सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (20 जनवरी, 2025) को इंजीनियर अतुल सुभाष की मां अंजू देवी की याचिका पर सुनवाई किया। अंजू देवी ने अपनी बहू निकिता सिंघानिया से 4 वर्षीय पोते की कस्टडी देने की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अपना निर्णय सुनाया। कोर्ट ने कहा कि बच्चा अपनी मां के पास है, और अगर दादी को कस्टडी चाहिए, तो उन्हें उचित कानूनी फोरम में जाकर इस मामले को उठाना होगा।
अतुल सुभाष के बच्चे से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात की गई
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान 4 साल का बच्चा वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़ा। इस सुनवाई में कोर्ट ने बच्चे से बात की और उसके बाद अतुल सुभाष की पत्नी निकिता सिंघानिया और अतुल के भाई से भी बात की। कोर्ट ने बच्चे के मामलों में गोपनीयता का ध्यान रखते हुए, सभी गैरजरूरी लोगों को सुनवाई से बाहर कर दिया। साथ ही, सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग भी बंद कर दी गई थी।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट के जजों ने?
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस एस.सी. शर्मा ने कहा कि इस मामले की शुरुआत तब हुई थी जब बच्चे की मां हिरासत में थी और दादी ने अवैध कस्टडी के तहत तीन राज्यों को पक्ष बनाते हुए बच्चे का पता लगाने की मांग की थी। हालांकि, अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। बच्चे की मां हिरासत से बाहर आ चुकी हैं और बच्चा उनकी देखरेख में है। इसलिए, अगर दादी को बच्चे की कस्टडी चाहिए, तो उन्हें इसे उचित कानूनी मंच पर उठाना होगा।
अंजू देवी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यह मामला हैबियस कॉर्पस (अवैध कैद से मुक्त कराने) से जुड़ा था, जिसमें तीन राज्यों के पक्ष थे। इस स्थिति में, जब बच्चे की मां के पास बच्चा है, तो अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के दायरे में नहीं आता। अदालत ने कहा कि इस मामले की सुनवाई अब स्थानीय कोर्ट में की जानी चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक अहम मोड़ पर आया है, जहां बच्चे की कस्टडी को लेकर परिवार में विवाद जारी है। अदालत ने मामले की संवेदनशीलता को समझते हुए, उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करने का आदेश दिया। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि परिवार में इस तरह के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है, और सुप्रीम कोर्ट सीधे तौर पर इस तरह की कस्टडी मामलों की सुनवाई नहीं करेगा।