दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागम के रूप में मनाया जाने वाला महाकुंभ आस्था, विश्वास, सौहार्द एवं संस्कृतियों के मिलन का महापर्व है। इसमें शाही स्नान काफी महत्व रखता है. ज्ञान, चेतना और उसका परस्पर मंथन कुंभ मेले का वो आयाम है जो आदि काल से ही हिन्दू धर्मावलम्बियों की जागृत चेतना को बिना किसी आमन्त्रण के खींच कर ले आता है। अगले साल 13 जनवरी से 26 फरवरी तक, प्रयागराज में एक बार फिर इस शानदार उत्सव का केंद्र बन जाएगा, जो लाखों तीर्थयात्रियों और आगंतुकों को भक्ति, एकता और भारत की आध्यात्मिक विरासत की जीवंत अभिव्यक्ति का गहन प्रदर्शन देखने के लिए आकर्षित करेगा।
यह भव्य आयोजन धार्मिक प्रथाओं से परे है, जिसमें खगोल विज्ञान, ज्योतिष, सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं और आध्यात्मिक ज्ञान का समृद्ध मिश्रण शामिल है। लाखों भक्त, तपस्वी और साधक त्रिवेणी संगम पर पवित्र स्नान सहित पवित्र अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए इकट्ठा होते हैं, उनका मानना है कि यह उनके पापों को शुद्ध करेगा और उन्हें आध्यात्मिक मुक्ति की ओर ले जाएगा। महाकुंभ मेला न केवल भारत की गहरी जड़ें जमा चुकी विरासत का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि आंतरिक शांति, आत्म-बोध और सामूहिक एकता की शाश्वत मानवीय खोज को भी प्रदर्शित करता है।
चार स्थानों पर ही क्यों लगता है कुंभ?
कुंभ का शाब्दिक अर्थ कलश है। पौराणिक कथा के अनुसार अमृत कलस की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ था। अमृत-कलश को प्राप्त कर जब इंद्र-पुत्र जयंत दानवों से अमृत की रक्षा हेतु भाग रहे थे तभी इसी क्रम में अमृत की बूंदे पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरी- हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज। तब से इसी चार जगहों पर कुम्भ का आयोजन होता है।
यह कैसे तय होता है कि कहाँ होगा कुंभ का आयोजन?
ज्योतिष गणना के अनुसार कुंभ का आयोजन चार प्रकार से होता हैः
बृहस्पति के कुंभ राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश होने पर हरिद्वार में कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
मेष राशि चक्र में बृहस्पति के प्रवेश होने तथा सूर्य और चन्द्रमा के मकर राशि में आने पर अमावस्या के दिन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
बृहस्पति एवं सूर्य के सिंह राशि में प्रवेश होने पर नासिक में गोदावरी तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
बृहस्पति के सिंह राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश होने पर उज्जैन में शिप्रा तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
12 साल बाद क्यों लगता है कुंभ?
पौराणिक कथा के अनुसार जयंत को अमृत कलश को स्वर्ग ले जाने में 12 दिन का समय लगा था। ऐसी मान्यता है कि देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर होता है। इसी कारण 12 वर्षों पर कुंभ का आयोजन होता है।
कुंभ स्नान कब है / कुंभ स्नान की तिथि
पहला कुंभ स्नान पौष पूर्णिमा के दिन 13 जनवरी को है।
कुंभ शाही स्नान कब है/शाही स्नान की तिथि
प्रथम शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन है।
दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन है।
तीसरा शाही स्नान 03 फरवरी को वसन्त पञ्चमी के दिन है।
पांचवा स्नान 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा के दिन है।
अंतिम स्नान 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन है।
कुंभ के प्रमुख अनुष्ठान
शाही स्नान : प्रयागराज कुंभ के प्रमुख अनुष्ठानों में से स्नान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। करोड़ों तीर्थयात्री और श्रद्धालु कुम्भ मेला के अवसर पर त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में स्नान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने से व्यक्ति का समस्त पाप को धूल जाता है।
आरती: नदी तट पर मनमोहक गंगा आरती भी एक प्रमुख अनुष्ठान है जो तीर्थयात्री और श्रद्धालु के लिए एक अविस्मरणीय दृश्य होता है। गंगा आरती हजारों भक्तों को आकर्षित करती है, जिससे पवित्र नदी के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा जागृत होती है।
कल्पवास: कुंभ मेले के दौरान संगम तट पर कल्पवास एक विशेष अनुष्ठान है। यह पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी से प्रारंभ होकर माघ मास की एकादशी तक है। इस दौरान श्रद्धालु सांसारिक सुख-सुविधाओं, मोह-माया को त्याग कर अनुशासन, तपस्या और उच्च चेतना के साथ ध्यान, प्रार्थना और धर्मग्रंथ अध्ययन जैसे दैनिक अनुष्ठानों में संलग्न होते हैं।
दीप दान: प्रयागराज में कुंभ मेले के दौरान, दीप दान प्रमुख अनुष्ठानों में से एक है। इसमें श्रद्धालु नदी के तट पर दीप जला कर मान गंगा के प्रति कृतज्ञता जताते हैं। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो सारा वातावरण को धार्मिक उत्साह के साथ मन को मंत्रमुग्ध कर देता है।
प्रयागराज पंचकोसी परिक्रमा: तीर्थयात्रियों को प्राचीन प्रथाओं से फिर से जोड़ने के लिए प्रयागराज की परिक्रमा करने की ऐतिहासिक परंपरा को पुनर्जीवित किया गया है। यह यात्रा द्वादश माधव और अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों जैसे पवित्र स्थलों को शामिल करती है, जो सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए आध्यात्मिक संतुष्टि प्रदान करते हैं। इसका उद्देश्य युवा पीढ़ी को इस महत्वपूर्ण आयोजन की समृद्ध सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत से जुड़ने और उसकी सराहना करने का अवसर प्रदान करते हुए एक ऐतिहासिक अनुष्ठान को पुनर्जीवित करना है।
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प्रयागराज के प्रमुख मंदिर
प्रमुख मंदिर: लेटे हनुमान मन्दिर,आलोप शंकरी मंदिर, वेणी माधव / ललिता देवी मंदिर, शंकरविमानमण्डपम मंदिर, अक्षयवट और मनकामेश्वर मन्दिर आदि मन्दिरों का दर्शन करके प्रयागराज की सांस्कृतिक-धार्मिक विरासत का अन्वेषण करें। इनमें से प्रत्येक मन्दिर ऐतिहासिक-धार्मिक महत्त्व से भरा हुआ है।