Justin Trudeau: खाया पिया कुछ नहीं ग्लास तोडा 12 आना- ट्रुडो ने तो गिलास तोडा सोलह आना..लेकिन तोड़ने की राजनीति करने वाले जड़ से टूट जाते हैं -दुनिया ने ये दास्तान-ए-ट्रुडो से जाना!
जस्टिन ट्रुडो का खालिस्तानी प्रेम देख कर दुनिया को संदेह हुआ था कि कहीं खालिस्तानियों को ज्वाइन तो नहीं कर लिया कनाडा के पीएम ने. कई बार ट्रुडो की गतिविधियों से लगा कि उनके सपनों के खालिस्तान में प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न देख रहे हैं जनाब.
खालिस्तानियों के समर्थन में भारत पर भारी आरोप लगा कर भड़काने की कोशिश की ट्रुडो ने. भारत ने समझदारी दिखाई और कनाडा को वैसे ही इग्नोर किया जैसे पाकिस्तान को करता है. जब भी थोड़ा बहुत चीजे ज्यादा बढ़ती तो विदेश मंत्रालय के प्रवक्ताओं से बयानबाजी वाली आतिशबाज़ी करवा देते.
किन्तु जैसी उम्मीद ट्रुडो को थी वैसा नहीं हुआ – पीएम मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर ने बिल्कुल शांत रहना उचित समझा.
ट्रुडो क्यों भूल जाते हैं कि भारत चाणक्य की जन्मस्थली है. देश में चाणक्य आज भी हैं. भड़काने पर न भड़कने और शुद्ध रूप से नज़रअंदाज़ करने का भारतीय दांव बिल्कुल सही सिद्ध हुआ.
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जब भारत की तरफ से से ट्रुडो के समकक्ष पीएम मोदी ने प्रतिक्रिया मौन रह कर दी तो ट्रुडो की पार्टी के नेता भी उनको कुछ विशेष समर्थन नहीं दे सके.
विपक्ष के नेता पियर पॉलीवियर ने लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरे रखा और आख़िरकार ट्रुडो की छवि ऐसी खराब हुई कि पहले सहयोगी दलों ने हाथ खींचे फिर उसके अपने सांसदों ने.
आख़िरकार वही हुआ जो ट्रुडो ने कभी नहीं सोचा था. उन्होंने रोते हुए अपना इस्तीफा घोषित किया और इस फिल्म के हीरो बन कर उभरे एलन मस्क. ये वही वाले मस्क हैं जिन्होंने मस्ती में नहीं, गंभीरता से कहा कि ट्रुडो अब ज्यादा दिन प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे.
डीप स्टेट के तथाकथित स्वयंभू नेता के रूप में एक तरफ ओबामा हैं तो दूसरी तरफ सोरोस हैं. जैसे ट्रुडो को जीत दिलाने में बड़ा योगदान जॉर्ज सोरोस का था, वैसे ही उनको गिराने की दिशा में बड़ा योगदान मस्क का था.
इस तरह मस्क ने सोरोस को आइना दिखा दिया. संदेश स्पष्ट है सोरोस के लिए कि अमेरिका की तरफ से अब सरकार गिराने की पटकथा एलन मस्क ही लिखेंगे जॉर्ज सोरोस नहीं !
जो नीति या कहें विदेश नीति कनाडा के लिए भारत की है वो नहीं बदलेगी क्योकि हमने तो सीमित संख्या में बयान दिए है और उनमे भी कभी न ही लिबरल पार्टी पर ऊँगली उठायी न कनाडा पर. भारत के बयान केवल जस्टिन ट्रुडो को घेराव करते रहे. अब देश में ऑक्टोबर रिवोल्यूशन आना तय है क्योंकि इसी माह चुनाव हैं और अचम्भा न होगा यदि पियर पॉलीवियर प्रधानमंत्री बन जाएँ.
अब कनाडा में जो दक्षिणपंथी नेता हैं वो भी यही चाहेंगे कि खालिस्तान की जो गंदगी कनाडा में फैली है उसे या तो वे स्वयं साफ कर दें या फिर अज्ञात तत्वों की सहायता करें.