प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2021-22 से 2025-26 तक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) के तहत कुल 69,515.71 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ इन योजनाओं को 2025-26 तक जारी रखने की मंजूरी दी है। इस फैसले से देश भर के किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली फसल क्षति के जोखिम से बचाव के लिए सहायता मिल सकेगी।
इसके अलावा, इन योजनाओं में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नवाचार और प्रौद्योगिकी (एफआईएटी) फंड के निर्माण को भी मंजूरी दी है। इस फंड के तहत 824.77 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा, जो फसल बीमा योजना में तकनीकी सुधार, जैसे यस-टेक, विंड्स आदि के लिए उपयोग किया जाएगा। यह कदम योजनाओं में पारदर्शिता और दावों के निपटारे में सुधार लाने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
यस-टेक और विंड्स के माध्यम से तकनीकी सुधार
यस-टेक (उपज अनुमान प्रणाली) प्रौद्योगिकी आधारित उपज अनुमान के लिए रिमोट सेंसिंग का उपयोग करती है। इस प्रणाली का वर्तमान में नौ प्रमुख राज्यों (आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु और कर्नाटक) में सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है। मध्य प्रदेश ने शत-प्रतिशत तकनीकी आधारित उपज अनुमान प्रणाली को अपनाया है। यस-टेक के व्यापक उपयोग से फसल कटाई और संबंधित मुद्दों का समाधान होने की उम्मीद है।
वहीं, मौसम संबंधी सूचना और नेटवर्क डेटा प्रणाली (विंड्स) के तहत स्वचालित मौसम स्टेशन और वर्षा मापक स्थापित किए जाएंगे। इस पहल के जरिए हाइपर लोकल मौसम डेटा का विकास होगा और नेटवर्क घनत्व में पांच गुना वृद्धि की योजना बनाई गई है। विंड्स का प्रयोग वर्तमान में नौ राज्यों में हो रहा है और अन्य राज्य भी इसे अपनाने के इच्छुक हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों के लिए विशेष प्रावधान
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों को प्राथमिकता दी जा रही है। इन राज्यों के लिए प्रीमियम सब्सिडी का 90 प्रतिशत हिस्सा केंद्र द्वारा प्रदान किया जाता है। हालांकि, योजना स्वैच्छिक होने के कारण और इन राज्यों में कम फसल क्षेत्र होने के कारण, धन को लौटाए जाने से बचने के लिए लचीला दृष्टिकोण अपनाया गया है, ताकि इस राशि को अन्य विकास योजनाओं में पुनः आवंटित किया जा सके।
इस महत्वपूर्ण फैसले से किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से फसल नुकसान की स्थिति में बेहतर सुरक्षा और सहायता मिलने की उम्मीद है, साथ ही योजना की कार्यक्षमता और पारदर्शिता में भी सुधार होगा।