दीयों के त्योहार दिवाली के बाद छठ महापर्व की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। छठ महापर्व का त्योहार हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
छठ महापर्व खास तौर पर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व में भगवान सूर्य और उनकी पत्नी उषा (छठी मैया) की उपासना की जाती है, जिनसे परिवार, संतान, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना की जाती है। छठ पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व को धूमधाम से मनाया जाता है।
किसने की छठ पर्व की शुरुआत?
छठ महापर्व सबसे पहले कब और किसने शुरू किया इसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएं हैं। छठ पर्व की शुरुआत के बारे में कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाए प्रचलित हैं।
यह भी पढ़ें- Chhath Puja 2024: छठ पर्व का श्रीगणेश कल से, नहाय-खाय से लेकर अर्घ्य की प्रमुख तिथियां जानिये यहां
कहा जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में छठ पर्व का व्रत रखा था। यह पर्व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को था, और इस दिन माता सीता ने सूर्य देवता की पूजा कर आशीर्वाद लिया था। माना जाता है कि तभी से इस पर्व की परंपरा शुरू हुई।
महाभारत से संबंधित कथा
महाभारत के समय में भी छठ पूजा का उल्लेख मिलता है। कथा के अनुसार, जब पांडव अपना राज्य खो बैठे थे, तब द्रौपदी ने छठ पर्व का व्रत किया था। सूर्य देवता की कृपा से पांडवों को अपना खोया हुआ राज्य वापस मिल गया। इसलिए, इसे संकटों के निवारण और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है।
सूर्यपुत्र कर्ण की पूजा
सूर्य देव के परम भक्त कर्ण भी छठ पर्व से जुड़े माने जाते हैं। कर्ण प्रतिदिन सूरज को अर्घ्य अर्पित करते थे और सूर्य की उपासना करते थे। वे अपने सामर्थ्य और शक्ति के लिए सूर्य देव की पूजा करते थे। इस कारण सूर्य की आराधना का यह पर्व सूर्योपासना की प्राचीन परंपरा से भी जुड़ा है।
षष्ठी देवी की उपासना से संबंधित मान्यता
छठ पर्व की एक और मान्यता यह भी है कि यह षष्ठी देवी की उपासना का पर्व है। षष्ठी देवी को संतान और परिवार की संरक्षिका माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि षष्ठी देवी भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं और उनके आशीर्वाद से संतान सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसलिए महिलाएँ संतान की सुख-शांति और कल्याण के लिए इस व्रत को करती हैं।
यह भी पढ़ें- Chhath Puja 2024: छठ पर्व का श्रीगणेश कल से, नहाय-खाय से लेकर अर्घ्य की प्रमुख तिथियां जानिये यहां
छठ महापर्व की प्रक्रिया
पहला दिन (नहाय-खाय):
छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रती (व्रत करने वाले) अपने घर और शरीर को पूरी तरह शुद्ध करते हैं और सादा, शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन से व्रती शुद्धता का विशेष ध्यान रखते हैं।
दूसरा दिन (खरना):
दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत रखते हैं और शाम को प्रसाद (गुड़ की खीर, रोटी और फल) बनाकर सूर्य को अर्पित करते हैं और फिर उसी प्रसाद को ग्रहण करते हैं। इसके बाद, वे अगले 36 घंटों तक निर्जल व्रत रखते हैं।
तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य):
तीसरे दिन शाम के समय व्रती नदी, तालाब या किसी जलाशय के किनारे जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह सूर्यास्त के समय का अर्घ्य होता है, जिसमें व्रती सूर्य देवता से सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।
चौथा दिन (प्रातःकालीन अर्घ्य):
छठ पूजा के अंतिम दिन सूर्योदय के समय व्रती उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसके बाद, वे अपना व्रत समाप्त करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं।
छठ महापर्व का महत्व
छठ महापर्व में सूर्य और छठी मैया की पूजा के पीछे एक गहरा धार्मिक और पौराणिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव जीवन के पोषक और ऊर्जा के स्रोत हैं, और उनकी पूजा करने से मनुष्य की इच्छाएं पूरी होती हैं और सभी कष्टों का नाश होता है। छठी मैया को संतान की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है, और उनके आशीर्वाद से घर में खुशहाली और समृद्धि बनी रहती है।
छठ पूजा की कुछ खास बातें
प्रसाद: छठ पूजा में ठेकुआ, गन्ना, केला, नारियल, और अन्य फल चढ़ाए जाते हैं। ठेकुआ विशेष रूप से इस पूजा का मुख्य प्रसाद होता है।
सादगी और स्वच्छता: छठ पूजा में सादगी और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। व्रती बिना प्याज-लहसुन का सादा भोजन करते हैं और पूजा सामग्री शुद्ध होती है।
एक सामूहिक पर्व है छठ: जिसमें पूरे परिवार और समाज का सहयोग रहता है। लोग नदी, तालाबों या घरों के पास सामूहिक रूप से पूजा करते हैं।
छठ महापर्व का महत्त्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी है, क्योंकि यह प्रकृति की पूजा और मानव जीवन पर सूर्य की महत्ता को दर्शाता है।
चार दिनों तक चलने वाला ये त्योहार मात्र एक फेस्टिवल नहीं होता बल्कि फीलिंग होती है और भावना होती है जिसका इंतजार सालभर से होता है।