्टिकोण को सामने रखा है.जानिए क्या कहा सनातन और महाकुंभ पर
जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि महाराज ने मीडिया से बात करते हुए कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय रखी. कुम्भ में गैर सनातनियों के प्रवेश के सवाल पर उन्होंने कहा कि महाकुंभ सनातनधर्मियों का पर्व है इसलिए यह निर्णय ठीक है. यहां किसी भी गैर सनातनधर्मी को व्यावसायिक गतिविधि से दूर रखा जाना चाहिए.
एक नहीं अनेक कारण
स्वामी यतींद्रानंद गिरि महाराज ने कहा कि महाकुम्भ में इस निषेध के एक नहीं अनेक कारण हैं, जो प्रायः हम देखते सुनते रहते हैं अतएव मां गंगा जी की गोद में जो भी व्यक्ति डुबकी लगाएगा, वही सनातनधर्मी हो सकता है.
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अब मंदिर स्थापित किए जाएंगे
संभल पर अपने विचार रखते हुए स्वामी यतींद्रानंद गिरि महाराज ने कहा कि संभल कलियुग का नया तीर्थ है. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि देश में जहां भी मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है वहां अब मंदिर स्थापित किए जाएंगे. उन्होंने कहा कि भगवान भोलेनाथ ने अपना डमरू बजाकर स्पष्ट संदेश दे दिया है कि सभी लोग जाग जाओ! अब कलियुग में संभल नया तीर्थ बनने जा रहा है!
कलियुग का नया तीर्थ
संभल के वर्तमान परिदृश्य पर स्वामी जी ने कहा कि संभल कलियुग का नया तीर्थ है. भगवान् भूतनाथ का डमरू वहां बजना शुरू हो गया है. मुस्लिमों से भारत के साधु संतों ने पहले अयोध्या, मथुरा व काशी ही मांगा था जो उन्होंने नहीं दिया. अब स्थिति ये है कि जहां भी मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ है वहां अब मंदिर स्थापित किए जाएंगे.
बृहस्पति ने व्यवस्थाएं बनाईं
भारत की संस्कृति-परंपरा अत्यंत प्राचीन है कुंभ इस बात का प्रमाण है. इसका शुभारंभ सृष्टि के मूल उत्पति से हुआ. सृष्टि की रचना किस तरह होगी, उसका आधार क्या होगा, इसका ध्यान रख कर देवगुरु बृहस्पति ने ये सभी व्यवस्थाएं बनाईं. महाकुंभ का अद्भुत संयोग बृहस्पति गुरु के आधार पर बनता है.
संत समागम का मूल आधार
स्वामी यतींद्रानंद गिरि महाराज ने कहा, प्राचीन समय से भारत की चारों दिशाओं में होने वाले विशाल संत समागम का मूल आधार कुंभ ही रहा है. वहां संत समाज विचार मंथन के बाद तात्कालिकता को आधार बना कर समाज के लिए आगामी व्यवस्थाओं पर निर्णय दिया करते थे. समाज-राष्ट्र में यही व्यवस्थाएं लागू होती थीं। आज भी कुंभ में संत समाज कुछ निर्णय लेता है जो भारत के समाज में व्यवस्था के तौर पर लागू होती है.