लंबे समय से यह धारणा रही है कि बड़े शहरों में रहने वाले लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे ज्यादा बैंक लोन लेते हैं। लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ताज़ा रिपोर्ट ने इस सोच को झटका दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, बीते पांच वर्षों में महानगरों की तुलना में ग्रामीण, अर्ध-शहरी और छोटे शहरों में लोन लेने की प्रवृत्ति में तेज़ इजाफा हुआ है।
महानगरों में घटा लोन का हिस्सा
आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में जहां कुल बैंक लोन में महानगरों की हिस्सेदारी 63.5 प्रतिशत थी, वह अब घटकर 2024 तक 58.7 प्रतिशत रह गई है। इसका साफ़ मतलब है कि अब देश के छोटे शहर और गांव बैंक ऋण के बड़े हिस्सेदार बनते जा रहे हैं। यह बदलाव देश के आर्थिक ढांचे में आ रहे संतुलन को भी दर्शाता है।
ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों की शाखाओं का बेहतर प्रदर्शन
गांव और कस्बों में मौजूद बैंकों ने ऋण वितरण के मामले में खासा अच्छा प्रदर्शन किया है। जहां महानगरों में लोन की वृद्धि दर में गिरावट देखी गई है, वहीं दूसरी ओर इन क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं का विस्तार और ऋण वितरण में स्पष्ट उछाल दर्ज हुआ है।
हालांकि, महानगरों में लोन वितरण में गिरावट के बावजूद, जमा राशि में सुधार देखने को मिला है। रिपोर्ट के मुताबिक, महानगरों में वार्षिक जमा में 11.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह वृद्धि 10.1 प्रतिशत, अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 8.9 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 9.3 प्रतिशत रही है।
ऋण और जमा वृद्धि दर में गिरावट
RBI के आंकड़ों से यह भी स्पष्ट हुआ है कि बैंक लोन की कुल वृद्धि दर में भी गिरावट आई है। जहां पिछले पांच वर्षों में ऋण वृद्धि दर 15.3 प्रतिशत थी, वह वित्त वर्ष 2024-25 की शुरुआत तक घटकर 11.1 प्रतिशत रह गई है। इसी तरह जमा राशि में वृद्धि की दर भी पांच साल पहले 13 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 10.6 प्रतिशत पर आ गई है।
सावधि जमा पर घटती बचत जमा की हिस्सेदारी
ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बावजूद बचत खातों की हिस्सेदारी में गिरावट देखी जा रही है। दो साल पहले जहां बचत जमा की हिस्सेदारी 33 प्रतिशत थी, वह एक साल पहले घटकर 30.8 प्रतिशत और अब और गिरकर 29.1 प्रतिशत रह गई है। इसका एक प्रमुख कारण सावधि जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट) पर मिलने वाला अपेक्षाकृत अधिक ब्याज है, जिससे ग्राहक अब शॉर्ट-टर्म सेविंग्स की बजाय फिक्स्ड टर्म डिपॉजिट की ओर झुक रहे हैं।
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RBI की रिपोर्ट यह साफ इशारा करती है कि अब बैंकिंग व्यवहार में बदलाव आ रहा है। महानगरों में जहां पहले लोन की मांग ज़्यादा होती थी, अब वहां धीमापन देखा जा रहा है। इसके विपरीत, गांवों और छोटे शहरों में आर्थिक गतिविधियों के बढ़ने के साथ-साथ ऋण लेने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। यह बदलाव भारत की व्यापक आर्थिक तस्वीर को संतुलित और समावेशी बनाने की दिशा में एक सकारात्मक संकेत हो सकता है।