Justin Trudeau: सोच कामयाब हो सकती है यदि सकारात्मक हो..किसी देश को तोड़ कर अपनी कुर्सी को देश की किस्मत से जोड़ नहीं सकते आप.. ट्रुडो ने ये सबक सीखा ज़रूर होगा.
याद कीजिये 2015 में कनाडा में चुनाव हुए थे, जस्टिन ट्रुडो लिबरल पार्टी के लीडर घोषित किये गए थे. पार्टी 36 से सीधे 184 पर जा पहुंची थी जहां बहुमत 170 पर था. फिर बन गए ट्रुडो प्रधानमंत्री.
एक नेता के तौर पर ट्रुडो की अप्रूवल रेटिंग 68% थी, जबकि ठीक उस समय भारत के पीएम मोदी की रेटिंग 74% थी. जस्टिन काफी पॉपुलर थे और कहा जा सकता है कि लगभग मोदी जी के बराबर थे. लेकिन दस साल में हालात बदल गए.
अब आज का चित्र देखिये. आज 2025 में मोदी 78% पर पहुंच गए जबकि ट्रुडो हैं 28% पर. एक समय था जब कनाडा शांति का प्रतीक था परन्तु ट्रुडो के सत्ता संभालने के बाद पहले तो शुरू हुए गैंग वॉर, फिर आर्थिक परिदृश्य बदलने लगा. उस समय कनाडा में मिडिल क्लास का व्यक्ति आसानी से घर ले सकता था लेकिन आज ये बहुत मुश्किल है.
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फ्री का राशन पाने के लिए कतारे लंबी होती चली गयी. कनाडा में शरणार्थी इतने अधिक हो गए कि देश का इकोसिस्टम हिल गया. इन हालात का कारण जायज था. जिस दौर में दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उनसे पूछा गया की आप विकास पर ज़ोर क्यों नहीं देते? तब उन्होंने कहा था – चुनाव विकास से नहीं बल्कि राजनीतिक प्रबंधन से जीते जाते है!
जस्टिन ट्रुडो भी यही मानते थे. उन्होंने कुछ वोटर का सेगमेंट बना रखा था जो किसी भी हाल में उनको वोट देता इसलिए ट्रुडो को कनाडा का कोई विशेष उद्धार करने की जरूरत नहीं पड़ी.
थोड़ा प्रभावशाली दिखाई देने के लिए वो कभी एलन मस्क की टाँग खींच देते थे तो कभी किसी देश को लोकतंत्र की समझ का ज्ञान दे दिया करते थे. पर इससे कनाडा के आंतरिक मामले सुलझने वाले नहीं थे, कनाडा की स्थिति निरंतर डावांडोल हो रही थी.
कनाडा के प्रधानमंत्री जी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे, इससे अपने को बचाने के लिए उन्होंने भारत को घेरना शुरू किया और कहा कि भारत कनाडा में बसे खालिस्तानियों को मार रहा है. दरअसल वो कनाडा के पार्लियामेंट का ध्यान भटकाना चाहते थे उधर उनके सामने विपक्ष में बैठी कंजर्वेटिव पार्टी भारत को लेकर चुप थी.
ट्रुडो चाह रहे थे कि कुछ ऐसा हो, किसी तरह कनाडा की जनता में ये बात अपनी पैठ बना ले और देश के लोग भारत को दुश्मन मान लें. ऐसे में ट्रुडो को लगा कि उनकी छवि एक हीरो की तरह दिखाई देगी किन्तु हुआ इसका उलट, मोदीजी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं गयी. एक तरफ़ा बात बनी नहीं और जो ग्लोबल न्यूज बनने वाली थी वो भी नहीं बन सकी.
(क्रमश)