बताया ये भी जा रहा है कि ये तीनो जहाज़ बचा सकते थे टाइटेनिक के यात्रियों को. लेकिन उन्होंने सबको डूब जाने दिया. मगर क्यों?
ये नए तथ्य कहाँ से चल कर आज अचानक सभी को चौंका रहे हैं, इस बात को जानने से पहले आपको बताते हैं कि टायटेनिक के सबसे करीब जो जहाज़ मौजूद था “SAMSON ” था उसका नाम. ये जहाज़ इस भयंकर ऐतिहासिक घटना का साक्षी था और घटना के समय टाईटेनिक से सिर्फ सात मील की दुरी पर खड़ा हुआ था .
बताया गया है कि इस सैमसन जहाज के कप्तान ने न केवल टाईटेनिक की तरफ से फायर किये गए सफेद शोले देखे थे, बल्कि इसने डूब रहे टाईटेनिक के बदकिस्मत मुसाफिरो के चिल्लाने की आवाज़ भी सुनी थी. लेकिन सैमसन ने कुछ नहीं किया क्योंकि इसमें सवार लोग गैर-कानूनी तौर पर समुद्र के बेशकीमती जीव-जंतुओं का शिकार कर रहे थे. वे नहीं चाहते थे कि पकडे जाएँ. इसलिए टाईटेनिक की हालात को देखते हुए भी उन्होंने कोई मदद नहीं की और अपना जहाज़डी दूसरी तरफ घुमा कर चलते बने.
इस तथ्य को जान कर किसी ने एक सच कह दिया जिंदगी का – “इस जहाज़ को हम मे से उन लोगों जैसा माना जा सकता है जो अपनी गुनाहों भरी जिन्दगी मे इतने मस्त हो जाते हैं कि उनके अंदर इन्सानियत का जो थोड़ा बहुत एहसास होता है -वो भी खत्म हो जाता है और फिर उनकी सारी जिन्दगी अपने गुनाहो को छिपाने में गुजर जाती है..”
“CALIFORNIAN ” था नाम उस दूसरे जहाज़ का जो डूब रहे टाइटेनिक के करीब मौजूद था. घटना के समय इसकी टाइटेनिक से दूरी 14 मील बताई गई है. इस जहाज़ के कप्तान ने भी टाईटेनिक की तरफ़ से मदद की पुकारों को सुना, डूबते हुए लोगों की मौत और जिंदगी के संघर्ष वाली अभिव्यक्ति को चीखों के रूप में सुना और तो और इस जहाज़ के सवारों ने बाहर निकल कर आसमान में सफेद शोले अपनी आँखों से देखे.
लेकिन चूंकि बदनसीब जहाज़ टाईटेनिक उस वक्त बर्फ़ की चट्टानो से घिरा हुआ था, ऐसे में उसकी मदद के लिए इस जहाज़ को उन चट्टानों के चक्कर काट कर उसकी तरफ जाना पड़ता. कप्तान ने न तो इसकी कोई तकलीफ की, न उसको इस घटना की कोई तकलीफ हुई. इसलिए CALIFORNIAN के कप्तान अपने बिस्तर मे जा कर लिहाफ में खुद को छुपा कर सो जाना बेहतर समझा.
सुबह होने पर जब ये खुदगर्ज जहाज़ टाईटेनिक के पास पहुँचा तो टाईटेनिक को समुद्र की सतह की चादर ओढ़ कर उसकी गोद में समाये चार घंटे से ज्यादा का वक्त गुज़र चूका था. दुर्भाग्य ने टाईटेनिक के कप्तान Adword Smith सहित 1569 यात्रियों को मौत की बाहों में जाते हुए देखा था. बाकी अब देखने को यहां कुछ नहीं बचा था.
एक तीसरा जहाज़ वहां और भी था “CARPHATHIYA” और इसकी दूरी टाईटेनिक से 68 मील की थी. विशाल महासमुद्र की छाती पर रेंगते जहाज़ों के लिए ये दूरी भी कोई दूरी नहीं होती है. उस जहाज़ के कप्तान ने रेडियो पर टाईटेनिक के यात्रियों की मर्मान्तक चीख पुकार सुनी. मगर इस जहाज़ ने पहले के दोनों जहाज़ों जैसा व्यवहार नहीं किया.
इस जहाज़ की दिशा दूसरी तरफ़ थी मगर इसने अपना रास्ता बदल कर टाइटेनिक की दिशा में भागना शुरू किया ताकि उसको मदद दी जा सके. इस जहाज़ की बहादुरी को सलाम किया जाना चाहिए कि इसने बर्फ़ की चट्टानों और खतरनाक़ मौसम की परवाह नहीं की और तेज़ी से टाइटेनिक की तरफ गतिमान हो गया. मगर उसकी दूरी काफी थी ऊपर से बर्फ की चट्टाने पूरी तीव्रता से जहाज़ को चलने से रोकती थीं साथ ही मौसम इतना खराब था कि सावधानी से चलना पड़ा.
बहुत देर हो गई आते-आते. ये जहाज़ जब टाईटेनिक के पास पहुंचा तो वो डूब चूका था. डूबने के बाद भी दो घंटे बीत चुके थे. यही वो जहाज़ था जिसके बारे में बताया जाता है कि इसने लाईफ बोट्स की मदद से टाईटेनिक के बचे हुए 710 मुसाफिरो को जीवित बचाने में सफलता पाई थी.