ये पंक्तियां कालजयी थीं जो नारे के रूप में सभी को पता थीं और इसी नारे के प्रत्येक शब्द को जीवन प्रदान किया जीवन गंवा कर लाखों राम भक्तों ने पिछले पांच सौ सालों में..
राम मंदिर आंदोलन का आजादी के बाद से सबसे बड़ा नारा तो बस एक ही था -‘सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे’. एक वक्त था देश के हर हिन्दू घर से यह नारा लगाया गया था.
इस नारे को लाखों राम भक्तों ने जान गंवा कर जीवन प्रदान किया और मूल श्रेय इसका जाता है बीजेपी और इसके नेता प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी को. लेकिन इस नारे को अब आने वाले दिनों में लोग भूलते जायेंगे क्योंकि मंदिर तो बन गया है.
इस कालजयी नारे की 9 अहम बातें बहुत कम लोग जानते हैं:
इस नारे के रचने वाले कवि का नाम था विष्णु गुप्ता जिनकी ये पंक्तियां राम मंदिर आंदोलन का सबसे बड़ा नारा बनीं.
कवि विष्णु गुप्ता ने यह पंक्ति 6 दिसंबर, 1992 को जलालाबाद में आयोजित एक काव्य गोष्ठी के दौरान अनायास कही थी.
6 दिसंबर वही दिन है जब अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने की सूचना मिली थी.
काव्यगोष्ठी की ये पंक्ति राम मंदिर आंदोलन के लिये धारदार भावुक हथियार बन गई और संघ के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंच गई.
विष्णु गुप्ता ने राम मंदिर आंदोलन पर विचार करते हुए अपनी इस कविता को रात में लिखा था और अपनी डायरी में सहेजा था.
अपनी इन पंक्तियों को बाद में उन्होंने संघ के कार्यक्रमों में पढ़ना शुरू किया जिन्हें सबने पसंद किया और इन पंक्तियों ने भावुक कर दिया तमाम राम भक्तों को.
राम मंदिर आंदोलन में ऊर्जा का संचार करने वाली विष्णु गुप्ता की रचनाओं का संकलन ‘सौगंध’ नाम से प्रकाशित हुआ.
धर्मकवि विष्णु गुप्ता ने मातृवंदना, देशगान, आह्वान जैसी अन्य रचनाएं भी लिखी थीं.
उनकी रचनाओं को हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का साहित्यरत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ था.