सीधी सी बात है जैसे इन्सान बदला लेते हैं वैसे ही कौवे भी बदला लेते हैं. किसी कौवे की अगर एक बार किसी इंसान से हो गई दुश्मनी तो वह उस दुश्मनी को कई सालों तक भूलतेा नहीं है और इसी तरह वह कौवा उस इन्सान को भी नहीं भूलता.
इसका मतलब ये हुआ कि इंसान के साथ दुश्मनी हो जाने पर कौवे उस दुश्मनी को तब त भूलते नहीं हैं जब तक वे उससे बदला नहीं ले लेते. बदले के इस इंतजार में भले ही सालों बीत जायें, कौवे बदला लेने की कोशिश में लगे रहते हैं.
ये अजीब सा दावा किया है बर्ड्स एक्सपर्ट्स ने हाल ही में . उनका मानना है कि कौवे भी इंसानो की तरह होते हैं बदला लेने में. उन्होंने दावा किया है कि यदि कौवों की किसी इंसान से जाने-अनजाने में दुश्मनी हो जाये, तो वो उन्हें कई सालों तक ये दुश्मनी भूलती नहीं है.
बर्ड्स एक्सपर्ट्स से जब ये पूछा गया कितने साल तक ? याने कौवों की दुश्मनी कितने साल जिन्दा रहती है, तो उन्होंने बताया कि लगभग 17 साल तक. इन सत्रह सालों तक वे बदला लेने के लिये वे अपने उस ‘दुश्मन’ का पीछा नहीं छोड़ते हैं.
इस विषय पर फिल्में भी बनी हैं
हॉलीवु़ड और बॉलीवुड में ऐसी कई फिल्में भी बनी हैं जिनमें पशु उन मनुष्यों का चेहरा याद रखते हैं जिनसे उन्होंने चोट खाई हो या उसने उनके परिवार पर हमला किया हो या उनके कौवा परिवार के किसी सदस्य को मार डाला हो.
रियल लाइफ में भी होता है ऐसा
समान्यतया लगता ये है कि ऐसा सिर्फ फिल्मों में हो सकता है. जानवरों के पास बदला लेने की सेन्स कहां से आई ? पर सच ये है कि आपका खयाल सच नहीं है. कौवों के मामले में सच वही है जो पशु वैज्ञानिक कह रहे हैं. ये वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि कौवे भी बदला लेते हैं. यदि किसी इंसान से दुश्मनी हो जाये तो भूलते नहीं, कई साल बदला लेने की फिराक में रहते हैं और भूलते तभी हैं जब बदला ले लेते हैं.
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन मारजलुफ एक एनवायरोमेंटल साइंटिस्ट हैं. उन्होंने इस विषय़ पर काफी शोधकरने के बाद कौवों के बदला लेने वाली फितरत पर जानकारी जुटाई है.
किया एक्सपेरीमेन्ट दैत्य मास्क पहन कर
प्रोफेसर मारजलुफ नामके वैज्ञानिक ने 2006 में एक प्रयोग किया था ये पता करने के लिये कि क्या कौवे भी बदला ले सकते हैं. इस लिये उन्होंने एक दैत्य जैसा मास्क पहना और सात कौवों को थोखे से एक जाल में फंसा कर पकड़ लिया. फिर इन सातों की पहचान हो सके इसके लिये उन कौवों के गले में सफेद बैंड बांध दिए. इसके कुछ देर बाद प्रोफेसर साहब ने कौवों को बिना कोई चोट पहुंचाए उड़ा दिया.
फिर शुरू हुआ हमलों का सिलसिला
कौवे उड़ तो गये पर वे अपने उस दुश्मन को नहीं भूले. उड़ जाने के बाद भी उन कौवों ने उनका पीछा छोड़ा नहीं. प्रोफेसर साहब दैत्य मास्क पहन कर जब भी यूनिवर्सिटी कैंपस अपने घर से बाहर निकलते, कौवे उनका इंतजार कर रहे मिलते उनको और वे तुरंत उन पर हमला बोल देते थे.
कौवे नहीं भूले पूरे सत्रह साल तक
अपनी शोध में प्रोफेसर जॉन ने पाया कि स्तनधारियों में जिस तरह का एमिगडाला होता है वेसा ही एक अंग पक्षियों के दिमाग में भी होता है. एमिगडाला, दरअसल दिमाग का एक ऐसा भाग है, जो भावनाओं को प्रोसेस करने का काम करता है. उन्होंने पाया कि इसी एमिगडाला नामक अंग के कारण इंसानों की छोटी से छोटी हरकतों पर भी पक्षी ध्यान देते हैं, यहां तक कि वे उनके चेहरे को भी पहचान लेते हैं.
दुश्मन पर हमला करते हैं सब मिल के
प्रोफेसर साहब ने अपने प्रयोग के दौरान देखा कि सफेद बैंड पहने कौवे तो उनका पीछा करते हुए उन पर हमला करते ही थे, बल्कि उन कौवों के में जितने भी कौवे होते थे वे सब भी उनके ऊपर हमला करने में पीछे नहीं रहते थे.
सात साल तो ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा. उसके बाद साल 2013 के बाद कुछ कौवे शायद थक गये थे इसलिये कौवों की संख्या में कमी नजर आने लगी.
शांति हुई सत्रह साल बाद
इसके बाद आया साल 2023 और तब जब सितंबर माब में प्रोफेसर साहब एक दिन टहलने बाहर आये तब उस दिन घटना को सत्रह साल बीत चुके थे. उस समय पहली बार ऐसा हुआ कि वो दैत्य मास्क पहन कर बाहर घूम रहे थे और कौवे उनकी तरफ नहीं देख रहे थे न ही वे कोई शोर मचा रहे थे. उस दिन के बाद से कौवों ने प्रोफेसर साहब पर हमला करने की अपनी कोशिश बंद कर दी. प्रोफेसर जॉन अब अपनी सत्रह साल चले अपने शोध को प्रकाशित कराने की बात सोच रहे हैं.