लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक वन नेशन, वन इलेक्शन का प्रावधान करने के लिए पेश हो गया है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024’ संसद में पेश किया। कांग्रेस ने इस बिल का विरोध किया है।
मतदान के बाद पेश किया गया
वन नेशन, वन इलेक्शन का संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में मतदान के बाद पेश किया गया। लोकसभा में पर्ची के माध्यम से मतदान हुआ। मतदान के बाद स्पीकर ओम बिरला ने नतीजे बताए। स्पीकर ने बताया कि प्रस्ताव के पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 वोट पड़े. बहुमत प्रस्ताव के पक्ष में रहा।
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विपक्ष के आरोपों का दिया जवाब
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि कुछ सदस्यों ने बिल के इंट्रोडक्शन पर आपत्ति की है जो ज्यादातर लेजिस्लेटिव पर ही है. एक विषय आया कि आर्टिकल 368 का ये उल्लंघन करता है. ये आर्टिकल संविधान में संशोधन की प्रक्रिया बताता है और संसद को शक्ति देता है. एक विषय आया अनुच्छेद 327 सदन को विधानमंडलों के संबंध में चुनाव के प्रावधान का अधिकार देता है. इसमें कहा गया है कि संविधान के प्रावधान के तहत विधानमंडल के किसी भी चुनाव के संबंध में प्रावधान कर सकती है. ये संवैधानिक है. सभी आवश्यक मामले इसमें शामिल हैं.
अनुच्छेद 83 सदनों की अवधि और राज्यों के विधानमंडल के चुनाव की अवधि को पुनर्निधारित किया जा सकता है. संविधा के सातवें अनुच्छेद के प्रावधान का उल्लेख करते हुए कानून मंत्री ने कहा कि ये केंद्र को शक्ति प्रदान करता है. ये संविधान सम्मत संशोधन है. सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती केस में फेडरल स्ट्रक्चर पर बात की है.कुछ बिंदु बाद में भी जोड़े हैं. इस बिल में इस पर कुछ भी आघात नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती के साथ साथ और सब्जेक्ट भी जोड़े हैं लेकिन इससे न तो संविधान और ना ही विधानसभा की शक्ति में कोई कमी आ रही है. संविधान के अनुच्छेद 27 के तहत संसद को संशोधन का अधिकार है. हमने जो आर्टिकल जोड़े हैं, उसमें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी का धन्यवाद करना चाहूंगा.
कांग्रेस ने इस बिल को बताया असंवैधानिक
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि हम इस बिल का विरोध करते हैं. चुनाव आयोग की क्या सीमाएं हैं, वो 324 में हैं.चुनाव आयोग को कैसे सुपरवाइज करना है, कैसे इलेक्टोरल रोल कैसे बनाना है, इतने तक ही अधिकार दिए गए हैं. राष्ट्रपति कभी भी परामर्श लेते हैं तो कैबिनेट से लेते हैं, चुनाव आयोग से नहीं, ये इन्होंने एक असंवैधानिक ढांचा बनाया है. गवर्नर से भी ले सकते हैं. ये पहली बार ऐसा कानून लाए हैं कि राष्ट्रपति चुनाव आयोग से भी परामर्श लेंगे.
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गौरव गोगोई ने विरोध करते हुए कहा कि इस बिल के जरिये राष्ट्रपति को ज्यादा शक्ति दी गई है कि वो अब 82 ए के द्वारा विधानसभा को भंग कर सकती है. ये एक्सेसिव पावर राष्ट्रपति के साथ चुनाव आयोग को भी दी गई है. 2014 के चुनाव में 3700 करोड़ खर्च हुआ, इसके लिए ये असंवैधानिक कानून लाए हैं. संविधान में लिखा है कि पांच साल के टर्म से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए. नीति आयोग संवैधानिक बॉडी नहीं है, उसकी रिपोर्ट में न जाए. ये पूरे भारत के चुनाव को छीनेंगे तो हम ये नहीं होने देंगे. हम इसका विरोध करते हैं. इस बिल को जेपीसी में भेजा जाए.