गुजरात पंचायत चुनाव: गुजरात में दो वर्षों की प्रतीक्षा के बाद आखिरकार ग्राम पंचायत चुनाव की तारीख तय हो गई है। राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) ने 28 मई को घोषणा की कि 22 जून को राज्य की 8,326 ग्राम पंचायतों में चुनाव कराए जाएंगे। इस बार का चुनाव विशेष है, क्योंकि इसमें 27% अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण पहली बार प्रभावी रूप से लागू होगा।
राज्य में इन चुनावों की प्रक्रिया 2023 में जावेरी आयोग की रिपोर्ट के बाद शुरू हुई, जिसमें स्थानीय निकायों में ओबीसी को आरक्षण दिए जाने की सिफारिश की गई थी। इस रिपोर्ट के आधार पर गुजरात सरकार ने पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की घोषणा की थी।
मतदान और मतगणना की तारीखें
राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार, मतदान 22 जून को सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक कराया जाएगा और मतगणना 25 जून को की जाएगी। इसके साथ ही गुजरात में आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गई है।
नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख 9 जून रखी गई है, जबकि नाम वापसी की आखिरी तारीख 11 जून होगी। चुनाव मतपत्रों (Ballot Papers) के माध्यम से कराए जाएंगे और मतदाताओं को NOTA (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प भी मिलेगा।
चुनाव के प्रकार और क्षेत्रों का ब्योरा
इन 8,326 ग्राम पंचायतों में से:
- 4,688 पंचायतों में आम या मध्यावधि चुनाव होंगे,
- जबकि 3,638 पंचायतों में उपचुनाव कराए जाएंगे।
ग्राम पंचायत चुनाव गैर-दलीय (non-party basis) होते हैं, यानी उम्मीदवार पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से मैदान में उतरते हैं। हालांकि, उनका जुड़ाव किसी राजनीतिक संगठन से हो सकता है।
OBC आरक्षण बना देरी की वजह
ग्राम पंचायत चुनावों में हुई देरी का सबसे बड़ा कारण ओबीसी आरक्षण को लागू करने से जुड़ी प्रक्रिया रही। गुजरात बीजेपी के प्रवक्ता यज्ञेश दवे ने स्पष्ट किया कि राज्य निर्वाचन आयोग को प्रत्येक वार्ड में ओबीसी जनसंख्या का आकलन करना था, ताकि आरक्षण में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
उन्होंने कहा, “यह एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण प्रक्रिया थी, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी समुदाय अपने अधिकारों से वंचित न हो।”
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस चुनावी घोषणा का सभी दलों ने स्वागत किया है। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी ने कहा, “हम ग्राम पंचायत चुनाव की घोषणा का स्वागत करते हैं। बीजेपी सरकार ने चुनावों में देरी कर प्रशासकों को बैठाकर जनता की शक्ति छीन ली थी। कांग्रेस लंबे समय से इन चुनावों की मांग कर रही थी।”
वहीं बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि चुनावों की देरी का मकसद ओबीसी वर्ग को सही प्रतिनिधित्व देना था। दवे ने कहा, “अगर हम पहले चुनाव कराते, तो कांग्रेस यही आरोप लगाती कि ओबीसी के अधिकार छीने जा रहे हैं।”
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गुजरात के ग्रामीण लोकतंत्र में यह चुनाव एक अहम मोड़ साबित हो सकता है। जहां एक ओर यह ओबीसी आरक्षण के तहत पहला बड़ा पंचायत चुनाव होगा, वहीं यह राजनीतिक दलों के लिए भी अपनी पकड़ साबित करने का अवसर है। अब देखना यह होगा कि 22 जून को होने वाला मतदान और 25 जून की मतगणना राज्य के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में क्या बदलाव लेकर आती है।