कांग्रेस ने पीएम मोदी के तेलंगाना दौरे पर सवाल उठाया है। कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को समन भेजा जाना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के ताबूत में एक और कील है। जब कांग्रेस नेता भाजपा की आलोचना करते हैं तब प्रधानमंत्री पुलिस को उनके पीछे छोड़ देते हैं। वहीं जब भाजपा पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के फर्जी वीडियो बनाती और प्रसारित करती है तब दिल्ली पुलिस बिल्कुल शांत रहती है। यह न सिर्फ़ पुलिस के दोहरे मापदंड को दर्शाता है बल्कि तेलंगाना के लोगों का अपमान भी है। पहले दो चरणों में ख़राब प्रदर्शन के बाद बीजेपी की हताशा बढ़ती जा रही है। क्या प्रधानमंत्री को इस बात का डर है कि मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में उनकी पार्टी की संभावनाओं पर पानी फेर देंगे?
कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगे कि पीएम ने उन राज्यों की उपेक्षा करने की आदत बना ली है जहां विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी को हर का सामना करना पड़ता है। उनकी प्रतिशोध की राजनीति तेलंगाना में स्पष्ट रूप से दिख रही है। उन फंड्स की एक लंबी सूची है जिसका वादा किया गया था लेकिन अभी तक राज्य को जारी नहीं किया गया है। केंद्र ने GST क्षतिपूर्ति के 4,000 करोड़ रुपए, नीति आयोग द्वारा अनुशंसित 24,205 करोड़ रुपए या पिछड़े जिलों के विकास के लिए 1,800 करोड़ रुपए का अनुदान जारी नहीं किया है।
तेलंगाना द्वारा केंद्र को दिए जाने वाले प्रत्येक एक रुपए कर के बदले में राज्य को केवल 43 पैसे मिलते हैं। यहां तक कि इस साल की शुरुआत में तेलंगाना को अंतरिम बजट आवंटन में भी भारी कमी थी। अफसोस की बात है कि विपक्ष शासित राज्यों में भाजपा के निराशाजनक ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, तेलंगाना के साथ सौतेला व्यवहार कोई आश्चर्य की बात नहीं है। पीएम के पसंदीदा नारे सबका साथ सबका विकास का क्या हुआ? विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी की हार के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी कब तक अपने अहंकार में रहेंगे लोगों को और लोगों कितना कष्ट झेलना पड़ेगा?
प्रधानमंत्री ने निज़ामाबाद में जिस राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड की स्थापना का वादा किया था, वह कहीं नज़र नहीं आ रहा है। यह तेलंगाना में हल्दी किसानों की लंबे समय से मांग रही है, जो भारत से कुल हल्दी निर्यात का कम से कम 30% आपूर्ति करते हैं। राज्य में लगभग 50,000 एकड़ में हल्दी की खेती होती है, जिसका बड़ा हिस्सा निज़ामाबाद ज़िले में है। हल्दी की क़ीमत में उतार-चढ़ाव की संभावना रहती है और राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड न केवल किसानों को यह तय करने में मदद कर सकता है कि कितना उगाना है, बल्कि उनकी उपज की मार्केटिंग में भी उनकी सहायता कर सकता है।
यह भी पढ़ें: प्रियंका गांधी नहीं लड़ेंगी चुनाव, राहुल गांधी रायबरेली से लड़ सकते
2019 की शुरुआत में, निज़ामाबाद लोकसभा से भाजपा उम्मीदवार ने हल्दी बोर्ड स्थापित करने का वादा किया था। चार साल तक वादा ठंडे बस्ते में रहा। दिसंबर 2023 में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले, प्रधानमंत्री ने हल्दी बोर्ड की स्थापना की घोषणा की। लेकिन, प्रधानमंत्री के कार्यकाल के अंत में ज़मीन पर न के बराबर काम हुआ प्रतीत होता है। न तो कोई स्पष्ट बजट प्रस्ताव है और न ही बोर्ड के लिए कोई स्थान चिन्हित किया गया था। क्या भाजपा कभी अपने वादे निभाने की योजना बनाएगी, या क्या हल्दी किसानों को भी प्रधानमंत्री के प्रतिशोध का सामना करना पड़ेगा?