पहलगाम आतंकी हमले के बाद देशभर में आपातकालीन तैयारी को परखने और नागरिक सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के उद्देश्य से 7 मई को एक राष्ट्रव्यापी सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल आयोजित की जा रही है। नई दिल्ली नगर परिषद (NDMC) क्षेत्र में भी यह मॉक ड्रिल होगी, जिसमें बुधवार रात 8:00 बजे से 8:15 बजे तक ब्लैकआउट रहेगा।
अधिकारियों ने स्थानीय निवासियों और संस्थानों से सहयोग करने और घबराने से बचने की अपील की है। इस दौरान जरूरी सेवाएं बैकअप सिस्टम से चालू रहेंगी।
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महाराष्ट्र में 10,000 से अधिक वॉलंटियर्स ने लिया हिस्सा
इस अभ्यास में महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से 10,000 से अधिक स्वयंसेवक भाग ले रहे हैं, जिनमें NCC कैडेट्स, होम गार्ड्स और छात्र शामिल हैं। इस मॉक ड्रिल में एयर रेड चेतावनी प्रणाली, आश्रय की तत्परता और निकासी प्रक्रियाओं की जांच की जाएगी।
मुंबई के 60 क्षेत्रों में बजा सायरन और ब्लैकआउट
मुंबई में शाम 4 बजे 60 स्थानों पर एयर रेड सायरन बजा, जिसके बाद 5 मिनट का ब्लैकआउट हुआ, जिससे यह जांचा गया कि शहर आपातकालीन स्थितियों में कैसे प्रतिक्रिया करता है।
स्वयंसेवकों को फर्स्ट एड, निकासी और आपातकालीन प्रोटोकॉल का प्रशिक्षण दिया जाएगा। क्रॉस मैदान जैसे प्रमुख स्थानों को स्वयंसेवकों के एकत्र होने के केंद्र के रूप में चिन्हित किया गया है।
असम के 14 जिलों में 18 स्थानों पर किया गया अभ्यास
असम के 14 नागरिक सुरक्षा जिलों में 18 स्थानों पर मॉक ड्रिल आयोजित की गई। यह अभ्यास बुधवार को शाम 4 बजे शुरू हुआ और आधे घंटे में संपन्न हो गया।
गृह रक्षक एवं नागरिक सुरक्षा के पुलिस महानिरीक्षक अरविंद कलिता ने कहा, ‘पूरे अभ्यास को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया और हमने दुश्मन के हवाई हमले की स्थिति में अपनी क्षमताओं की जांच की।’

ड्रिल का नेतृत्व असम पुलिस के गृह रक्षक एवं नागरिक सुरक्षा विभाग ने किया और इसमें फायर सर्विस, स्वास्थ्य विभाग, आपदा प्रबंधन, BSNL और सूचना विभाग ने सहयोग किया। यह मॉक ड्रिल न केवल आपात स्थिति में नागरिक सुरक्षा प्रणाली की ताकत को जांचने का प्रयास है, बल्कि इसमें संचार प्रणाली को सुदृढ़ करने पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
क्या है ब्लैकआउट रणनीति?
ब्लैकआउट एक ऐसी रणनीति है जिसमें रात के समय कृत्रिम रोशनी को या तो पूरी तरह बंद कर दिया जाता है या बहुत सीमित कर दिया जाता है। इसका उद्देश्य यह होता है कि दुश्मन के विमान या पनडुब्बियां रोशनी के सहारे अपने लक्ष्य को पहचान न सकें। इस प्रक्रिया में घरों, दुकानों, वाहनों और सड़कों की रोशनी को नियंत्रित किया जाता है।
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान यह रणनीति विशेष रूप से ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका में व्यापक रूप से अपनाई गई थी। लंदन ब्लिट्ज के दौरान जर्मन बमवर्षकों के हमलों से बचने के लिए ब्रिटिश शहरों को पूरी तरह अंधेरे में रखा गया था।
घरों और इमारतों के लिए क्या थे ब्लैकआउट नियम?
ब्रिटेन में 1 सितंबर, 1939 से पहले ही ब्लैकआउट संबंधी आदेश जारी कर दिए गए थे। नागरिकों को निर्देश दिए गए थे कि रात के समय उनके घरों की कोई भी रोशनी बाहर न दिखे। इसके लिए खिड़कियों और दरवाजों को गहरे पर्दों, मोटे कागज या काले कपड़े से पूरी तरह ढंकना अनिवार्य था। सरकार ने इन सामग्री की आपूर्ति सुनिश्चित करने की भी जिम्मेदारी ली।
सड़क की लाइटों को या तो पूरी तरह बंद कर दिया गया था या उन्हें इस तरह ढका गया था कि रोशनी केवल नीचे जमीन पर ही गिरे। लंदन में तो यह व्यवस्था 1914 में ही शुरू कर दी गई थी, जब प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बाहरी रोशनी को सीमित करने के आदेश जारी हुए थे।