संतकबीरनगर जिले में पंचायत सहायकों के अनुबंध समाप्त हुए छह माह बीत चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद हर माह करोड़ों रुपये का मानदेय भुगतान जारी है। न ग्राम पंचायतें इस पर ध्यान दे रही हैं, न ही ब्लॉक और जिला स्तर के अधिकारी कोई ठोस कदम उठा रहे हैं। यह स्थिति शासनादेश की सीधी अनदेखी और सरकारी धन के दुरुपयोग की ओर इशारा करती है।
2021 में हुई थी नियुक्ति, नवंबर 2023 में समाप्त हो गया अनुबंध
गौरतलब है कि वर्ष 2021 में शासनादेश के तहत जिले में 708 पंचायत सहायकों की 11 माह के अनुबंध पर नियुक्ति की गई थी। इसके बाद ग्राम पंचायतों द्वारा उनके कार्य संतोषजनक पाए जाने पर अनुबंध की अवधि दो वर्ष के लिए बढ़ाई गई, जो नवंबर 2023 में समाप्त हो चुकी है। नियमानुसार अब या तो नया अनुबंध होना चाहिए था या फिर सेवा समाप्त कर दी जानी चाहिए थी, लेकिन दोनों में से कुछ भी नहीं हुआ।
बिना अनुबंध के जारी है भुगतान, हर माह 48 लाख का नुकसान
अभी की स्थिति यह है कि कोई भी पंचायत सहायक वैध अनुबंध पर कार्यरत नहीं है, फिर भी हर महीने 6,000 रुपये प्रति सहायक के हिसाब से करीब 48 लाख रुपये का भुगतान किया जा रहा है। यह राशि सीधे-सीधे सरकारी खजाने पर भार है, जिसकी कोई वैधानिक प्रक्रिया नहीं है।
जिम्मेदार अधिकारी कर रहे पल्ला झाड़ने की कोशिश
जब इस विषय में संतकबीरनगर जिला प्रशासन से सवाल पूछा गया तो अधिकांश अधिकारियों ने पंचायतों को नियुक्ति प्राधिकारी बताकर जिम्मेदारी से किनारा कर लिया। मुख्य विकास अधिकारी जयकेश त्रिपाठी ने भी स्पष्ट किया कि नियुक्ति ग्राम पंचायत द्वारा की जाती है और वही इस संबंध में अगली कार्रवाई के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सभी ग्राम पंचायतों को शासनादेश के अनुसार कार्रवाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिए जा रहे हैं।
महत्वपूर्ण सवाल: यदि कोई सहायक अयोग्य निकला तो क्या होगी रिकवरी?
यह स्थिति कई बड़े सवाल खड़े करती है। अगर किसी पंचायत सहायक का कार्य असंतोषजनक पाया गया और उसे दोबारा अनुबंध न दिए जाने का निर्णय लिया गया, तो क्या बिना अनुबंध दिए गए छह माह के मानदेय की वसूली की जाएगी? और यदि हां, तो इसकी प्रक्रिया कौन तय करेगा?
ग्राम पंचायतें बता रही खुद को अनभिज्ञ
ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधियों का कहना है कि उन्हें इस मामले में कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं मिले हैं। वे उच्चाधिकारियों के आदेश का इंतजार कर रहे हैं। यह बयान उस उदासीनता को दर्शाता है, जो निचले स्तर से लेकर प्रशासनिक स्तर तक फैली हुई है।
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पंचायत सहायकों के अनुबंध खत्म होने के बाद छह महीने तक उन्हें नियम विरुद्ध भुगतान किया जाना न केवल वित्तीय अनुशासनहीनता है, बल्कि यह प्रशासनिक लापरवाही का भी गंभीर उदाहरण है। अब यह देखना होगा कि जिला प्रशासन इस मामले में कितनी तत्परता से कार्रवाई करता है और क्या इस अनियमितता के लिए जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई होती है या नहीं।