रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया कि भारत जल्द ही अपने तीसरे विमानवाहक पोत (एयरक्राफ्ट कैरियर) का निर्माण शुरू करेगा। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि हम तीन पर ही नहीं रुकेंगे। हम पांच-छह एयरक्राफ्ट कैरियर और बनाएंगे। इस एयरक्राफ्ट कैरियर का वजन 45,000 टन होगा। यह आईएनएस विक्रांत जैसा होगा।
भारत ने पहला एयरक्राफ्ट कैरियर “आईएनएस विक्रमादित्य” साल 2013 में रूस से मंगाया था। अभी आईएनएस विक्रांत और आईएनएस विक्रमादित्य भारतीय नौसेना कि सेवा कर रहें हैं। जनवरी 2023 संसद की स्थाई समिति ने तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की आवश्यकता बताई थी।
कैसा होगा यह एयरक्राफ्ट कैरियर
भारत निर्मित इस एयरक्राफ्ट कैरियर का वजन 45 हजार टन होगा। इसकी लंबाई 860 फीट, बीम 203 फीट, ऊंचाई 194 फीट और ड्रॉट 28 फीट होगी। इसमें 14 डेक होगा। इसे चार जनरल इलेक्ट्रिक इंजन और दो इलेकॉन कोगैग गीयरबॉक्स से ताकत मिलेग। इसकी अधिकतम रफ़्तार 56 km/hr की होगी। इसकी रेंज 15 हजार किलोमीटर होगी। इसपर एक बार में 196 ऑफिसर औऱ 1449 नौसैनिक एक बार में तैनात हो सकेंगे। इसके सुरक्षा के लिए कवच एंटी-मिसाइल सिस्टम और मारीच एंडवांस्ड टॉरपीडो डिफेंस सिस्टम लगे होंगे।
इस पर राफेल एम, मिग-29के, तेजस फाइटर जेट, टेडबीएफ फाइटर जेट या एएमसीए फाइटर जेट तैनात हो सकते हैं. इसके अलावा कामोव, अपाचे, प्रचंड, एमएच-60आर या ध्रुव हेलिकॉप्टर तैनात हो सकता है।
रणनीतिक संतुलन क्षेत्र में बढ़ेगा
तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर बनने से भारतीय नौसेना तो मजबूत होगा ही। साथ में जापान को भी इससे मदद मिलेगा। अभी चीन का ध्यान जापान की तरफ रहता है। भारत के द्वारा एयरक्राफ्ट कैरियर तैनात करने पर चीन का ध्यान बंटेगा और जापान को थोड़ा प्रेशर कम होगा। भारत सहित आसपास के थाईलैंड, म्यांमार, जापान जैसे समुद्री तट वाले देशों में स्थिरता आएगी और रणनीतिक संतुलन क्षेत्र में बढ़ेगा।
रणनीतिक उद्देश्यों के बीच भारत और चीन ने विमान वाहक बेड़े का विस्तार किया
जहाज के चलने के दौरान समुद्री जहाज के डेक से लड़ाकू जेट लॉन्च करने और पुनर्प्राप्त करने की दीर्घकालिक योजनाओं के ये पहले संकेत हैं। भारत ने अब तक तीन वाहक होने का उल्लेख किया है। तीसरे समुद्री विमानवाहक पोत की आवश्यकता पिछले साल जनवरी में रक्षा संबंधी संसदीय स्थायी समिति द्वारा प्रस्तावित की गई थी। बयान में कहा गया है, “एक वाहक की पहुंच और लचीलापन दूर-दराज के द्वीप क्षेत्रों में सैन्य हवाई क्षेत्रों से कहीं बेहतर है।” राजनाथ के मुताबिक, भारत का एक नया उद्देश्य है जो विमान वाहक पोत हासिल करने के चीन के इरादे से मेल खाता है।
लियाओनिंग और शेडोंग दो विमानवाहक पोत हैं जिनका संचालन चीन वर्तमान में करता है। इसने 1 मई को अपने अगली पीढ़ी के विमान वाहक, फ़ुज़ियान का सात दिवसीय समुद्री परीक्षण शुरू किया। यह चीन में विद्युत चुम्बकीय कैटापोल्ट वाला पहला विमान वाहक है, जो इसे कुल मिलाकर तीसरा बनाता है। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट तकनीक का उपयोग करके अमेरिकी विमान वाहक द्वारा डेक से लड़ाकू जेट लॉन्च किए जाते हैं। जेट बड़े पेलोड ले जा सकते हैं और कैटापल्ट लॉन्च के साथ दो जेट अधिक तेज़ी से लॉन्च कर सकते हैं।
एशिया की बढ़ती नौसेना शक्ति: वाहक विकास
80,000 टन का युद्धपोत फ़ुज़ियान जापान, भारत, ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा निर्मित वाहक से बड़ा है।
चीन और भारत के अलावा अन्य एशियाई देश, समुद्र में वाहक विकसित करने और बिजली परियोजना करने के लिए एक-दूसरे के साथ होड़ कर रहे हैं। जापानियों ने हेलीकॉप्टर वाहक जेएस इज़ुमो को F35 विमान वाहक में बदल दिया है। एक अन्य हेलीकॉप्टर वाहक जेएस कागा को परिवर्तित किया जा रहा है। 2030 तक, दक्षिण कोरिया एक वाहक पेश करने का इरादा रखता है।
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1961 में, भारत ने अपना पहला वाहक एचएमएस हरक्यूलिस लॉन्च किया। इसे यूके से खरीदा गया था और इसे नया नाम “आईएनएस विक्रांत” दिया गया था। 1997 में सेवामुक्त होने से पहले, 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पूर्वी मोर्चे पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था।
एचएमएस हर्मीस, भारत में दूसरा वाहक, यूनाइटेड किंगडम से सेकेंडहैंड अधिग्रहण के बाद इसका नाम बदलकर आईएनएस विराट कर दिया गया। 1987 में शामिल होने के बाद 2017 में इसे सेवामुक्त कर दिया गया।