जब-जब कांग्रेस और गांधी परिवार पर राजनितिक मुसीबत आई तब-तब कर्नाटक ने उसे संजीवनी प्रदान की और कांग्रेस ने सत्ता के शिखर तक का मार्ग प्रशस्त की। कांग्रेस अभी अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। उसके सबसे बड़े नेता राहुल गांधी की पिछले दिनों लोकसभा की सदस्य्ता निरस्त कर दी गई। कांग्रेस पार्टी की सरकार अभी केवल तीन राज्यों में चल रही है और तीन राज्यों में वह गठबंधन के छोटे साथी के रूप में सरकार में शामिल है। कर्नाटका में अभी विधानसभा का चुनाव के लिए प्रचार जोर-शोर से चल रहा है। कांग्रेस को इस चुनाव से बहुत आश है। कर्नाटका ऐसा राज्य है जहाँ अगर कांग्रेस इस चुनाव को जितने में सफल रहती है तो पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ेगा, साथ ही 2024 में आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए फंड का भी इंतजाम हो जाएगा। अन्य राज्यों के तुलना में कर्नाटक एक ऐसा राज्य है जहाँ कांग्रेस का संगठन मजबूत है और उसके पास डीके शिवकुमार और सिद्दारमैया के रूप में राज्य स्तर पर दो बड़े नेता मौजूद हैं। कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी इसी राज्य से आते हैं। ये उनके लिए भी परीक्षा की घड़ी है। खरगे दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।
1978 का उपचुनाव और "एक शेरनी,सौ लंगूर, चिकमंगलूर चिकमंगलूर" का नारा जो बदल दी थी इंदिरा और कांग्रेस की किस्मत
इंदिरा गांधी ने जब 1977 में आपातकाल हटाकर कर चुनाव कराई तो उन्हें और पार्टी को बुरी तरह हार का सामना करना परा। इंदिरा को अमेठी और उनके बेटे संजय को रायबरेली से अपने चुनाव क्षेत्र में हार का सामना करना पड़ा। जनता पार्टी के सरकार ने इंदिरा को एक रात के लिए जेल में भी बंद कर दिया था। अब वर्ष आता है 1978 का और उसी साल कर्नाटका के चिकमगलूर में लोकसभा का उपचुआव होता है। इंदिरा गांधी वहां से चुनाव लड़ती है और 77,000 से अधिक मतों से चुनाव जीतकर संसद पहुँचती है। उस समय एक नारा देश भर में बहुत प्रचलित हुआ था "एक शेरनी,सौ लंगूर, चिकमंगलूर चिकमंगलूर"। ये एक ऐसा नारा था जो इंदिरा के व्यक्तित्व को दर्शाता था और जनता भी आकर्षित हो रही थी। ये नारा केवल इंदिरा को वो उपचुनाव नहीं जिताया था बल्कि 1980 का लोकसभा चुनाव भी जितने में मदद की थी। ये नारा लिखा था दक्षिण भारत के हीं कांग्रेस नेता देबराज उर्स ने।
1999 के बेल्लारी का विदेशी बहु बनाम देशी बेटी का चुनाव जो सोनिया गांधी को राजनीति में स्थापित किया
सोनिया गांधी पति राजीव गांधी की हत्या के बाद 1998 में मजबूरन राजनीति में आई। वो 1998 में कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनी। अगले साल 1999 में लोकसभा का चुनाव आ गया। उनके लिए एक सुरक्षित सीट की तलाश शुरू हुई जो कि कर्नाटक के बेल्लारी पहुंच कर पूरी हुई। साथ हीं वो अपने पारिवारिक सीट रायबरेली से भी चुनाव लड़ने की घोषणा की। सोनिया गांधी के बेल्लारी से चुनाव लड़ने के घोषणा करते ही बीजेपी की तरफ से तेज-तर्रार नेता सुषमा स्वराज ने भी उनके खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। सोनिया को विदेशी और खुद को देशी बताने के लिए सुषमा ने एक महीने में कन्नड़ भाषा सीखी और अपनी भाषण कन्नड़ में देने लेगी। सुषमा स्वराज ने सोनिया की दुखती रग पर हाथ रखते हुए उनके विदेशी होने का मुद्दा खूब उठाया। सोनिया उस चुनाव में प्रधानमंत्री की उम्मीदवार थी। वो चुनाव तो सोनिया जीत गई लेकिन कांग्रेस पार्टी चुनाव हार गई। अटल बिहारी प्रधानमंत्री बने और सोनिया गांधी लोकसभा में विपक्ष की नेता बनी। ठीक उसके पांच साल बाद 2004 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने चुनाव जीता और कांग्रेस समर्थित यूपीए की सरकार बनी। सोनिया गांधी खुद प्रधानमंत्री न बनकर मनमोहन सिंह को बनाया लेकिन उस सरकार को चलाने और नीति निर्धारण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
कांग्रेस फिर से 1978 और 1999 के स्थिति या उससे भी बुरी स्थिति में पहुँच चुकी है। कांग्रेस को फिर कर्नाटक से आश है। कांग्रेस ये चुनाव जीतकर एक गति प्राप्त करना चाहेगी जो उसे इस साल के अंत में आने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में मदद करेगी। खबर ये भी है कि सोनिया गांधी 6 मई से कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रचार शुरू करेगी।