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गांधी मंडेला फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्याम जाजू जी ने कहा, ‘गांधी जी केवल देश तक सीमिति नहीं हैं बल्कि पूरा विश्व उनका आदर करता है। उन्होंने जो बात कही उसका अनुशरण भी किया।
उनकी सोच पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय है। आजादी में उनका योगदान सबसे बड़ा रह। उन्होंने हमेशा गरीब, सामान्य और कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति के बारे में हमेशा उन्होंने बात किया।’
जनरल बीके शर्मा (महानिदेशक, यूएसआई), ने कहा- ‘वैश्विक स्थिरता को, बढ़ते हुए ऐतिहासिक विद्वेष, अति-राष्ट्रीयता, धार्मिक कट्टरता, पर्यावरणीय क्षरण, विनाशकारी तकनीकों, परमाणु हथियारों की धमकियों और साइबर, अंतरिक्ष तथा अन्य क्षेत्रों के सैन्यीकरण से गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है।
इस निरंतर विकसित होती निराशाजनक परिस्थिति के बीच, भारत को एक दूरदर्शी मार्गदर्शक और विश्व का सच्चा मित्र बनकर उभरना चाहिए। भारत को “वसुधैव कुटुंबकम्” की भावना को साकार करते हुए गांधी जी के सिद्धांतों पर चलना होगा, जहां करुणा और सहयोग के माध्यम से नेतृत्व किया जाए।’
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, यूनेस्को एमजीआईईपी के निदेशक डॉ. ओबिजियोफोर अगिनम ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा-
‘दुनिया भर में नई और प्रतिष्ठित हस्तियां उभर रही हैं, जिन्होंने मानवता के उत्थान, ज्ञान, शांति और अहिंसा के संदेश को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाथों के संकेतों (हैंड जेस्चर) के माध्यम से भी शांति, अहिंसा, क्षमा और संवाद का संदेश दिया जाता है।
यह समझना आवश्यक है कि न्याय के प्रति विशेष सामाजिक विकास, लोगों के विकास के प्रति समर्पित मंच या राजनीतिक संरचनाएं न्याय और समानता को बढ़ावा दे सकती हैं।
हमारे भीतर जो यह विरासत समाई हुई है, अहिंसा और शांति की..वह हमें यह सिखाती है कि मनुष्य का मन और उसका व्यवहार ही समाज और शासन प्रणाली को आकार देते हैं। यही विचारधारा दुनिया को प्रभावित करती रही है।
गांधीजी के इन सिद्धांतों ने पूरी दुनिया को प्रेरित किया..नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, और अन्य कई महान व्यक्तित्वों ने अहिंसा और शांति के माध्यम से विभिन्न समाजों में बदलाव लाने का कार्य किया। उन्होंने संघर्ष को हिंसा से नहीं, बल्कि संवाद, प्रेम और करुणा से हल करने का संदेश दिया। यही विचारधारा आज भी पूरी दुनिया में शांति और न्याय की मशाल जलाए हुए है।
इसलिए, सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता अहिंसा की शक्ति को अपनाने की है, जिसे गांधी जी ने बढ़ावा दिया था। उनकी अहिंसा की विचारधारा ने सिद्ध किया कि सच्ची शक्ति शारीरिक बल में नहीं, बल्कि नैतिक साहस में निहित होती है। उनके अहिंसक संघर्ष ने भारत को स्वतंत्रता दिलाई और यह आज भी दुनिया भर में शांति आंदोलनों के लिए एक प्रेरणास्रोत बना हुआ है।’
गांधी मंडेला फाउंडेशन की उपाध्यक्ष, डॉ. सविता सिंह ने गांधी जी की विचारधारा को अंतर्मन से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, गांधीजी ने अपनी विचारधारा और जीवन के संदेश को किसी भी संदेह में नहीं छोड़ा। हमें गांधीजी को इसलिए जानना चाहिए क्योंकि वे एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनका जीवन तीन सदियों तक फैला हुआ था। उन्होंने तीन शताब्दियों को प्रभावित किया..
- 19वीं सदी के उत्तरार्ध में उनका जन्म हुआ।
- 20वीं सदी में उन्होंने अपने सत्य के प्रयोग किए और समाज को मार्ग दिखाया।
- 21वीं सदी में भी उनके विचार प्रासंगिक बने हुए हैं और आगे आने वाले समय के लिए भी उत्तर प्रदान करते हैं।
गांधीजी को 20वीं सदी में हुई क्रांतिकारी परिवर्तनों का केंद्रबिंदु माना जाता है। उनके विचार और सिद्धांत केवल उनके समय तक सीमित नहीं रहे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा बने।
उनके सबसे प्रसिद्ध जीवनीकारों ने भी यही स्वीकार किया कि गांधीजी अकेले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने मानवता को केवल विचार ही नहीं, बल्कि एक स्थायी समाधान भी दिया। उनका योगदान अहिंसा, शांति और सत्य के माध्यम से दुनिया को बदलने का एक अनूठा उदाहरण है।
ये मेहमान रहे मौजूद
शहीद दिवस के अवसर पर गणमान्य व्यक्तियों में अधिवक्ता नंदन झा (महासचिव, जीएमएफ), डॉ. सविता सिंह (उपाध्यक्ष, जीएमएफ), श्री शंकर अग्रवाल (निदेशक, जीएमएफ), श्री श्याम जाजू (राष्ट्रीय अध्यक्ष, जीएमएफ), डॉ. ओबिजियोफोर अगिनम (निदेशक, यूनेस्को एमजीआईईपी), जनरल बीके शर्मा (महानिदेशक, यूएसआई), मेजर जनरल आरएस यादव, (निदेशक सीएस, यूएसआई), डॉ रीना जैन (वाइस प्रिंसिपल, हिंदू कॉलेज दिल्ली यूनिवर्सिटी), श्री गुरशरण सिंह (पूर्व सचिव, भारतीय पैरालंपिक समिति) एवं कई देशों के राजदूत एवं उसके प्रतिनिधि उपस्थित रहे।