महाराष्ट्र चुनावों में प्रदेश की जनता ने वही जनादेश दिया है जो 2014 से देती आ रही है. 2104 में जो प्रदेश का सबसे बड़ा नेता बन कर उभरा था आज 2024 में भी वही प्रदेश का सबसे बड़ा नेता है. जाहिर है कि बात देवेन्द्र फड़नवीस की हो रही है.
बात फड़नवीस की है तो शुरू से शुरू करते हैं. दस साल पहले 2014 के चुनाव के दौरान वो फड़नवीस ही थे जिन्होंने अपनी पार्टी को महाराष्ट्र विजय कराई थी. यद्यपि यह विजय शिव सेना की विजय की हमसफर थी. सीटें अधिक थी भारतीय जनता पार्टी की इसलिये देवेन्द्र फड़नवीस मुख्यमंत्री बने प्रदेश के.
पांच साल पूरे किया फड़नवीस की सरकार ने. फिर आया साल 2019. इस बार भी फड़नवीस को प्रदेश की जनता पिछली बार की तरह पर्याप्त जनादेश दिया. लेकिन इस बार कुछ नया हुआ महाराष्ट्र में. बालठाकरे की पार्टी शिवसेना दो टुकड़ों में बंट गई और एक नये नेता का प्रादुर्भाव देखा प्रदेश ने. एकनाथ शिन्दे अपनी नई शिवसेना लेकर उद्धव से अलग हुए और प्रदेश में बीजेपी के राजनैतिक हिस्सा बन गये.
जो काम किया शिन्दे ने, उसका पुरस्कार तो उन्हें मिलना ही था. देश में अनुशासन और आदर्श की राजनीति करने वाली पार्टी बीजेपी ने आदर्शवाद को सामने रखा और शिन्दे को धोखा नहीं दिया. एक छोटे नेता को प्रदेश का सबसे बड़ा नेता बना दिया और प्रदेश के सबसे बड़े नेता से दूसरे नंबर की कुर्सी पर बैठने का आदेश दिया. अनुशासन का महान परिचय मिला फड़नवीस की तरफ से. फड़नवीस ने बिना किसी ना-नुकुर के उपमुख्यमंत्री बनना मंजूर कर लिया.
सभी को याद है उस समय याने 2019 में फड़नवीस ने कहा था – मैं समन्दर हूं, मैं फिर लौट आउंगा !
फड़नवीस फिर लौट आये. इस बार देश की सबसे बड़ी पार्टी अपने महाराष्ट्र प्रदेश के सबसे बड़े नेता के साथ आदर्शवाद के नाम पर धोखा नहीं कर सकती. बल्कि पिछली बार के अनुशासन का पुरस्कार ही उनको मिलना चाहिये –और वो फड़नवीस को मिलेगा ही.
यदि फड़नवीस मुख्यमंत्री नहीं बने तो क्या वो बागी हो जायेंगे –ऐसी कोई संभावना बीजेपी में नहीं हैं. पहले भी कुछ ऐसे उदाहरण सामने आये हैं चाहे वो उमा भारती हों या शिवराज चौहान या कोई और बड़ा नेता कुर्सी से हटने पर बगावत करके पार्टी छोड़ देने या अपनी पार्टी बनाने की परिपाटी इस पार्टी में नहीं है. हालांकि इसकी नौबत नहीं आयेगी पर मानलो अचंभित कर देने वाले फैसले लेने वाली पार्टी ने कुछ ऐसा किया तो भी फड़नवीस कुछ ऐसा-वैसा करने वाले नहीं हैं. हां, पार्टी को उनकी पूर्ण क्षतिपूर्ति देनी होगी वो भी उनकी पूर्ण-संतुष्टि के साथ.
जहां तक प्रश्न है कौन हो सकता है वो नया चेहरा तो कुछ नाम हैं जो गुप्त रूप से इस दौड़ में शामिल भी हो सकते हैं जैसे विनोद तावड़े जो बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव हैं या सुधीर मुनगंटीवार, ये एक बड़ा ओबीसी चेहरा हैं और ये विदर्भ इलाके से आते हैं. ये भी एक दावेदार हो सकते हैं. पूर्व मुख्यमंत्री गोपीनाथ मुंडे की बिटिया पंकजा मुंडे भी इस रेस में एक चेहरा हो सकती हैं.
वैसे देखा जाये तो यहां परिस्थितियों में किसी तरह की कोई समस्या नहीं है -न ही किसी तरह का गतिरोध फिर क्या है विरोध फड़नवीस के रास्ते पर? इब्ने इंशा की गजल की एक पंक्ति यहां याद आती है -ये बातें झूठी बातें हैं ये लोगों ने फैलाई हैं.!