18वीं लोकसभा के प्रथम सत्र के तीसरे दिन स्पीकर का चुनाव किया गया। उसके बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं ने स्पीकर ओम बिरला को बधाई दी। कुछ समय के बाद ही स्पीकर ओम बिरला ने आपातकाल को याद करते हुए अपनी बात रखी, जिसका अंदाजा विपक्ष को नहीं था और वह हक्का-बक्का रह गया।
स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि यह सदन 1975 में आपातकाल लगाने के फैसले की कड़ी निंदा करता है. इसके साथ ही हम उन सभी लोगों के दृढ़ संकल्प की सराहना करते हैं, जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया, संघर्ष किया और भारत की लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया। भारत की इतिहास में 25 जून 1975 के दिन को हमेशा कला अध्याय के रूप में जाना जाएगा।
ओम बिरला ने आगे कहा कि इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाई और बाबा साहब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था। भारत लोकतंत्र की जननी रहा है। आपातकाल के दौरान देश के नागरिकों के अधिकारों का हनन किया गया।
विपक्ष के नेताओं को जेल में डाल दिया गया। पूरे देश को जेलखाना बना दिया गया। तब की तानाशाही सरकार ने मीडिया पर कई पाबंदियां लगा दिया गया। न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया गया। आपातकाल का वो समय हमारे देश के अन्यायकाल का कालखंड था।
आपातकाल के दौरान लोगों पर जबरन नस्लबंदी थोपा गया और शहरों में अतिक्रमण का नाम पर मनमानी की गई। यह सदन उन सभी लोगों के प्रति संवेदना जताना चाहता है।
दो मिनट की मौन रखी गई
हम आपातकाल के 50वीं वर्षगाठ में प्रवेश कर रहे हैं। यह 18वीं लोकसभा बाबा साहब आंबेडकर के संविधान को बनाए रखने, इसकी रक्षा करने की प्रतिबद्धता को दोहराती है। आपातकाल के दौरान जान गंवाने वालों के लिए दो मिनट का मौन भी रखा गया।