COP29 सम्मेलन सोमवार से शुरू होने वाला है। संयुक्त राष्ट्र का 29वां जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP29) अज़रबैजान के बाकू में 11 से 22 नवंबर तक होगा। इस आयोजन में कई अहम मुद्दों पर चर्चा की जाएगी, जिसमें पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्रगति और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए नए उपाय शामिल हैं।
मुख्य विषयों में वित्तीय योगदान को बढ़ाना, जलवायु अनुकूलन को मजबूत करना, और नवीन व समावेशी समाधान शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, COP29 का एक प्रमुख उद्देश्य जलवायु पारदर्शिता में सुधार और वित्त पोषण के लिए नए सामूहिक लक्ष्यों को स्थापित करना है।
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भारत की क्या भूमिका?
भारत COP29 में जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस सम्मेलन में भारत का ध्यान विशेष रूप से ‘जलवायु वित्त’ पर है, जिसमें वित्तीय समर्थन की मांग को प्राथमिकता दी जा रही है। भारत इस बात पर जोर दे रहा है कि जलवायु वित्त, विकासशील देशों के लिए सुविधाजनक और पारदर्शी होना चाहिए ताकि वे अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा कर सकें। इसके लिए भारत ने $1 ट्रिलियन वार्षिक धनराशि का लक्ष्य तय करने की भी मांग की है, जो विकासशील देशों की आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक हो सकती है।
क्या होता है ‘जलवायु वित्त’
जलवायु वित्त का अर्थ है जलवायु परिवर्तन को रोकने और उससे जुड़े कार्यों के लिए आर्थिक समर्थन। इसमें वे सभी वित्तीय संसाधन शामिल होते हैं, जो जलवायु-प्रभावित क्षेत्रों में अनुकूलन और शमन प्रयासों के लिए प्रदान किए जाते हैं।
विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नियंत्रित करने और अनुकूलन उपायों को लागू करने के लिए भारी वित्तीय सहायता की जरूरत होती है। चूंकि इन देशों के पास सीमित संसाधन हैं, वे अपने आर्थिक विकास और जलवायु लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाने के लिए विकसित देशों से वित्तीय समर्थन की अपेक्षा करते हैं। यह समर्थन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, नई तकनीकों को अपनाने, और बुनियादी ढांचे को जलवायु-अनुकूल बनाने में सहायक हो सकता है।
कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग अन्य प्रमुख एजेंडा
भारत का एक अन्य प्रमुख एजेंडा “कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग” पर है, जो पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के तहत है। यह प्रणाली देशों को ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के बदले क्रेडिट प्राप्त करने और उन्हें अन्य देशों को बेचने की अनुमति देती है। इसके कार्यान्वयन के कई मुद्दे अब भी लंबित हैं, जिन पर चर्चा की जा रही है।
इसके अतिरिक्त, भारत ऊर्जा संक्रमण को गति देने, आर्थिक विकास बनाए रखने, और सबसे कमजोर समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर भी बल दे रहा है। इन पहलुओं के तहत, भारत का मानना है कि विकसित देशों को अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को ईमानदारी से निभाना चाहिए और विकासशील देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए ताकि वे अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकें।