बात पुरांनी हो गई है. अब हैरानी नहीं होती ये सुन कर कि दिल्ली-एनसीआर की हवा सांस लेने लायक नहीं बची है..देश की राजधानी का एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक स्तर पर जा चुका है. हमारी दिवाली हमारी दिल्ली को भरपूर पटाखों की ढेर सारी ‘हवाई’ यादें दे गई है जो हमारी साँसों के साथ चल रही हैं हर दिन.
दिल्ली एनसीआर में हवाई प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि यहां रहने वालों का नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शामिल होना चाहिए. एक साथ ‘ज़हर’ पीने वाले डेढ़ करोड़ लोग आपको और कहाँ मिलेंगे. दिल्ली में सभी महादेव बन चुके हैं.
बुधवार को दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक याने एक्यूआई 370 थी. थैंक गॉड, चार सौ तो नहीं थी. काफी मेहनत की है दिल्ली सरकार ने या देश की सरकार ने यहां की हवा टाइट रखने में.. वर्ना अगर पांच सौ से ऊपर पहुँच जाता एक्यूआई तो क्या होता ?
धन्यवाद दिल्ली के लोगों की सहन शक्ति को भी देना होगा. इतना कैसे सह लेते हैं. हर साल सहते हैं और जी लेते हैं. स्वास्थ्य अधिक अच्छा है या सहनशक्ति यहां के लोगों की ?-इस पर भी एक टीवी डिबेट होनी चाहिए.
वैसे धन्यवाद सरकार की तरफ से दिया जाना चाहिए दिल्ली के नागरिकों को कि उनके भीतर सहनशक्ति का सूचकांक दुनिया में सबसे ऊपर है. धन्यवाद इसीलिए कि डेढ़ करोड़ लोगों ने यहां की सरकार के खिलाफ अब तक जान लेने की साजिश का मुकदमा नहीं किया है.
ज़हर के मामले में नापाक शहर लाहौर ही है दुनिया में जो दिल्ली को हराने का माद्दा रखता है. ला हौल बिला कूबत की हालत है लाहौर में जो आज की तारीख में दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है. दिल्ली को आप इतना भी बुरा मत समझिये, हम लाहौर से बेहतर हैं.
हिटलर का गैस चैंबर काफी अच्छा था. उसमे एक बार में ही काम हो जाता था. यहां काम आपका होता रहेगा जब तक आप जीते रहोगे. संजीदी बात तो ये है कि दिल्ली में लोग जीते नहीं – दिल्ली में लोग मरते हैं. टॉर्चर ज्यादा बड़ा पनिशमेंट है. जब आप न जीते हैं न मरते हैं -तो उसको टार्चर वाला पनिशमेंट कहते हैं.
वैसे, हिटलर का गैस चैम्बर बेकार था, हमारा अच्छा है. डेढ़ करोड़ लोग उसके चैम्बर में नहीं आ पाते, हमारे वाले में आ गए.
दिल वालों की दिल्ली में दिल बहुत बड़ा है लोगों का. चाहे वो केजरीवाल हो या वायु प्रदूषण – सब कुछ सहन कर लेते हैं. दिल्ली वालों पर ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में रिसर्च होनी चाहिए.
बाबा अज्ञेय ने पूछा था एक बार सांप से – ”हे सांप, तुम सभ्य तो हुए नहीं ..शहर में बसना भी तुम्हें नहीं आया..फिर डसना कहाँ से सीखा ? ये विष कहाँ से पाया ?” उस दिन तो सांप चुप रह गया था. मगर आज बोला है, उसने अपना मुँह खोला है – मैं दिल्ली में रहता हूँ !