वक्फ कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 17 अप्रैल 2025 को सुनवाई की। अदालत ने फिलहाल इस कानून पर कोई रोक नहीं लगाई है, लेकिन एक सप्ताह के लिए स्थिति को पहले जैसा बनाए रखने का आदेश दिया है। इस दौरान वक्फ बोर्ड या काउंसिल में किसी नई नियुक्ति पर भी रोक लगा दी गई है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह स्पष्ट किया कि वक्फ घोषित संपत्तियों और रजिस्टर्ड संपत्तियों को लेकर पहले जैसी स्थिति बनी रहे। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने “वक्फ बाय यूजर” का जिक्र करने की अपील की, जिस पर सीजेआई ने उन्हें टोकते हुए कहा, “मैं आदेश लिखवा रहा हूं, बीच में मत बोलिए।”
केंद्र को जवाब के लिए एक हफ्ते की मोहलत
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कानून पर रोक न लगाने की अपील की। उन्होंने कहा कि यह कानून लाखों लोगों की राय के आधार पर तैयार किया गया है और इसे संसद ने पारित किया है। ऐसे में इसके कुछ हिस्सों को देखकर पूरे कानून पर रोक लगाना उचित नहीं होगा। साथ ही उन्होंने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा, जिसे कोर्ट ने मंजूरी दे दी।
सीजेआई खन्ना ने कहा कि अदालत केंद्र का पक्ष सुनेगी, लेकिन इस दौरान ऐसा कोई बड़ा बदलाव नहीं होना चाहिए, जिससे स्थिति प्रभावित हो। कोर्ट ने कहा कि अभी यथास्थिति को बनाए रखना जरूरी है ताकि किसी प्रकार की जल्दबाज़ी में निर्णय न लिया जाए।
सीमित याचिकाओं पर होगी सुनवाई
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं की ओर से केवल पांच याचिकाओं को ही आगे सुना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी याचिकाओं को सुनना संभव नहीं है, इसलिए बाकी याचिकाएं निस्तारित मानी जाएंगी। साथ ही, बहस करने वाले वकीलों की सूची भी अदालत में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।
मुख्य न्यायाधीश ने यह सवाल भी उठाया कि क्या 1995 के वक्फ अधिनियम के तहत पंजीकृत संपत्तियों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी? इस पर एसजी मेहता ने जवाब दिया कि यह कानून के प्रावधानों का हिस्सा है।
नजरें अगली सुनवाई पर टिकीं
अब मामला अगले सप्ताह फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा, जिसमें केंद्र सरकार अपना विस्तृत पक्ष रखेगी। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि जब तक कोई ठोस निर्णय नहीं हो जाता, तब तक वक्फ कानून को लेकर यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी।
यह भी पढ़ें: उत्तराखंड पंचायत चुनाव: चारधाम यात्रा के उलझन में फंसा
यह मामला संवेदनशील है और इसके दूरगामी सामाजिक एवं कानूनी प्रभाव हो सकते हैं, ऐसे में सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के अगले रुख पर टिकी हैं।