भूजल स्तर में सुधार और जल संरक्षण को लेकर दुर्ग जिला देशभर में एक मिसाल बनकर उभरा है। जिले की इस उल्लेखनीय उपलब्धि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली है। जल संरक्षण की दिशा में किए गए कार्यों के लिए दुर्ग जिला पंचायत का नाम गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है।
गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के डायरेक्टर डॉ. मनीष विश्नोई ने दुर्ग जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) बजरंग दुबे को इस कार्य के लिए प्रमाणपत्र सौंपा। उन्होंने कहा कि “एक साथ इतने बड़े पैमाने पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम यानी सोकपिट निर्माण को देखकर हम हैरान हैं। यह कार्य जल संरक्षण के क्षेत्र में मिसाल बन चुका है।”
पाटन ब्लॉक की ग्राम पंचायतों की अग्रणी भूमिका
इस प्रयास में खास भूमिका पाटन, दुर्ग और धमधा विकासखंडों की ग्राम पंचायतों की रही, जहां प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बन रहे घरों में एकजुट होकर सोकपिट (वाटर हार्वेस्टिंग चेंबर) तैयार किए गए।
पाटन ब्लॉक की 108 ग्राम पंचायतों ने मिलकर 432 सोकपिट बनाए। इसका मुख्य उद्देश्य वर्षा जल को जमीन में समाहित कर भूजल स्तर को बनाए रखना, घरों के नल और बोरिंग के जलस्तर को स्थिर रखना, और आम जनजीवन को बेहतर बनाना है।

क्या है सोकपिट और इसके फायदे?
सीईओ बजरंग दुबे ने बताया कि “सोकपिट एक ऐसा साधन है जो घरों से निकलने वाले सामान्य पानी को जमीन के भीतर पहुंचाकर भूजल का स्तर बढ़ाने में मदद करता है। इसकी लागत भी बेहद कम है – मात्र 3 से 5 हजार रुपये में इसे तैयार किया जा सकता है और दो साल तक इसका रखरखाव नहीं करना पड़ता।”
उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत 1200 से अधिक हितग्राहियों को चिन्हित कर उन्हें जल संरक्षण का महत्व समझाया गया। इसके सकारात्मक प्रभाव अब दिखने भी लगे हैं।
मौके पर हुआ निरीक्षण
गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की टीम ने पाटन ब्लॉक के कई गांवों का दौरा कर सोकपिट निर्माण का प्रत्यक्ष निरीक्षण किया। निरीक्षण के बाद सभी मापदंडों को पूरा मानते हुए दुर्ग जिला पंचायत को इस गौरवपूर्ण रिकॉर्ड के लिए चुना गया।
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दुर्ग जिले की यह पहल न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा है। जिस तरह स्थानीय प्रशासन और ग्रामीण समुदाय ने मिलकर जल संकट से निपटने के लिए ठोस कदम उठाया है, वह आने वाले समय में पर्यावरणीय संतुलन और सतत विकास की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।