जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देशभर में आक्रोश का माहौल है। इस हमले में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों द्वारा 26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए कई बड़े फैसले लिए हैं। इसी बीच, बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने पाकिस्तान के साथ-साथ बांग्लादेश को भी आड़े हाथों लिया है।
निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर बांग्लादेश को निशाने पर लेते हुए लिखा, “बांग्लादेश भी बड़ा छटपटा रहा है, अब समय आ गया है कि गंगा नदी का पानी भी बंद कर दिया जाए। पीएंगे पानी हमसे, गाएंगे पाकिस्तान से!” उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर तीखी बहस छिड़ गई है।
दरअसल, दुबे ने एक अंग्रेजी वेबसाइट की खबर का स्क्रीनशॉट भी साझा किया जिसमें दावा किया गया है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के एक कानूनी सलाहकार डॉ. आसिफ नजरूल ने आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के एक सदस्य से मुलाकात की थी। यह मुलाकात पहलगाम हमले के अगले ही दिन ढाका में हुई, जिससे संदेह जताया जा रहा है कि कहीं न कहीं भारत विरोधी गतिविधियों को बांग्लादेश की मौजूदा सत्ता से समर्थन मिल रहा है।
बीजेपी सांसद ने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने के फैसले की सराहना की और कहा कि यह ऐतिहासिक कदम है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भी आलोचना की और कहा कि 1960 में उन्होंने नोबेल पुरस्कार की चाह में पाकिस्तान को ‘सांप को भी पानी’ देने का मौका दिया।
सरकार का जवाब—“अब बख्शा नहीं जाएगा”
पहलगाम हमले के बाद केंद्र सरकार ने ताबड़तोड़ फैसले लेते हुए पाकिस्तान के साथ 1960 की सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से रोक दिया है। इसके अलावा अटारी बॉर्डर पर चेकपोस्ट को बंद कर दिया गया है और सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिए गए हैं। भारत सरकार ने इस हमले के लिए ज़िम्मेदार आतंकियों को ‘मुंहतोड़ जवाब’ देने की चेतावनी भी दी है।
इतना ही नहीं, भारत ने पाकिस्तान को निर्देश दिया है कि वह एक सप्ताह के भीतर अपने सभी डिफेंस एडवाइजर्स को नई दिल्ली से वापस बुला ले।
राजनीतिक और कूटनीतिक मोर्चे पर सख्ती
सरकार के इन फैसलों को जनता के गुस्से के बीच एक निर्णायक कदम के तौर पर देखा जा रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने के साथ-साथ भारत अब कूटनीतिक मोर्चे पर भी कोई नरमी बरतने को तैयार नहीं है।
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इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब आतंक और उसके समर्थकों के खिलाफ ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ की नीति पर काम कर रहा है।