राजस्थान विधानसभा चुनाव की 199 सीटों पर मतदान शनिवार यानि 25 ऑक्टूबर को समाप्त हो चुकी है। राजस्थान विधानसभा में कुल 200 सीटें है लेकिन श्रीगंगानगर जिले की करणपुर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार गुरमीत सिंह कूनर के निधन के कारण चुनाव आयोग ने वहां मतदान स्थगित कर दिया था। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान विधानसभा की 199 सीटों पर 75.45 प्रतिशत वोटिंग हुई है। 2018 के विधानसभा चुनाव से 0.74 प्रतिशत मतदान अधिक हुआ है। 2018 में 74.71 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार के चुनाव में कुल 5.25 करोड़ मतदाता और 1863 प्रत्याशी मैदान में थे। चुनाव खत्म होने के बाद से ही राज्य में वोटिंग ट्रेंड और हार-जीत को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई है।
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राजस्थान में प्रत्येक पांच साल पर सरकार बदलने की रिवाज चली आ रही है। राजस्थान विधानसभा चुनाव का पिछले 20 साल का वोटिंग ट्रेंड यह बताता है कि जब भी मतदान प्रतिशत पिछले बार के मुकाबले घटा है तो सीधे-सीधे कांग्रेस को फायदा पहुंचा है और सरकार कांग्रेस की बनी है। जब भी मतदान प्रतिशत बढ़ा है तो भारतीय जनता पार्टी को लाभ पहुंची है और सरकार बीजेपी की बनी है। चुनाव का नतीजा 3 दिसंबर को आएगा तब पता चल पाएगा कि राज बदलेगा या रिवाज।
इस बार राजस्थान विधानसभा का चुनाव भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ी है तो कांग्रेस मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के चेहरे पर। भाजपा ने चुनाव में भ्रष्टाचार और पेपर लीक के मुद्दे पर चुनाव लड़ा तो कांग्रेस मुख्यमंत्री गहलोत के कल्याणकारी योजना पर। अभी तक जो सूचना मिल रही है उसमें बीजेपी बहुमत के करीब पहुंचती दिख रही है। हालांकि कुछ पत्रकारों का मानना है कि कांग्रेस अगर 80-90 सीट भी जीत जाती है और बीजेपी साधारण बहुमत आने पर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री नहीं बनाती है तो अशोक गहलोत की किस्मत बदल सकती है, निर्दलीय और हनुमान बेनीवाल के विधायक के साथ ही कुछ वसुंधरा समर्थक भाजपा के विधायकों के बल पर। लेकिन ऐसा लगता है कि आगामी लोकसभा चुनाव और कर्नाटक चुनाव से सीख लेते हुए भाजपा वसुंधरा राजे को साधारण बहुमत आने पर मुख्यमंत्री बना दे और आगामी लोकसभा चुनाव के बाद सीएम बदल दे।
ख़बरों के मुताबिक अशोक गहलोत ने यह चुनाव पूरा दमखम के साथ लड़ा है। अशोक गहलोत के खिलाफ कोई विरोध जनता में नहीं देखने को मिली। उनके द्वारा चलाए जा रहे योजना का लाभ भी लोगों को मिला। गहलोत के खिलाफ जो दो चीजें गई है, जो उनके सरकार बनाने में बाधा बन सकती है, वह है उनके विधायक के खिलाफ नाराजगी और सचिन पायलट को साथ में लेकर चुनाव नहीं लड़ना। जमीन पर ऐसी स्थिति हो गई थी कि गहलोत के जाति के लोग सचिन पायलट समर्थक विधायक को वोट नहीं दे रहे थे तो सचिन पायलट के जाति के लोग अशोक गहलोत समर्थक विधायक को वोट नहीं कर रहे थे। विधायक के खिलाफ नाराजगी होने के बाद भी गहलोत ने हाईकमान से जिद कर के उन विधायक को टिकट दिलवा दिया जोकि अब उनको भारी पड़ने जा रहा है।
इस बार राजस्थान में सबसे ज्यादा जैसलमेर में 82.32 प्रतिशत मतदान हुआ है। उसके बाद प्रतापगढ़ में 82.07%, बांसवाड़ा में 81.36% और हनुमानगढ़ में 81.30 प्रतिशत वोटिंग हुई। राज्य में सबसे कम मतदान पाली में 65.12 प्रतिशत हुआ है। उसके बाद सिरोही में 66.62%, करौली में 68.38%, जालोर में 69.56 % और सवाई माधोपुर में 69.91 % वोटिंग हुई है।
क्या कहता है वोटिंग ट्रेंड
राजस्थान विधानसभा चुनाव का वोटिंग ट्रेंड कहता है कि जब भी मतदान प्रतिशत कम होता है तो कांग्रेस की सरकार बनती है, वहीं जब मतदान प्रतिशत बढ़ा है तो बीजेपी की सरकार बनी है। अशोक गहलोत पहली बार 1998 में मुख्यमंत्री बने थें। उस चुनाव में 63.39 प्रतिशत मतदान हुआ था। 2003 में 3.79 प्रतिशत मतदान बढ़ी और वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी। 2008 में 0.93 प्रतिशत मतदान घटी और कांग्रेस की सरकार बनी। 2003 में 67.18 प्रतिशत और 2008 में 66.25 प्रतिशत मतदान हुई थी। 2013 में फिर 8.79 प्रतिशत मतदान बढ़ी और सरकार बीजेपी की बनी। 2018 के चुनाव में 0.98 प्रतिशत मतदान कम हुई और फिर कांग्रेस की सरकार बनी। अगर हम इन 20 सालों का वोटिंग ट्रेंड देखते है तो पता चलता है कि मतदान प्रतिशत में एक प्रतिशत से कम का भी बदलाव सरकार बदल देती है।
1998 में कांग्रेस को 153, बीजेपी को 33 सीटें, 2003 में बीजेपी को 120, कांग्रेस को 56, 2008 में कांग्रेस को 96 , बीजेपी को 78 , 2013 में बीजेपी को 163 और कांग्रेस को 21, तथा 2018 में कांग्रेस को 99, बीजेपी को 73 सीटें प्राप्त हुई थी।