प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन दिवसीय अमेरिकी दौरे पर गए थें। पीएम मोदी के दौरे के समय ऐसी दो घटना घटी जिसने सबका ध्यान आकर्षित किया और अमेरिका का दोहरा मापदंड सामने लाया। पहली घटना पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे पर जाने से ठीक पहले की है जब अमेरिका के शीर्ष अधिकारी खालिस्तान समर्थक नेताओं से मुलाक़ात की। दूसरी घटना पीएम मोदी के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल का अमेरिका न जाना है।
खालिस्तान समर्थक नेताओं से मुलाक़ात
पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे से ठीक पहले 19 सितम्बर को व्हाइट हाउस में अमेरिकी शीर्ष अधिकारी खालिस्तानी समर्थक नेताओं से मिलते हैं। अमेरिका का यह रवैया भारत पर दवाब बनाने के तौर पर देखा जा रहा है। एक तरफ अमेरिका और कनाडा भारत विरोधी लोगों को शरण देता है और जब उस देश में उसके साथ कुछ होता है तो भारत पर आरोप लगाता है। अमेरिका में रह रहे खालिस्तानी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश 2023 में रची गई थी। इस साजिश में अमेरिका भारत के शामिल होने की बात कहता है।
गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अपनी हत्या की साज़िश को लेकर न्यूयॉर्क की एक अदालत में याचिका दाखिल की है। उस याचिका पर न्यूयॉर्क की एक अदालत ने भारत के NSA अजित डोभाल, निखिल गुप्ता और पूर्व रॉ प्रमुख सामंत गोयल को समन भेजा है। इन भारतीय शीर्ष अधिकारीयों को इस सामान का जवाब 21 दिनों के अंदर देना है।
क्या इसी समन के कारण अजित डोभाल अमेरिका नहीं गए?
जब भी किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष एक-दूसरे से औपचारिक मुलाकात करते हैं तो दोनों देशों के डेलीगेशन में समान पद के लोग शामिल होतें है। यह डिप्लोमेसी का तकाजा होता है। पीएम मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडन जब मिले तो उस डेलीगेशन में अमेरिका की तरफ से राष्टपति के अलावा विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलविन और भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी शामिल थें। वहीं भारत की तरफ से पीएम मोदी के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा शामिल थें। जिसकी तस्वीर भी सामने आई।
भारत की तरफ से अमेरिकी दौरे पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल का ना होना लोगों को अचरज में डाल दिया। ऐसा बहुत कम होता है कि पीएम मोदी के विदेशी दौरे पर उनके साथ एनएसए अजित डोभाल न हों। अजित डोभाल को समन भेजने के समय पर भी सवाल उठ रहा है।
विदेशी मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी ने इस घटना पर क्या कहा?
विदेशी मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी ने खालिस्तानी नेताओं से अमेरिकी अधिकारियों की मुलाक़ात पर लिखा कि बाइडन प्रशासन भारत के खिलाफ सिख उग्रवाद कार्ड का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है। इसके द्वारा साझा की गई अधूरी जानकारी के कारण कनाडा का भारत के साथ राजनयिक विवाद शुरू हो गया।
इसके साथ ही उन्होंने नई दिल्ली द्वारा प्रतिक्रिया न देने पर सवाल उठाते हुए कहा कि व्हाइट हाउस द्वारा अलगाववादी सिख कार्यकर्ताओं की मेजबानी के चार दिन बाद, बाइडन-मोदी बैठक की पूर्व संध्या पर उन्हें आश्वासन दिया गया कि उनकी चिंताएं अमेरिकी चिंताएं थीं, नई दिल्ली ने अभी तक भारत के खिलाफ खालिस्तान कार्ड के इस खुले खेल पर प्रतिक्रिया नहीं दी है। निर्लज्जता कब एक गुण बन गई?
https://twitter.com/Chellaney/status/1837491786454859974
एक तरफ अमेरिका चीन को लेकर भारत की मदद चाहता है दूसरी तरफ …
एक तरफ अमेरिका चाहता है कि चीन को लेकर भारत उसकी मदद करें। दूसरी तरफ वो भारत पर अंकुश लगाने के लिए खालिस्तान को बढ़ावा दे रहा है जो भारत की अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरा है। भारत पहले भी खालिस्तान का दंश झेल चुका है। इसके अलावा बांग्लादेश में उसके द्वारा किया गया तख्तापलट किसी से छुपा नहीं है। बांग्लादेश की सत्ता पर आसीन दलों का भारत विरोधी रुख सबको पता है। साथ ही बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रही हमला पर उसकी चुप्पी भी संदेह पैदा करती है।
ब्रह्मा चेलानी ने बांग्लादेश को लेकर अमेरिका पर उठाया सवाल
बांग्लादेश को लेकर ब्रह्मा चेलानी लिखते हैं कि बाइडन ने लंबे समय से दावा किया है कि अमेरिका निरंकुशता के खिलाफ लोकतंत्र की वैश्विक लड़ाई लड़ रहा है। अब, बांग्लादेश के नए सैन्य-स्थापित, इस्लाम-समर्थक शासन पर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहायता की बौछार करने के बाद, वह कल न्यायेतर हत्याओं और अन्य मानवाधिकारों के हनन के बावजूद, शासन के प्रमुख मुहम्मद यूनुस से मिलेंगे।
https://twitter.com/Chellaney/status/1838177676978180343
ब्रह्मा चेलानी ने बांग्लादेश को लेकर अमेरिका के रुख पर लिखा कि बाइडन प्रशासन, अपदस्थ प्रधान मंत्री के उनके तख्तापलट में अमेरिकी संलिप्तता के आरोप से इनकार करते हुए, मनमाने ढंग से गिरफ्तारियों, अदालतों में बंदियों पर शारीरिक हमले और स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों में कटौती सहित दुर्व्यवहारों पर स्पष्ट रूप से चुप रहा है। नए शासन ने शिक्षाविदों, पत्रकारों और पूर्व न्यायाधीशों को भी जेल में डाल दिया है।
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भारत के पड़ोसी देशों की वर्तमान स्थिति
भारत के पड़ोसी देशों की वर्तमान स्थिति की बात करें तो नेपाल और श्रीलंका में चीन समर्थित वामपंथी सरकारें हैं। मालदीव में इस्लामी सरकारें, बांग्लादेश में भारत विरोधी सरकारें जिसके पीछे अमेरिका का हाथ है, म्यांमार में भारत विरोधी सैन्य सत्ता, पाकिस्तान और चीन तो हमेशा से भारत विरोधी रहा ही हैं।