आम लोगों से आम जवाब मिलते हैं. एक्सपर्ट जवाब तो सिर्फ एक्सपर्टों से मिलते हैं. कोई अमेरिकी मैडम कभी प्रेजिडेंट क्यों नहीं बन पाई, इसकी वजह एक्सपर्ट लोग तीन बातों को मानते हैं.
पहला कारण है सामाजिक. आज की बात छोड़ कर पहले की बात करें तो अमेरिकी समाज में लोग अपनी पत्नियों को राजनीति से दूर रखना चाहते रहे हैं. ज़ाहिर ही है, यहां के लोगों की मानसिकता पर पुरुषवाद हावी रहा, तभी वे नहीं चाहते रहे कि उनकी पत्नियां राजनीति में आ कर सशक्त हो जाएँ. आर्थिक सशक्तता से बड़ी सशक्तता सत्ता की होती है, अर्थ और आर्थिक शक्तियां जिसके पीछे चलती हैं.
सामाजिक कारण
सभ्य हो जाना इस बात का प्रमाण नहीं होता कि समाज में स्वतंत्रता और समानता का न्याय स्थापित हो गया है. अमेरिका में सभ्यता के मुकाबले समानता पिछड़ी रही और अब जा कर कहीं उसने अपना मुकाम पाया है. आज अमेरिका में पुरुषों का नहीं महिलाओं का राज है जिसको सशक्त किया देश के क़ानून ने.
अमेरिकी राजनीति की एक्सपर्ट आइरीन नतिविदाद कहती हैं कि दुनिया के दूसरे देशों में जो हुआ अमेरिका में भी वही हुआ. अमेरिका में भी महिलाओं को बहुत से बुनियादी अधिकार पुरुषों की तुलना में काफी देर से मिले, उदाहरण के लिए, अमेरिका की स्वतंत्रता के पूर्व यहां स्कूलों में लड़कों को तो पढ़ना-लिखना दोनों सिखाया जाता था, पर लड़कियों को लिखना नहीं सिखाया जाता था.
यही वजह थी कि महिलाएं पढ़ तो पाती थीं, पर लिख नहीं सकती थीं. इसलिए दस्तखत के तौर पर वे अपने नाम की जगह “X” लिखती थीं. उनको प्रॉपर्टी के अधिकार भी नहीं दिए गए थे. कारणों से वे सामाजिक तौर पर पुरुषों से पिछड़ने लगीं. काफी समय लगा उनको हर क्षेत्र में पुरुषों को टक्कर देने में.
सर्वे एजेंसी गैलप का स्पष्टीकरण इस प्रश्न पर ये था कि साल 1937 में करीब 64% लोगों का मानना था कि महिलाएं राष्ट्रपति पद के योग्य नहीं हैं. लोग कहते थे कि राजनीति पुरुषों की दुनिया है और इसको ऐसे ही होना चाहिए. एजेंसी बताती है कि आज भी 5% से ज्यादा पुरुष वोटर महिलाओं के लिए यही सोच रखते हैं.
शुरुआत में अमेरिका की फिल्मों में औरतों को घर का काम संभालना, पति के साथ प्यार करना और बच्चों को जन्म देना – दिखाया गया. साल 1950 की बात करें ये वो दौर था जब अमेरिका की महिलाओं की स्वतंत्रता फिर से छिन गई थी.
उस वक्त के गणमान्य लोग कहने लगे कि सोसायटी काम पर जाने वाली महिलाओं के कारण सोसाइटी में बुराइयां पैदा हो रही हैं. इस तरह की सोच का असर न केवल कामकाजी महिलाओं के जीवन पर पड़ा बल्कि इससे अमेरिका की चुनावी राजनीति में हिस्सा लेने वाली महिलायें भी हतोत्साहित हुईं .
साल 1958 में अचानक कोया न्यूटसन नाम वाली एक सांसद का मन उपचुनाव लड़ने को मचल गया. तो उसके खिलाफ लोगों ने उसके एक्स हसबैंड एंड्रयू न्यूटसन को ढूंढ निकाला और उसको पैसा देकर कोया के विरुद्ध उससे कैंपेन कराया.
योजना बना कर एंड्रयू से एक पत्र लिखवाया गया जिसमें कोया से उसने उसकी जिंदगी में वापस आने और घर लौटने की अपील की थी. यह पत्र अखबार में छपे इस पत्र में लोगों ने पढ़ा कि इस लेटर में लिखा था कि पति का घर ही पत्नी के लिए सही जगह है. इस तरह के प्रचार का प्रभाव ये हुआ कि कोया हार गईं.
राजनीतिक कारण
राजनीतिक कारण भी रहा इस स्थिति के लिए जिम्मेदार. अमेरिका की महिलाओं को देश की स्वतन्त्रता के बाद अपनी स्वतंत्रता के लिए लगभग डेढ़ सौ साल लग गए. आज़ाद अमेरिका में करीब 141 साल बाद महिलाओं को मिले थे वोटिंग राइट्स. ज़ाहिर है इस तरह पूरे 141 साल किसी चुनावी मैदान में उतरने का मौका ही नहीं था उनके पास.
वो था 18 अगस्त, 1920 का दिन जब महिलाओं को पता चला कि देश ने उनको वोटिंग करने का अधिकार दे दिया है.
हैरानी की बात ये भी है कि जिन 7 लोगों को अमेरिका का फाउंडिंग फादर माना गया है, इनमें कोई भी महिला नहीं है. पहला राष्ट्रपति चुनाव अमेरिकी जनता ने साल 1789 में देखा था लेकिन इस समय महिलाएं घरों में बंद थीं.
अमेरिकी राजनीतिक मामलों के जानेमाने विशेषज्ञ डेबी वाल्श का इस बात पर विचार थोड़ा अलग है. महिलाओं को चुनावों में बारह पत्थर बाहर रखने की बात पर उनका कहना है कि दुसरे देशों में लोग पार्टी को वोट करके जिताते हैं और फिर वो पार्टी पीएम का चुनाव करती है. इसके विपरीत अमेरिका में वोटर सीधे राष्ट्रपति के लिए वोटिंग करते हैं, इस कारण महिलाओं के लिए मुश्किल पेश आती है.
इस स्थिति का कारण ये है कि अमेरिका में लोग मानते हैं कि महिलाओं में युद्ध जैसे मुश्किल हालात में नेतृत्व के लिए जो मानसिक एवं शारीरिक क्षमता चाहिए, वो महिलाओं में नहीं है, दूसरी तरफ पुरुषों में ये गुण सहजात और वंशानुगत हैं.
भारत का उदाहरण देते हुए डेबी वाल्श कहती हैं कि भारत की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का आक्रमक और प्रभावशाली व्यक्तित्व उनकी लोकप्रियता का कारण बना था. दूसरी तरफ 231 साल के चुनावी इतिहास में दुनिया की महाशक्ति अमेरिका आज तक संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए के लिए एक सशक्त नीति निर्मित नहीं कर पाया है.