Centibillionaire’s club: खबर ये न केवल अम्बानी और अडानी के लिए बुरी है बल्कि सारे देश के लिए भी बुरी है. भारत के उद्योगपतियों के लिए साल 2024 ने अपना आखिरी महीना कुछ इस तरह पेश किया कि वैश्विक आर्थिक आकाश पर उड़ान भर रहे भारत के लिए चिंता पैदा कर दी.
आर्थिक प्रगति के नित नए सोपान चढ़ रहा भारत दुनिया के आर्थिक रूप से शक्तिशाली देशों के लिए ईर्ष्या का विषय बना हुआ है. ऐसे में ज़ाहिर है कि भारत के विरुद्ध आर्थिक षड्यंत्र मिली-जुली साजिशों का हिस्सा भी हो सकती हैं.
जुलाई 2024 में 120.8 बिलियन डॉलर की सम्पत्ति थी मुकेश अंबानी की जो इन छह माह में घटकर आज दिसंबर 2024 के महीने में लगभग 96.7 बिलियन डॉलर रह गई है. दूसरी तरफ गौतम अडानी की संपत्ति का ग्राफ $122.3 से गिर कर $82.1 बिलियन रह गया है.
वैश्विक षड्यंत्र का परिणाम
ये एक वैश्विक षड्यंत्र है जो पिछले साल जनवरी के महीने से शुरू हुआ था और तब उसने अडानी को अपना निशाना बनाया था. लेकिन इस साल इस साजिश ने लगातार कोशिशों को अंजाम देते हुए भारत के दोनों आसमानी उद्योगपतियों के रास्ते में कांटे बो दिए. परिणाम अब आपके सामने है.
हंड्रेड बिलियन डॉलर्स क्लब था पहला लक्ष्य
हंड्रेड बिलियन डॉलर्स के क्लब से अम्बानी-अडानी को बाहर करके डीप स्टेट ने अपना एक बड़ा लक्ष्य पा लिया है अब उसका अगला लक्ष्य भारत की आर्थिक कमर तोड़ना है. जैसा कि सुना जाता है और बीजेपी ने अब खुल कर अमेरिका पर इसका आरोप भी जड़ दिया है कि अमेरिका से भारत को कमज़ोर और अस्थिर करने की कोशिशें चल रही हैं और इन कोशिशों को वहां की सरकार का समर्थन प्राप्त है.
डीप स्टेट की साजिश
यही कोशिशें अब चौतरफा होती जा रही हैं. भारत को राजनीतिक रूप से कमजोर करने की साजिश असफल रहने के बाद अब डीप स्टेट भारत को आर्थिक रूप से दुर्बल करना चाहता है. मगर ये षड्यंत्र भी भारत के विरुद्ध इतनी आसानी से सफल नहीं हो पायेगा..विशेषकर तब जब भारत को सब नज़र आ रहा है.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट ने बताया
मुकेश अंबानी और गौतम अडानी भारत के सबसे अमीर उद्योगपतियों में शामिल हैं जो दुनिया के सबसे बड़े अमीरों के क्लब अरबपति जमात में भी शामिल थे. पर इन दोनों व्यवसायियों को अब बड़ा झटका लगा है जिसने इनकी चुनौतियों को दुगुना कर दिया है. साल 2024 इन दोनों ही उद्योगपतियों के लिए आर्थिक चुनौतियों से भरपूर रहा है. अब नई रिपोर्ट आई है ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट जिसने बताया है कि अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी और रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी अब दुनिया के सबसे महंगे 100 बिलियन डॉलर क्लब से बाहर हो गए हैं.
अम्बानी – अडानी की संपत्ति में हाल के महीनों में बड़ी गिरावट देखी गई है जिन्होंने साल के आखिरी महीने तक आते आते इन दोनों को ही दुनिया के धनाढ्य अरबपतियों की सूची से बाहर निकाल फेंका है. इतना ही नहीं डीप स्टेट के विषैले प्रयासों ने इन दोनों व्यापारिक घरानों के व्यावसायिक साम्राज्य के लिए नई चुनौतियां भी खड़ी की हैं.
क्यों आई अंबानी की संपत्ति में गिरावट?
छह माह पहले जुलाई के महीने में मुकेश अंबानी की संपत्ति 120.8 बिलियन डॉलर थी. लेकिन छह माह में ही इसका ग्राफ गिरकर इस माह लगभग 96.7 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है. जो कारण देखा गया है इस गिरावट का वो बताता है कि मुख्य रूप से रिलायंस इंडस्ट्रीज के रिटेल और एनर्जी डिवीजन्स के दुर्बल प्रदर्शन ने ये स्थिति पैदा की है. इतना ही नहीं बढ़ता कर्ज भी इसका एक मुख्य कारण है.
दूसरी तरफ अंबानी के निवेशकों के बीच कंपनी का व्यापारिक विस्तार भी एक मुद्दा बन कर खड़ा है जो चिंता पैदा कर रहा है. जुलाई माह में बेटे अनंत अम्बानी की शादी के समय के मुकाबले अब अम्बानी की सम्पत्ति में लगभग 24 बिलियन डॉलर की कमी आई है.
अधिक गंभीर है अडानी की स्थिति
देश के दूसरे सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी की संपत्ति के ग्राफ में गिरावट के पीछे स्पष्ट तौर पर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट और अमेरिकी न्याय विभाग (DoJ) की जांच ने बड़ी भूमिका निभाई है. हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने झूठे धोखाधड़ी के आरोप लगा कर अडानी समूह की छवि को बड़ी चोट पहुंचे थी. इसी साल जून के महीने में अडानी की संपत्ति $122.3 बिलियन थी, जो अब घटकर नवंबर माह में सिर्फ $82.1 बिलियन रह गई. सम्पत्ति में आई इस बड़ी गिरावट ने अडानी को ब्लूमबर्ग के “सेंटिबिलियनेयर क्लब” से बाहर निकाल दिया है.
दबाव भारत की टेलीकॉम इंडस्ट्री पर
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट का मानना है कि भारत की टेलीकॉम कंपनियों के सर पर ख़तरा मंडरा रहा है. नए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां भारत के टेलिकॉम सेक्टर के लिए समस्याएं खड़ी कर सकती हैं वहीँ दूसरी तरफ एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक के भारत में प्रवेश से भी इस सेक्टर के लिए नई चुनौतियां पैदा हो सकती हैं.
ठोस कदम उठाने होंगे
गौतम अडानी और मुकेश अंबानी की संपत्ति में आई इस चौंकाने वाली गिरावट ने भारतीय उद्योग जगत को सोचने पर विवश कर दिया है और हो सकता है कि यह भारतीय उद्योग की बढ़ती रफ्तार वाली सड़क पर एक अहम मोड़ साबित हो. उद्योग विशेषज्ञ और निवेशक मानते हैं कि इन दोनों उद्योगपतियों को अब अपने व्यापारिक साम्राज्य को स्थिर करने के लिए गंभीर होना होगा और कई बड़े रणनीतिक कदम उठाने होंगे.