बड़ी अजीब सी लगती है ये बात कि ये कैसे हो सकता है कि तीस साल बाद एक बच्चा वापस घर आ जाए जो जब गायब हुआ था तब बारह साल का था. लेकिन अभी ये पुष्टि करनी बाकी है कि बच्चा जो घर आया था वो वही है जो गायब हुआ था.
मनोविज्ञान की दृष्टि से देखें तो नए राजू याने बड़े राजू का चेहरा ऐसा नहीं लगता कि वो ऐसा लगता हो कि सारी कहानी नकली बना कर घर में घुसने की साजिश कर रहा हो. फिर घर के लोग भी इतने बेवकूफ कैसे हो सकते हैं कि किसी और बच्चे को अपना बच्चा समझ लें तीस साल के बाद.
कोई तो ऐसी बात थी ही जिसके कारण घरवालों ने माना कि ये बड़ा राजू ही उनका छोटा राजू है. पुलिस को भी ऐसा ही लगा. मान लेते हैं कि घर वालों को समझ नहीं हो चोर बदमाशों की लेकिन पुलिस को कोई चोर बदमाश इतनी आसानी से कैसे धोखा दे सकता है !
राजू की मां ने पहचाना राजू को
किसी भी बच्चे की सही सही पहचान उसकी माँ से बेहतर कोई नहीं कर सकता. राजू की मां ने अपने खोये बेटे को पहचाना. माँ ने कहा कि राजू के दिल के पास तिल था और सिर पर भी एक छोटा सा गड्डा था. ये दोनों निशान राजू के बदन पर थे जिनसे उसकी पहचान हुई.
बहुत खुश है सारा परिवार
माँ के हाथों पुष्टि होने के बाद जब घरवालों द्वारा दी गई उसकी पुरानी फोटो और पुलिस रिकॉर्ड की फोटो से मिलान किया गया तब तो तस्वीर और भी साफ़ हो गई. राजू के पिता ने भी अपने बेटे को पहचान कर गले से लगा लिया. इस दौरान भावुक माहौल ने पुलिस वालों की आँखों को भी भिगो दिया. बेटे को पाकर परिजनों के आंसू छलके तो माँ बुरी तरह रो पड़ी.
जो जानकारी मिली उसके राजू के पिता का नाम है तुलाराम जो कि पहले बिजली विभाग में नौकरी करते थे. अब वे रिटायर हो गए हैं. राजू की तीन बहने भी हैं जिनकी शादी हो चुकी है. अब माता-पिता अपने इकलौते बेटे को लम्बे तीस वर्षों के बाद फिर अपने घर में देख कर बहुत खुश है. अपने परिवार में वापस आ कर राजू की ख़ुशी भी उसके चेहरे पर दिखाई दे रही है.
हट गया बहन के ऊपर से कलंक
सबसे ज्यादा वो बहन खुश है जिसको परिवार के लोग इस घटना का जिम्मेदार मानते थे. जिस दिन राजू खोया था उस दिन उसकी अपनी बहन से लड़ाई हुई थी और वो स्कूल से घर आते समय सड़क पर बैठ गया था. बहन ने सोचा कि वो पीछे पीछे घर आ जाएगा, तो वो चलती रही और घर आ गई. लेकिन भाई घर नहीं आया.
ऐसे वापस गाजियाबाद आया
पिछले दिनों वहां कुछ लोग बकरियां खरीदने के लिए आए थे. राजू ने मौका देख कर उनको अपनी सारी कहानी सुनाई और उनसे मदद मांगी. उन बकरी खरीदने वालों ने राजू को भागने में सहायता की और राजू उनकी गाड़ी में छिपकर वहां से निकलने में कामयाब हो गया.
बकरी खरीदने वाले राजू को पहले दिल्ली लाये और यहां उसको उन्होंने गाजियाबाद की ट्रेन में बैठा दिया. जब राजू गाजियाबाद पहुंचा तो उसे यहां सभी कुछ बदला हुआ नज़र आया .न ही वो यहां किसी को जानता था और न उसके पास अपने घर का कोई एड्रेस था. अब राजू कहाँ जाए ? काफी सोच-विचार के उसको समझ आया कि शायद पुलिस उसकी मदद कर सके. वो पास के पुलिस थाने पहुंचा और वहां अपनी पूरी कहानी सुना दी.
खोड़ा पुलिस को जाता है श्रेय
ये गाजियाबाद का खोड़ा क्षेत्र था. यहां थाने की पुलिस भी सारी बात सुन कर अचरज में पड़ गई. लेकिन उन्होंने पूरी जिम्मेदारी का परिचय देते हुए राजू के खोये परिवार को ढूंढना शुरू किया. अब जब राजू मि गया था तब घर खो गया. पुलिस की तत्परता सराहनीय है. पुलिस ने राजू के परिवार की खोज के दौरान सोशल मीडिया पर भी राजू की कहानी शेयर कर दी. पुलिस ने लोगों से अपील की कि यदि आपमें से कोई भी इस संबंध में कोई जानकारी रखता हो तो पुलिस से सम्पर्क करे.
पुलिस ने पुरानी फाइलों से तीस साल पहले के दर्ज मिसिंग केसेज को खंगालना शुरू किया. तब पुलिस को पता चला कि एक घटना ऐसी ही तीस साल पहले थाना साहिबाबाद क्षेत्र में भी हुई थी. एक परिवार का एक बारह साल बच्चा गायब हुआ था. ढूंढते हुए पुलिस उस परिवार तक पहुंच गई. खबर मिलते ही परिवार वाले भागकर पुलिस के पास पहुंचे और उन्होंने राजू की पहचान कर ली.
कहानी अभी भी बाकी है दोस्तों. देखिये कहानी का अगला और अंतिम अंक.