चार राज्य मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। इन चार राज्यों में से तीन राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी को जीत मिली है और कांग्रेस को केवल तेलंगाना से संतोष करना पड़ा। कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार खोई है और मध्यप्रदेश में बीजेपी की 18 सालों की सरकार को हरा पाने में नाकाम साबित हुई है। वहीं तेलंगाना में कांग्रेस ने भारत राष्ट्र समिति (BRS) की दस सालों की सरकार को हराकर पहली बार सत्ता में आई है।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस के पास मौका था भाजपा की 18 सालों की सरकार को हराकर सत्ता में आने का लेकिन कांग्रेस अपनी गलतियों के कारण विपक्ष में एकबार फिर बैठी है। बीजेपी को प्रचंड बहुमत के साथ 163 सीट, कांग्रेस को 66 और अन्य को 01 सीट मिली। मध्यप्रदेश में कुल विधानसभा की सीटों की संख्या 230 है और बहुमत के लिए 116 सीटों की जरुरत होती है। मध्यप्रदेश में भाजपा को 48.6% और कांग्रेस को 40.4% मत मिला है।
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कमलनाथ का घमंड
मध्यप्रदेश कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने इस चुनाव में वो मेहनत नहीं की जो उनको करनी चाहिए। हालात ऐसी हो गई थी कि चुनाव के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, केसी वेणुगोपाल को दिल्ली बुलाकर कहना पड़ा था कि अधिक चुनाव प्रचार करो। दरअसल कमलनाथ ने यह चुनाव जनता के ऊपर छोड़ दिया था। जनता तो कांग्रेस को वोट देना चाहती थी लेकिन कमलनाथ जैसे कह रहे हों कि मुझे चाहिए ही नहीं या जनता खुद थाली में परोस कर दे दे सत्ता।
केंद्रीय नेतृत्व को नजर अंदाज करना
मध्यप्रदेश कांग्रेस के दो सबसे बड़े नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इतने बड़े हैं कि यह केंद्रीय नेतृत्व का सुझाव मानने से भी इंकार कर देते हैं। कांग्रेस पार्टी द्वारा सफल चुनावी रणनीतिकार सुनील कनुगोलू को पिछले साल पार्टी में शामिल कराया गया था। उनको सर्वे और पार्टी की चुनावी रणनीति बनाने का जिम्मा दिया गया और उनकी रिपोर्टिंग राहुल गांधी को थी। कांग्रेस आलाकमान ने सुनील कनुगोलू द्वारा किया गया सर्वे कमलनाथ के सामने रखा और सुनील की सेवा लेने को कहा लेकिन कमलनाथ ने साफ मना कर दिया। बल्कि कनुगोलू बीजेपी, DMK के साथ ही कांग्रेस की कर्नाटका में चुनावी सफलता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस चुनाव में भी तेलंगाना में कांग्रेस को सफलता दिलाई है।
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कमलनाथ का कैडर से दुरी
कमलनाथ ने हमेशा से दिल्ली की राजनीति की है। वह कांग्रेस आलाकमान गांधी परिवार के बेहद नजदीकी रहे हैं। कमलनाथ के बारे में कहा जाता है कि उन्हें इंदिरा गांधी अपना तीसरा बेटा मानती थी। कमलनाथ पुरे मध्यप्रदेश के नेता कभी नहीं रहे। उनका प्रभाव छिंदवाड़ा और उसके आसपास के इलाके तक सिमित रहा। वह अपने कार्यालय से सारा कार्य करते थें। उन तक कार्यकर्ताओं का पहुंचना बहुत मुश्किल था। इस कारण से उन्हें कार्यकर्त्ता और संगठन का लाभ नहीं मिल पाया।
सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड नहीं चला
कमलनाथ ने सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड भी खेला। वो कथाओं, मंदिरों में जाते थें। बाबा बागेश्वर का कथा करवाना, उनके चरणों में जाकर आशीर्वाद लेना। यह सब काम नहीं आया। वैसे भी जब ओरिजनल हिंदुत्व का झंडा बरदार भाजपा मौजूद है तो लोग उसके फोटोकॉपी सॉफ्ट हिंदुत्व पर क्यों वोट दें।
कांग्रेस की गारंटी पर लोगों का विश्वास न होना
कांग्रेस ने महिलाओं को प्रतिमाह 1500 रुपये नारी सम्मान निधि के रूप में देने और घरेलू गैस सिलेंडर 500 रुपये में देने का वादा किया था। भाजपा ने इसके जवाब में लाडली बहना योजना के माध्यम से एक करोड़ 31 लाख महिलाओं के खाते में 1250 रुपया देना शुरू किया और इसे 3000 तक ले जाने का वादा किया। जनता ने खासकर महिलाओं ने बीजेपी की गारंटी पर विश्वास करते हुए बीजेपी के पक्ष में जमकर मतदान किया और कांग्रेस की गारंटी को नाकारा।