न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने आज राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक गरिमामय समारोह में भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
न्यायमूर्ति गवई देश के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश बने हैं। उन्होंने हिंदी में शपथ लेते हुए संविधान के प्रति अपनी निष्ठा और न्यायिक कर्तव्यों के ईमानदारीपूर्वक निर्वहन का संकल्प लिया।
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शपथ ग्रहण के बाद उन्होंने हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन स्वीकार किया। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, गृह मंत्री अमित शाह तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों और परिवारजनों से मुलाकात की। समारोह में पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना भी उपस्थित थे।
शपथ के बाद न्यायमूर्ति गवई ने भावुक क्षण में अपनी मां के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। प्रधानमंत्री मोदी भी उनकी मां से मिलने और उनका अभिवादन करने मंच तक गए। समारोह का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ, जिसने इस ऐतिहासिक क्षण को और भी गरिमा प्रदान की।
कौन हैं जस्टिस बीआर गवई?
सादगी से सर्वोच्च न्यायालय तक का सफर: जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई
24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती ज़िले के फ्रेजरपुरा इलाके में जन्मे जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने बेहद साधारण माहौल में अपना बचपन बिताया।
उनके पिता आर.एस. गवई एक वरिष्ठ राजनेता थे, जो बाद में बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल बने। उनकी माता एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका थीं, जिन्होंने मेहनत और समर्पण के मूल्य उन्हें बचपन से ही सिखाए।
जस्टिस गवई ने नगर निगम के स्कूल में पढ़ाई की, जहां अक्सर उन्हें ज़मीन पर बैठकर पढ़ना पड़ता था, क्योंकि स्कूल में बुनियादी सुविधाओं की कमी थी। यही संघर्षपूर्ण परवरिश उनके न्यायबोध और समता के सिद्धांतों को गहराई से प्रभावित करती रही।
राजनीति नहीं, चुना कानून का रास्ता
हालांकि शुरुआती झुकाव राजनीति की ओर था, लेकिन जस्टिस गवई ने अंततः वकालत को ही अपना करियर बनाया।
उन्होंने अमरावती विश्वविद्यालय से कॉमर्स और लॉ की डिग्रियां हासिल कीं और 1985 में विधि क्षेत्र में कदम रखा।
उन्होंने स्वतंत्र वकील के तौर पर शुरुआत की, और बाद में नागपुर बेंच में सरकारी वकील व विशेष लोक अभियोजक के रूप में सेवाएं दीं।
उन्हें सरकार की ओर से वकील बनाए जाने पर उन्होंने शर्त रखी कि अपनी टीम खुद चुनेंगे। उनकी टीम के दो सदस्य बाद में हाई कोर्ट के जज बने।
न्यायिक सफर
2003 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 2005 में स्थायी न्यायाधीश बनाया गया।
मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी, चारों पीठों पर उन्होंने न्यायिक कार्य किया।
- 24 मई 2019 को वे सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त हुए।
- अब तक वे करीब 700 बेंचों का हिस्सा रह चुके हैं और 300 से अधिक फैसले दे चुके हैं।
- उनके निर्णयों में संविधान, आपराधिक न्याय, वाणिज्यिक विवादों और पर्यावरणीय प्रशासन जैसे विषय शामिल हैं।
कुछ प्रमुख फैसले और कानूनी योगदान
जस्टिस गवई कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे हैं। विशेष रूप से वे उन संविधान पीठों में शामिल रहे जिन्होंने:
- अनुच्छेद 370 हटाने को वैध ठहराया,
- चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया,
- 2016 की नोटबंदी को वैध बताया।
इसके अलावा, उन्होंने इन हाई-प्रोफाइल मामलों में भी निर्णय दिए,
- आम आदमी पार्टी नेता मनीष सिसोदिया को मनी लॉन्ड्रिंग केस में जमानत,
- राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि मामले में सजा पर रोक,
- कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को 2002 दंगा केस में राहत।
एक महत्वपूर्ण निर्णय में उन्होंने अवैध अतिक्रमण हटाने के नाम पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई पर सख्त टिप्पणी दी और न्यायिक प्रक्रिया के पालन की आवश्यकता को दोहराया।