वैज्ञानिकों ने भारत के पश्चिमी घाट में एक नई अग्निरोधी दोहरे खिलने वाली फूल ‘डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा’ की खोज की है। यह एक दुर्लभ पुष्प संरचना है जो भारतीय प्रजातियों में पाई जाती है। इसकी खोज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्त संस्थान, पुणे के अघारकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) के वैज्ञानिक डॉ. मंदार दातार के नेतृत्व में एक टीम द्वारा किया गया है। जिसने डिक्लिप्टेरा जीनस में एक नई प्रजाति को जोड़ा, जिसका नाम डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा रखा है।
डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा एक विशिष्ट प्रजाति है, जो तलेगांव-दभाड़े से एकत्र की गई थी, जो अपने घास के मैदानों और चारा बाजारों के लिए जाना जाता है। यह अपनी अग्निरोधी, पायरोफाइटिक प्रकृति के लिए जाना जाता है। यह प्रजाति वर्गीकरण की दृष्टि से अद्वितीय है, जिसमें पुष्पक्रम इकाइयां (सिम्यूल्स) होती हैं जो स्पाइकेट पुष्पक्रम में विकसित होती हैं।
डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा का पहला नमूना 2020 के मानसून में एकत्र किया गया था। इस प्रजाति की पुष्टि लंदन के केव बोटेनिक गार्डन के अग्रणी वैश्विक विशेषज्ञ डॉ. आई. डार्बीशायर ने भी की है।
डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा कब खिलता है?
डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा गर्मियों में सूखे और अक्सर मानव-प्रेरित आग जैसी चरम जलवायु स्थितियों के संपर्क में रहने वाला क्षेत्र उत्तरी पश्चिमी घाट के खुले घास के मैदानों में ढलानों पर पनपता है। यह साल में दो बार खिलता है। पहली बार यह नवंबर की शुरुआत से मार्च या अप्रैल तक खिलता है, वहीं दूसरी बार मई और जून में खिलता है। इस दूसरे चरण के दौरान, वुडी रूटस्टॉक्स छोटे पुष्पों की टहनियां पैदा करते हैं, जो अधिक प्रचुर मात्रा में लेकिन कम अवधि की होती है।
यह भी पढ़ें: पीएम किसान मानधन योजना PM-KMY जिसके तहत मिलेगी 3,000 रु. की पेंशन
डिक्लिपटेरा पॉलीमोर्फा की खोज संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। आवास क्षरण को रोकने के लिए इसको संतुलित किया जाना चाहिए। घास के मैदानों को अत्यधिक उपयोग से बचाना और यह सुनिश्चित करना कि आग प्रबंधन प्रथाएं जैव विविधता का समर्थन करती हैं, इस नई खोजी गई प्रजाति के संरक्षण में महत्वपूर्ण कदम है।