छत्तीसगढ़: नगरी विकासखंड के 102 ग्राम पंचायतों में भारी आक्रोश की लहर है। ग्राम पंचायत घुटकेल की सरपंच कुसुमलता को जनहित में बैठक बुलाने पर जनपद सीईओ द्वारा नोटिस थमाए जाने से जनप्रतिनिधियों में असंतोष गहराता जा रहा है। सरपंच संघ ने इस कार्रवाई को अलोकतांत्रिक और सरपंचों की स्वायत्तता पर हमला बताया है।
गौरतलब है कि गांव में पेयजल संकट, सफाई की बदहाल व्यवस्था और शासकीय योजनाओं की धीमी प्रगति को लेकर सरपंच कुसुमलता ने ग्रामीणों की बैठक बुलाई थी। जानकारी देने के लिए उन्होंने पंचायत के लेटरपैड का उपयोग कर कोटवार से सूचना भिजवाई। लेकिन जनपद सीईओ ने इस पर शासकीय दस्तावेजों के दुरुपयोग और पंचायत राज अधिनियम की धारा 87, 89 व 40 का उल्लंघन मानते हुए नोटिस जारी कर दिया। साथ ही 7 दिनों में स्पष्टीकरण न देने पर निष्कासन की अनुशंसा की चेतावनी दी गई है।
“जनहित में बैठक बुलाई, लेटरपैड का दुरुपयोग नहीं किया” – कुसुमलता
सरपंच कुसुमलता ने बताया कि सचिवों की हड़ताल के चलते पंचायत के काम पूरी तरह ठप हैं। गांववाले लगातार मूलभूत सुविधाओं को लेकर सवाल कर रहे थे, जिससे मानसिक तनाव बढ़ रहा था। इसी कारण सभी ग्रामीणों को सामूहिक रूप से जानकारी देने के लिए बैठक रखी गई। उनका कहना है कि लेटरपैड का उपयोग केवल सूचना के लिए किया गया था, न कि किसी आदेश के लिए।
सरपंच संघ ने जताया विरोध, जनपद कार्यालय का किया घेराव
इस कार्रवाई के विरोध में सरपंच संघ अध्यक्ष उमेश देव के नेतृत्व में सरपंचों ने जनपद कार्यालय का घेराव किया। संघ का आरोप है कि सीईओ अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर रहे हैं और लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन कर रहे हैं। उमेश देव ने कहा, “एक प्रशासक को अधिकार की मर्यादा में रहकर कार्य करना चाहिए। धारा लगाने और निर्वाचित प्रतिनिधियों को डराने-धमकाने का अधिकार केवल उच्च अधिकारियों को है, न कि सीईओ को।”
पहले से विवादों में सीईओ, जिलाधीश भी थमा चुके हैं नोटिस
बताया जा रहा है कि जनपद सीईओ की कार्यप्रणाली पहले भी विवादों में रही है। हाल ही में धमतरी कलेक्टर ने उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था। ऐसे में सरपंचों ने सवाल उठाया है कि जब एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि जनहित में कदम उठाता है, तो उसे प्रताड़ित क्यों किया जा रहा है?
सरपंचों की बढ़ी जिम्मेदारी, सचिवों की हड़ताल बनी चुनौती
पंचायत सचिवों की हड़ताल ने स्थिति और भी जटिल बना दी है। अब ग्राम पंचायतों की जिम्मेदारी पूरी तरह सरपंचों पर आ गई है। ऐसे समय में यदि सरपंच कोई पहल करते हैं तो उसे नियमों की आड़ में रोकना, सरपंचों के मनोबल को तोड़ने जैसा है।
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नगरी जनपद में जारी यह विवाद केवल एक नोटिस तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पंचायतों की स्वायत्तता और निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधिकारों को लेकर एक व्यापक बहस की शुरुआत है। यदि प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के बीच सामंजस्य नहीं बना, तो इसका सीधा असर गांवों के विकास कार्यों पर पड़ेगा।