Rising Super Power India: भारतीय विकास का अश्वमेध रथ निरंतर प्रगतिमान हैं जिसे अब दुनिया प्रणाम करने लगी है.
अब भारत के इस उदयकाल के साथ विश्व एक चतुर्भुजी शक्ति संतुलन की व्यवस्था का प्रतिनिधि बन रहा है. अमेरिका, चीन, भारत और रूस के इस चतुर्भुज में अपने नये साथी भारत को शेष तीन महाशक्तियां नजरअंदाज करने का साहस नहीं कर सकतीं.
जो मान पीएम मोदी ने भारत को दिलाया है जो स्थान विश्व में भारत का बनाया है – किसी भी पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री ने ऐसा करके नहीं दिखाया है. चाहे चाहत की कमी हो या ईमानदारी की या राष्ट्रप्रेम की भावना की अनुपस्थिति हो या राष्ट्र सेवा की सोच के बजाये पेट-सेवा की सोच हो – पहले के कांग्रेसी सरकारें और नेता देशहित में कुछ विशेष नहीं कर सके. पर मोदी तो बस मोदी ही हैं.
अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति भारत का वर्तमान दृष्टिकोण राष्ट्र सर्वोपरि के सिद्धांत की भारतीय भावना है. भारत किसी भी राष्ट्र को शत्रु मान कर नहीं चलता परंतु मित्र की खाल में छिपे शत्रुओं को भी भली-भाँति पहचानता है. इसलिये विश्व में अजातशत्रु भारत सभी को समान दृष्टि से देखता है पर मित्र राष्ट्रों को सम्मान की दृष्टि से देखता है.
रूस- यूक्रेन युद्ध में भारत ने रूस के आक्रमण की निंदा करने से परहेज किया और रूस के द्वारा प्रारंभ किये गये इस युद्ध को आक्रामकता कहने से इनकार कर दिया है. इसे आप भारत की गुटनिरपेक्षता भी कह सकते हैं और मैत्री के प्रति कर्तव्यभाव भी. पूर्व सोवियत संघ के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध भारत के लिये मैत्रीपूर्ण विरासत हैं. सीधी तौर पर ये भी कहा जा सकता है कि यह पश्चिमी देशों और रूस के बीच एक पक्ष लेने में भारत की अनिच्छा है.
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि भारतीय अधिकारियों के मन में रूस के क्षेत्रीय दावों के प्रति सहानुभूति है. वे मानते हैं कि रूस को अपने दरवाजे पर नाटो के अतिक्रमण को स्वीकार नहीं करना चाहिये और उसके विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिये. बात करें भारतीयों की तो सर्वेक्षण बताते हैं कि साठ प्रतिशत भारतीय रूस के प्रति मैत्री भाव रखते हैं और पुतिन पर उनको भरोसा है.
यही कारण है कि कोई प्रत्यक्ष संकेत नही है जो बता सके कि मोदी सरकार अमेरिका के सामने झुक रही है. व्यापार और विश्व व्यापार संगठन के प्रति भारत के दृष्टिकोण से सिद्ध होता है कि भारत सदा ही खुद को वैश्विक दक्षिण के हितों के साथ नहीं जोड़ता है. भारत के लिये उत्तर-दक्षिण की सोच कभी नहीं रही और अब तो खुल कर भारत ने एक विश्व-परिवार की वकालत की है.
इस वर्ष फरवरी माह में आयोजित डब्ल्यूटीओ के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भारत ने कई चर्चाओं को पटरी से उतारने में मदद की. जिन चर्चाओं में भारत को राष्ट्रहित नहीं दिखाई देता, उन चर्चाओं को चिन्ताओं में बदलने से पहले ही बाहर का दरवाजा दिखा देना भारत का सही कदम है.
भारत ने अपने संप्रभु जल में मत्स्य पालन के लिए सब्सिडी पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया भले ही इससे प्रशांत द्वीप राज्यों और दक्षिण पूर्व एशियाई राज्यों को परेशानी हुई. पर भारत को उसके हितों से विमुख कोई कैसे कर सकता है. कनाडा-भारत संबंधों में आये संकट में भारत की तरफ से न ही शुरुआत हुई न ही आक्रामकता दिखाई गई. आत्मसम्मान की भारत की स्वतंत्रता उसकी किसी भी देश के मैत्री संबन्धों से पहले आती है.
हालांकि अमेरिका की दुनिया में दरोगाई करने की शातिर आदत अभी तक पूरी तरह से गई नहीं है. इसलिये कनाडा को आगे कर भारत के खिलाफ मोर्चा खोलने की घटिया कोशिश कामयाब रही. सितंबर 2023 में, कनाडाई प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत आरोप लगाया कि उसका कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में एक सिख कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में हाथ है.
फिर जैसी य़ोजना थी, कुछ ही समय बाद अमेरिका की तरफ से भी एक आरोप आ गया. एफबीआई ने दावा किया कि न्यूयॉर्क में एक सिख अमेरिकी नागरिक के खिलाफ एक भारतीय सरकार के अधिकारी ने ऐसी ही साजिश की थी जिसे नाकाम कर दिया गया है. ऊपरी तौर आये इस तनाव ने अंदरूनी तौर पर अमेरिका और कनाडा के भारत विरोध की सोच को उजागर कर दिया. दोनो ही देश भारत विरोधी खालिस्तानी अलगाववादी आतंकियों को समर्थन दे रहे हैं और अब ये बात खुल कर सामने आ गई है.
भारत में सरकार का नेतृत्व कर रहा राजनीतिक दल बीजेपी भारत का ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है. बीजेपी ने अमेरिका पर आरोप लगाया है कि वह भारत को अस्थिर करने की डीप स्टेट की कोशिशों को समर्थन दे रहा है और निरंतर पीएम मोदी को निशाना बना रहा है. उसका जवाब उधर से कुछ नहीं आया क्योंकि कोई जवाब था ही नहीं. कनाडा और अमेरिका से भारत ने उनके आरोपों के साक्ष्य मांगे थे जो आज तक नहीं मिले, पर भारत के पास अमेरिका पर लगाये अपने आरोप के समर्थन में सबूत बिलकुल साफ हैं और एक नहीं अनेकों सबूत उसके आरोप की पुष्टि करते हैं.
हालांकि यदि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के खिलाफ आतंक की साजिश करने वालों के खिलाफ आतंक का रास्ता अपनाये तो उसे उसकी पूरी स्वतंत्रता है. विदेशों में बैठ कर भारत के खिलाफ आतंक का अभियान चलाने वालों का राम नाम सत्य यदि भारत सरकार करती भी है तो इसमें किसी को क्या परेशानी है. यदि यही कार्य अमेरिका करे तो उचित है, भारत करे तो अनुचित?
पाकिस्तान के एटमाबाद में अमेरिका ने खुल्ले-आम जिस तरह ओसामा बिन लादेन की हत्या की थी –वो क्या था? अगर ये एक आतंकवादी ख़तरे को ख़त्म करने के लिए अपने हित में काम करने वाले एक मजबूत देश का उदाहरण था तो भारत भी यही उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है.